हाथों से पत्थर उठाने का खेल तिब्बत में बहुत पुराना है , सांये मठ और पोताला महल के भित्ती चित्रों में प्राचीन काल में पत्थर उठाने की खेल प्रतियोगिता का सजीव चित्रण मिलता है । एक चित्र में चार पहलवान युवक मैच करते हुए दिखाई देता है, जिन में से एक ने विशाल पत्थर जमीन से अभी अभी थोड़ा ऊपर उठाए, एक ने पेट तक उठाया, एक ने वृक्ष तक तथा एक ने कंधे पर उठा कर रख दिया । बगल में दो निमायक खड़े हुए थे।
वर्तमान में पत्थर उठाने का मैच आम तौर पर तिब्बती कलैंडर के आठवें माह में आयोजित होता है। प्रतियोगिता में लोग एक गोलाकार पत्थर उठाते हैं। पत्थर का वजन 100 किलोग्राम से लेकर 150 किलोग्राम तक है। पत्थर पर घी का तेल लगा हुआ। प्रतियोगी दोनों हाथों से पत्थर उठा कर पेट से कंधे पर रख देता है या कांख से कंधे पर उठाकर रख देता है। इस के बाद उसे निर्धारित लाइन से चक्कर लगाना चाहिए ,जिस ने सब से ज्यादा गोलाकार लाइन लगायी है, उसे विजेता घोषित किया जाता है। इस प्रकार का मैच भी होता है, जिस में प्रतियोगी पत्थर को आगे या पीछे की और से फेंक देता है, जो सब से दूर फेंका गया, वही विजेता है।
तिब्बत में चमड़े का बैग ऊपर उठाने का मैच भी होता है। बैग में रेत भरा हुआ है। मैच में प्रतियोगी बैग को सिर से ऊपर उठाता है। तिब्बत के ऐतिहासिक उल्लेख के मुताबिक कुशल प्रतियोगी रेतों से पूरा भरा बैग ऊपर उठाकर चक्कर लगाकर नाच सकता है । आज भी यह खेल तिब्बत में बहुत लोकप्रिय है।
तिब्बती शैली का रस्साकशी खेल हाथी का रस्साकशी कहलाता है। आम रस्साकशी से अलग होकर तिब्बती लोग गर्दन से रस्सा खींच लेते हैं। मैच में मैदान की जमीन पर दो समानांतर लाइनें लगायी गयीं, दोनों के बीच एक सीमा रेखा खींची गयी, चार मीटर लम्बे रस्से के दोनों छोरों पर गांठ बांधी गयी जिसे एक एक प्रतियोगी के गर्दन पर लगाया गया । मैच इन्ही दोनों में होता है। वे एक दूसरे को पीठ देता है और रस्से को वृक्ष स्थल से जांघों के बीच गुजराया जाता है। फिर दोनों जोर से रस्सा खींच लेता है। रस्साकशी की भी कई शैलियां हैं। प्रतियोगी जमीन पर बैठे भी खींच लेते हैं और दर्शक हर्षोल्लास कर दाद देते हैं।
तिब्बत में दौड़ का खेल, कुश्ती और तैराकी
तिब्बत में दौड़ की प्रतियोगिता छिंग राजवंश के काल में एक महत्वपूर्ण मनोरंजन इवेंट थी ।《तिब्बत के इतिहास》नामक प्राचीन ग्रंथ के अनुसार दौड़ की प्रतियोगिता पहले आम तौर पर उच्च स्तरीय कुलीन लोगों के बीच आयोजित होती थी, जिस की लम्बाई करीब 2500 मीटर थी । लेकिन आज दौड़ प्रतियोगिता तिब्बत में बहुत साधारण व लोकप्रिय खेल बन गया । क्षेत्रीय खेल समारोहों में दौड़ की प्रतियोगिता जरूर आयोजित की जाती है । तिब्बत में दौड़ प्रतियोगिता बूढ़े वर्ग और बाल किशोर वर्ग दो भागों में बंटी हुई है । बूढ़े ग्रुप में भाग लेने वाले खिलाड़ियों की उम्र साठ और अस्सी साल के बीच है, जबकि बाल किशोर दल में भागीदारों की उम्र सात से 14 साल के बीच है । दौड़ प्रतियोगिता में भाग लेने वाले सभी पुरूष है जो नंगे पांव से दौड़ते हैं । कुछ स्थानों में दौड़ की प्रतियोगिता घुड़सवारी दौड़ के बाद आयोजित की जाती है, प्रतियोगिता के दौरान पहाड़ पर चढ़ने वाली प्रतियोगिता भी होती है ।
तिब्बती कुश्ती तिब्बत के परम्परागत खेल का एक भाग है, जो आज तक तिब्बत में बहुत लोकप्रिय है। चाहे घासमैदान में हो, या खेतों में क्यों न हो, तिब्बती कुश्ती के पहलवान देखे जा सकते हैं । पोताला महल में कुश्ती के संदर्भ में दो भित्ति चित्र सुरक्षित हैं, एक भित्ति चित्र में तिब्बती शैली वाली कुश्ती दिखाई जाती है और दूसरी भित्ति चित्र में मंगोलियाई शैली वाली कुश्ती । इस के साथ ही सांगये मठ में कुश्ती के बारे में भी भित्ति चित्र सुरक्षित है जो जूडो से मिलती जाती है।
दौड़ प्रतियोगिता और कुश्ती की तुलना में तैराकी तिब्बत में ज्यादा लोकप्रिय नहीं है । छिंगहाई तिब्बत पठार में नदी व झील ज्यादा होने के बावजूद जलवायु ठंडा है, इस तरह तैराकी के लिए अनुकूल स्थिति नहीं है । तैराकी प्रतियोगिता मध्य व दक्षिण तिब्बत में लोकप्रिय है । लेकिन तिब्बती पंचांग के अनुसार हर वर्ष के सातवें माह के शुरू में तिब्बत में नहाने का त्योहार है । इस सात दिवसीय त्योहार के दौरान चाहे पुरूष हो या महीला, बूढ़ा हो या बच्चा, सभी लोग नदी में जाकर नहाते तैरते हैं । उन के बीच तैराकी की प्रतियोगिता होती है । इस तरह तिब्बतियों का स्नान सप्ताह तैराकी हफ्ता बन गया है । पोताला महल में तैराकी से संबंधित अनेक भित्ति चित्र सुरक्षित हैं ।
![]() |
![]() |
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040 |