2009-03-11 13:57:20

दलाई गुट का उकसावा कथन व्यापक निंदा का पात्र बना

28 मार्च को तिब्बती जनता का प्रथम दस लाख तिब्बती भूदास मुक्ति समृति दिवस होगा। पिछले 50 सालों में तिब्बत के आर्थिक व सामाजिक कार्यों में शानदार उपलब्धियां प्राप्त हुई हैं। लेकिन दलाई गुट ने यह हांक लगायी कि अब तिब्बती जनता नरक का बराबर जीवन बिताती है और तिब्बत की स्थिति का विस्फोट होने वाला है। अखिरकार दलाई गुट ने क्यों ऐसा उकसावा देने वाला कथन फैलाया और मातृभूमि का विभाजन करने के लिए उन की चेष्टा सफल हो सकेगी या नहीं। इसे लेकर विभिन्न जगतों के लोगों ने अपना अपना विचार व्यक्त किया है।

आज से 50 साल पहले की 10 मार्च को तिब्बत में राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित शासन वाली सामंती भूदास व्यवस्था तथा शासक वर्गों के विशेषाधिकार को सुरक्षित रखने की कुचेष्टा में दलाई गुट ने मातृभूमि का विभाजन करने वाला सशस्त्र विद्रोह छेड़ा था । विदेश में भाग निकलने के बाद भी दलाई गुट लगातार तिब्बत स्वाधीनता का ढिंढोरा पिटाता रहा । इस साल की 10 मार्च को दलाई लामा ने फिर एक बार दावा किया कि तिब्बत की स्थिति का जल्द ही विस्फोट होने वाला है। दलाई लामा की इस प्रकार की संसनीखेज भविष्यवाणी पर टिप्पणी करते हुए तिब्बत शास्त्र के विशेषज्ञ तांजङलुंजू ने कहा कि दलाई गुट की यह हरकत को लोगों का समर्थन नहीं मिल सकता और उन का उद्देश्य अवश्व ही नाकाम होगा। श्री तांजङलुंगजू ने कहाः

हर साल की 10 मार्च को दलाई गुट जरूर कुछ न कुछ बयान देकर लोगों को उकसाने की कोशिश करता रहता है। मेरे विचार में उन के ऐसे कथन का कोई काम नहीं आएगा। तिब्बत, खास कर ल्हासा की स्थिति पिछले साल की 14 मार्च की हिंसक घटना के बाद और स्थिर हो गयी है। क्योंकि सरकार ने इस प्रकार की सार्वजनिक घटना से निपटने के लिए अच्छा उपाय अख्तियार कर लिया है। दूसरा, किसी भी रूप की हिंसा और तोड़फोड़ की कार्यवाही तिब्बती जनता के मूल हितों के खिलाफ है, उसे लोगों का समर्थन नहीं मिल सकता है । कोई भी लोग उथल पुथल सामाजिक स्थिति में नहीं रहना चाहता है। इसलिए दलाई गुट विदेशों में चाहे कौन सी उकसावा देने वाली हरकत करता है, वह सफल नहीं हो सकती। उन्हों ने 50 सालों तक गड़बड़ी मचायी है, पर इस का कोई नदीजा नहीं निकला, आज भी उन की कुचेष्टा नहीं सफल हो सकेगी । सचे माइने में तिब्बत से प्यार करने वाले तिब्बती लोग यहां शांति, अमनचैन और स्थिरता की आशा करते हैं।

दलाई गुट की ये कार्रवाइयां कुछ पश्चिमी देशों के समर्थन व शह से जुड़ी हुई हैं। श्री तांजङलुंजू ने कहा कि असल में दलाई का समर्थन करने में पश्चिम का अपना राजनीतिक मकसद है । पश्चिम ने दलाई को चीन के साथ राजनीतिक बाजी लगाने वाला एक साधन बनाया है। श्री तांजङलुंजू ने कहाः

असल में पश्चिम के लोग तिब्बत के भाग्य को तरजीह नहीं देते हैं। शीतयुद्ध के काल से अमरीका की गुप्तचर संस्था सी आई ए दलाई लामा को शीतयुद्ध में कम्युनिस्ट विरोधी साधन बनाता रहा है और अपनी रणनीति के लिए दलाई गुट को बाजी का प्यादा बनाया है। इतिहास के कारण तिब्बत चीन का एक भाग बन गया है, यह अपरिवर्तनशील है। एक तिब्बती होने के नाते मैं चाहता हूं कि मातृभूमि के महा परिवार में चीन के एकीकरण के तहत तिब्बत एक साथ विकसित हो जाएगा।

तिब्बत सवाल पर चीन सरकार का रूख हमेशा स्पष्ट रहा है। 7 मार्च को चीनी विदेश मंत्री यांग च्येछी ने जर्मन पत्रकार के सवाल के जवाब में फिर एक बार चीन सरकार का गंभीर रूख दोहरायाः

क्या जर्मनी, फ्रांस और अन्य कोई भी देश अपनी भूमि के चौथाई भाग को अलग निकाल करने को तैयार है?याद रखो, चीन हमेशा जर्मनी के एकीकरण का समर्थन करता आया है। दलाई लामा मात्र धार्मिक व्यक्ति नहीं है, वह राजनीतिक निर्वासित व्यक्ति भी है। हम और उन के बीच की सवाल धार्मिक समस्या नहीं है , मानवाधिकार और जाति व संस्कृति की समस्या भी नहीं है, बल्कि चीन के एकीकरण को बनाए रखने तथा तिब्बत को चीन से अलग करने नहीं देने का सवाल है। किसी भी देश को चीन के साथ संबंध का निपटारा करने में दलाई लामा को उस के देश में यात्रा पर जाने और अपनी भूमि पर चीन विरोधी कार्यवाही करने नहीं देना चाहिए। यह अन्तरराष्ट्रीय मापदंड है।

थाइलैंड के चुलालोंगकार्न युनिवर्सिटी के चीन अध्ययन केन्द्र के प्रधान वारासाकडी ने कहा कि विश्व में कोई भी सरकार मातृभूमि का विभाजन करने वाली मांग नहीं स्वीकार कर सकती। उन्हों ने कहाः

मेरे विचार में दसियों सालों से चीन सरकार सक्रिय रूप से तिब्बत समेत सभी तिब्बती बहुल क्षेत्रों के विकास के लिए कोशिश करती रहती है। दलाई लामा उच्च स्वशासन की मांग करते हैं, वास्तव में थाईलैंड के सामने भी समान समस्या है, मुस्लिम अलगवादी बौद्ध अनुयायियों को दक्षिण थाइलैंड के तीन प्रांतों में से निकाल कर भगा देना चाहते हैं। कोई भी सरकार इस प्रकार की अन्याय मांग को स्वीकार नहीं करेगी।

ल्हासा में यात्रा कर रहे स्कोटलैंड के पर्यटक रिचार्ड ने कहा कि वर्तमान तिब्बत में फैली शांति से उन्हें बड़ा आनंद मिला है। उन्हों ने कहाः

ल्हासा में मैं ने कोई भी असामान्य स्थिति नहीं देख पायी, लोग अपने ढंग से जीवन बिताते हैं। मुझे बड़ा आनंद मिला, बहुत सुखद दिन बिताए।

50 साल पहले, दलाई लामा के शासन में पुराने तिब्बत में नरक जैसा नजारा आया था। 50 साल के बाद आज तिब्बती लोग अपने भाग्य का स्वयं मालिक बन गयी और तिब्बत का कायापलट हो गया, जो मानवाधिकार कार्य में प्राप्त एक असाधारण प्रगति है।

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