तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की जन सरकार के अध्यक्ष छयांगपा पुनछोग ने हाल ही में समाचार माध्यमों के साथ साक्षात्कार में कहा कि वर्तमान तिब्बत की स्थिति स्थिर है, कोई बड़ी घटना नहीं उत्पन्न होगी। हिंसक घटना एक समय़ तक तिब्बत के विकास को शायद रोक सकती है, लेकिन दूरगामी दृष्टि से तिब्बत के विकास को कोई भी रोक नहीं सकता है।
चीन में एक पुरानी कहावत हैः शान्ति विकास की चाबी है, हिंसक विकास की बाधा है। इस का मतलब यह है कि शान्ति समाज के लिए बहुत लाभदायक है, जबकि डावांडोल समाज के लिए सबसे खतरनाक है। तिब्बत के पिछले पचास सालों के विकास की प्रक्रिया ने साबित कर दिखाया है कि जब भी समाज की स्थिति स्थिर रहती है, तिब्बत में तेज विकास होता है, जब जब समाज की स्थिति में गड़बड़ी पैदा होती है तो तिब्बत का विकास रूक जाता है या पीछे चला जाता है।
श्री छयांगपा पुनछोग ने पक्के विश्वास के साथ कहा कि शान्ति व स्थिर पर्यावारण तिब्बत के विकास की बुनियादी सुनिश्चता है। स्थिरता व विकास बरकरार रखना तिब्बती जनता की समान अभिलाषा भी है। 1951 में तिब्बत की शान्तिपूर्ण मुक्ति के बाद, केन्द्रीय सरकार ने तिब्बत में सड़क व कारखानों के निर्माण पर बल देकर स्थानीय अर्थतंत्र व सामाजिक विकास को बढ़ावा दिया। लेकिन 1959 में दलाई लामा गुट के गददारी विद्रोह ने तिब्बत में गडबड़ी मचा दी थी और गंभीर रूप से समाज के विकास की प्रक्रिया पर कुप्रभाव डाला , उस समय तिब्बत की जनता की प्रति व्यक्ति का औसत उत्पादन मूल्य केवल 142 य्वान ही था। दलाई लामा के विद्रोह को शान्त कर देने के बाद जारी लोकतांत्रकि सुधार ने तिब्बत के अर्थतंत्र व समाज विकास को भारी बढ़ावा दिया, 2008 में तिब्बतियों की औसत उत्पादन मूल्य दर 13861 य्वान तक जा पहुंची।
लम्बे समय की शान्ति व स्थिरता ने तिब्बत के विकास को प्रेरित किया है, और तिब्बत में सतत विकास बने रहने का सबसे महत्वपूर्ण कारक लोगों के मनों में बनी स्थिरता व शान्ति है। तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार होने से पहले, भूदास के मालिक की संख्या कुल जन संख्या का केवल 5 प्रतिशत ही था, लेकिन वे अधिकतर उत्पादन साधन पर अपना कब्जा किए हुए थे , जबकि व्यापक भूदास व गुलाम के पास न ही उत्पादन संसाधन ही थे न ही शारीरिक आजादी, न ही तिब्बती भाषा सीखने का अधिकार था, तिब्बत के प्रशासन में भाग लेने की बात ही मत कीजिए। इस किस्म की आत्यन्तिक अन्यायपूर्ण व्यवस्था ने केवल तिब्बत के डांवाडोल व मुठभेड़ को ही तीव्र नहीं किया है, बल्कि तिब्बत के विकास की फलती फूलती जीवन शक्ति का गला घोट दिया है।
लोकतांत्रिक सुधार के बाद, तिब्बत में प्रशासन को धर्म के साथ जोड़ने की गुलाम व्यवस्था को रदद कर देने से लाखों तिब्बती गुलामों को अपनी भूमि व अधिकांश उत्पादन साधन व पशु प्राप्त हुए, वे स्कूलों में जाकर तिब्बती भाषा सीख सकते हैं और स्वतंत्रता से धार्मिक विश्वास को चुन सकते हैं। 1965 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना के बाद केन्द्रीय सरकार ने तिब्बत में जातीय स्वायत्त व्यवस्था लागू की, कानून के आधार पर तिब्बत की स्वायत्त अधिकार को सुनिश्चत किया गया।
कहा जा सकता है कि गुलाम व्यवस्था के भंडाफोड़ होने से व्यापक तिब्बतियों ने गुलामी से मुक्ति हासिल की ,उन्हे व्यक्तिगत आजादी मिली, उधर जातीय स्वायत्त व्यवस्था के लागू होने से तिब्बती जनता को स्वंय अपने आप स्थानीय मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार हासिल हुआ । यदि मन में शान्ति को तिब्बत की स्थिरता की नींव समझे तो आप यह देख सकेगें कि मन की शान्ति व स्थिरता ने व्यापक तिब्बती जनता को अपने घर के मालिक बनने की हैसियत ही नहीं दी है, साथ ही गौरव भी प्रदान किया है। अपने घर का मालिक बनने की विचारधारा सच्चे मायने से लोगों के दिल में समा गयी है, लोगों को अहसास होने लगा है उनकी तकदीर उनके अपने हाथों में हैं, वे खुद अपनी मेहनत से अपने खुशहाली जीवन को पा सकते हैं । इस से तिब्बती जनता को अपने जीवन में नये नये अविष्कार करने की भावना को भारी प्रोत्साहन मिला है, इस के अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार व पूरे देश की विभिन्न जगहों की हार्दिक सहायता व समर्थन से आज का तिब्बत आधारभूत संस्थापन निर्माण पर ही नहीं, बल्कि शिक्षा, चिकित्सा , स्वास्थ्य व जातीय सांस्कृतिक कार्य में भी सर्वोतोमुखी रूप से तेजी से तरक्की कर रहा है।
कई सालों से तिब्बत की उम्दा शान्ति व स्थिर विकास स्थिति को दलाई लामा ने अनेक बार कई तरीकों से तोड़फोड व विभाजन करने की कुचेष्टा की थी। पिछले साल ल्हासा में भड़की 14 मार्च की लूटपाट, तोड़फोड़ व आगजनी की हिसंक घटना ने ल्हासा के कई स्कूल, दुकान, अस्पताल व मकान आदि निर्माण स्थलों को नष्ट कर दिया , 18 निर्दोष लोगों को मार डाला गया, समाज में भारी डांवाडोल व अस्थिरता फैल गयी । हालांकि आज इस दंगे फसाद की हिसंक घटना को शान्त कर दिया गया है, लेकिन लोगों के मन में थोड़ी बहुत हलचल मची है , परन्तु तिब्बती जनता के स्थिर व सतत विकास को हासिल करने की इच्छा व विश्वास को कोई भी हिला नहीं सकता है। तिब्बती जनता को शान्ति व स्थिर पर्यवारण की जरूरत है, हमें आज की इस बेहतरीन शान्ति विकास स्थिति को संभालने की पूरी कोशिश करनी चाहिए और यह हमारा कर्तव्य भी है।