अभी आप ने सुना तिब्बती वयोवृद्धा च्वोमा की आवाज में एक गीत। पुराने तिब्बत में भूदास रह चुकी तिब्बती वयोवृद्धा च्वोमा आज नए समाज में सुखचैन से वृद्धावस्था जीवन बिता रही है। वयोवृद्ध होने पर भी वे गीत गा गा कर अपनी भावना प्रकट करना पसंद करती है । उन के साथ एक साक्षात्कार में उन्हों ने हमें बताया कि आज से 50 साल पहले वे पुराने तिब्बत के एक सामंती जागीर यानी पाला जागीर की एक गुलाम थी और जागीरदार की नजर में वे एक बोल सकने वाला पशु थी । उस जमाने में उसे यह सपना देखने का साहस भी नहीं था कि किसी दिन उसे भी अपना मकान, मवेशी और भूमि प्राप्त हो और सुखद जीवन बिता सकती हो। इस के बारे में दादी च्वोमा ने कहाः
"तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार के बाद हम भूदासों में तत्कालीन जागीरदारों के रोजमर्रा की चीजों और याकों का बंटवारा किया गया । हमें असीम खुशी हुई कि हमें भूमि, बेल घोड़ा और खेती के साधन मिले हैं। उस समय मुझे सब से अच्छा यह अनुभव हुआ था कि अब मैं अपने लिए काम करने लगी हूं। अतीत में मैं ने कल्पना भी नहीं की थी कि मैं आज का जैसा जीवन बिता सकती हूं। अब मेरे मकान में पहली मंजिल के सात कमरे है और दूसरी मंजिल पर भी सात कमरे और एक बरामदा है। पुराने तिब्बत में पाला जागीर में हम छै लोग एक छोटे कमरे में रहते थे, अब हम आठ लोग एक-एक कमरे में सोते हैं।"
दादी च्वोमा की आपबिति पुराने तिब्बत में एक आम हालत थी । वर्ष 1959 में तिब्बत में चलाए गए जनवादी सुधार ने उन के भाग्य को एकदम बदला है। आज के इस कार्यक्रम में हम विशेष तौर पर तिब्बक की सामंती भूदास व्यवस्था की खात्मा तथा तिब्बत के नये काल के आरंभ के बारे में कुछ बताएंगे।
चीन के दक्षिण पश्चिम भाग में स्थित तिब्बत पिछली शताब्दी के मध्य तक राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित सामंती भूदास वाले समाज में था । वहां तिब्बत की जन संख्या के 5 प्रतिशत से भी कम तीन जागीरदार यानी कुलीन वर्ग, स्थानीय सरकार और उच्च वर्गीय भिक्षु तिब्बत के 95 प्रतिशत की भूमि और उत्पादन संसाधन पर काबिज थे, जबकि जन संख्या के 95 प्रतिशत तिब्बती लोग भूदास और दास थे। भूदास और दास की जरा भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं थी, संपत्ति और भूमि का सवाल तो उठता भी नहीं था। उन्हें भूदास मालिक मनमाने ढंग से बेच खरीद सकते थे।
पहली अक्तूबर 1949 को चीन लोक गणराज्य की स्थापना हुई। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी सत्ता पर आयी। नये चीन की स्थापना की पूर्ववेला में पारित हुए अस्थाई संविधान स्वरूपी संयुक्त कार्यक्रम के मुताबिक नए चीन में सभी जातियों का समान अधिकार व कर्तव्य होता है, जातियों में समानता, जातीय एकता, जातीय स्वशासन नीति तथा धार्मिक विश्वास की स्वतंत्रता की नीति लागू होती है। 23 मई 1951 को केन्द्रीय सरकार ने तिब्बती स्थानीय सरकार के साथ पेइचिंग में तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के तरीकों के बारे में समझौते पर हस्ताक्षर किए, इस की 17 धाराएं हैं जो 17 धारा समझौते के नाम से विख्यात है । इस तरह तिब्बती की शांतिपूर्ण मुक्ति हुई।
तिब्बत के मशहूर इतिहासकार पासानवांगत्वी ने कहा कि तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति तिब्बत के इतिहास में एक ऐतिहासिक छलांग है। उन्हों ने कहाः
"तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति हुई, जिस ने देश के संप्रभुत्व और प्रादेशिक अखंडता की रक्षा की गयी तथा तिब्बती जाति व देश की विभिन्न जातियों के बीच समानता व एकता कायम हुई है।"
तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद कुछ सालों तक तिब्बत में सामंती भूदास व्यवस्था का सामाजिक ढांचा बरकरार रहा था । इस के कारण का व्याख्यान करते हुए श्री पासानवांगत्वी ने कहा कि चूंकि तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बारे में संपन्न 17 धारा समझौते में यह स्पष्टः निर्धारित हुआ है कि तिब्बत में विभिन्न रूपांतरण के लिए केन्द्रीय सरकार मजबूर नहीं करेगी और तिब्बती स्थानीय सरकार को खुद स्वेच्छे से सुधार करना चाहिए, जब तिब्बती जनता ने सुधार की मांग की, तो तिब्बती नेताओं के साथ सलाह मशविरे के जरिए उसे हल किया जाएगा।
मार्च 1955 में चीनी नेता अध्यक्ष माओ त्सेतुंग के सुझाव पर और तिब्बत के दो प्रमुख धार्मिक नेता 14वें दलाई लामा और 10 वें पंचनलामा की सहमति पर केन्द्रीय सरकार ने तिब्बत स्वायत्त प्रदेश स्थापना तैयारी कमेटी गठित करने का फैसला किया, दलाई लामा और पंचनलामा कमेटी के अध्यक्ष और प्रथम उपाध्यक्ष होंगे जो तिब्बत में जातीय स्वशासन प्रदेश की स्थापना करने का काम देखेंगे। इस के एक साल बाद, तैयारी कमेटी ल्हासा में औपचारिक रूप से स्थापित हुई, इस के 51 सदस्यों में 48 तिब्बती थे। मौके पर चीनी उप प्रधान मंत्री छनई ने ल्हासा पहुंच कर बधाई दी।
इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े।(श्याओ थांग)