तिब्बती जाति ने चीनी राष्ट्र के बड़े परिवार के सदस्य के रूप में चीनी सामाजिक समृद्धि व प्रगति के लिए भारी योगदान दिया है । लेकिन वर्ष 1949 में नए चीन की स्थापना के वक्त तिब्बती जनता पर सामंती भू दास व्यवस्था का क्रूर शासन था । इस के दस साल बाद यानि 1959 में तिब्बत की विभिन्न जातियों की जनता ने भू-दास व्यवस्था को रद्द कर दिया और लोकतांत्रिक सुधार करके जातीय स्वशासन सरकार की स्थापना की । तिब्बत में विभिन्न स्तरीय जनवादी सत्ता स्थापित हुई और भू-दास व्यवस्था पूरी तरह नष्ट कर दी गयी । व्यापक भूदास अपने स्वयं के खुद मालिक बन गए ।
वर्ष 2009 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में लोकतांत्रिक सुधार की 50वीं वर्षगांठ की खुशियां मनायी जाएंगी । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के अर्थतंत्र व समाज के सर्वांगीण विकास के चलते पिछले पचास वर्षों में तिब्बती किसान व चरवाहों के जीवन में भी जमीन आसमान का परिवर्तन आया है । तिब्बती बंधु चोस्फेल त्सेरिंग का जन्म रनबी कांउटी के करीब भूदास परिवार में हुआ था। घर के लोग कुलीनों के लिए घोड़े पालने का काम करते थे । इस तरह स्थानीय लोग उन्हें दार्हुआवु कहते थे । वर्ष 1959 में तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार किए गए, इस तरह चोस्फेल त्सेरिंग का कुलिनों के लिए घोड़ा पालने का कठोर जीवन समाप्त हुआ और वह स्वतंत्र जीवन बिताने लगा । वर्ष 1982 में चोस्फेल त्सेरिंग ने दार्हुआवु नामक निर्माण मज़दूर दल की स्थापना की । बीस साल से अधिक का समय बीत चुका है, आज दार्हुआवु ग्रुप के रूप में तिब्बती गैर सरकारी कारोबारों का नेतृत्वकारी कारोबारी बन गया है और चोस्फेल त्सेरिंग मशहूर किसान उद्यमी बन गया है । तिब्बती बंधु चोस्फेल त्सेरिंग ने कहा:
"हमारे दार्हुआवु ग्रुप के अधीन आठ शाखा कंपनियां हैं । वर्ष 2007 तक ग्रुप की अचल संपत्ति पचास करोड़ य्वान तक पहुंच गई । हमारे पास इतनी बड़ी संपत्ति होना पुराने तिब्बत में कल्पनीय नहीं था ।"
दोस्तो, तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के पूर्व पांच प्रतिशत जनसंख्या वाले जमीन मालिक 95 प्रतिशत सामाजिक संपत्ति पर कब्ज़ा किए हुए थे, यही नहीं, वे भूदासों की शारीरिक स्वतंत्रता पर भी कब्ज़ा रखते थे। तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति विशेष कर लोकतांत्रिक सुधार के बाद लाखों गरीब भूदासों को शारीरिक मुक्ति मिली और उन्होंने जीवन उत्पादन की सामग्री भी प्राप्त की । पिछली शताब्दी के 80 वाले दशक से ही चीन की केंद्र सरकार ने तिब्बत में ग्रामीण उत्पादन शक्ति को मुक्त करने के लिए पारिवारिक संचालन और बाज़ार समन्वय की प्रधानता वाली उत्पादन नीति अपनायी । विशेषकर कृषि कर से मुक्ति और कृषि से जुड़ी सामग्री की खरीददारी के लिए भत्ता देने वाली उदार नीतियों से तिब्बत की 80 प्रतिशत जनसंख्या वाले किसानों व चरवाहों को वास्तविक लाभ मिला।
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा की छाईकोंगथांग कांउटी ल्हासा के शहरी क्षेत्र में सब से बड़ा कृषि प्रधान जिला है, जहां मशीनीकरण का स्तर ऊंचा है । कृषि उत्पादों की पैदावार को उन्नत करने के लिए देश ने ऐसी नीति अपनायी, यानि सरकार ने 80 प्रतिशत पूंजी लगाई और किसान व चरवाहों ने स्वयं 20 प्रतिशत पूंजी जुटाई, इस के बाद मशीनीकरण को मूर्त रूप दिया गया । इस कांउटी के तिब्बती किसान छेदाई फुन्त्सोक ने कहा:
"वर्तमान में हमारे गांव में हर परिवार मशीनरी का प्रयोग करता है, जिस से हमारी कार्य क्षमता और अनाज़ की पैदावार उन्नत हुई है। साथ ही हमारी अतिरिक्त श्रमिक शक्ति दूसरे कार्यों में लगने लगी है और हमारी आय बढ़ी है । हर वर्ष मैं तीस हज़ार य्वान की आय हासिल करता हूँ , कई साल पूर्व की तुलना में जो तीन गुना बढ़ गई है।"
अनाज की पैदावार को उन्नत करने के साथ-साथ तिब्बत स्वायत्त प्रदेश कृषि व पशुपालन से संबंधित विशेष व्यवसाय, तथा ग्रामीण पर्यटन, जातीय हस्त उद्योग, निजी परिवहन, मशरूम इक्ट्ठा करना आदि गैर कृषि व्यवसायों का जोरदार विकास किया गया है । इन क्षेत्रों से प्राप्त आय किसानों व चरवाहों की आय का महत्वपूर्ण भाग बन गया है। वर्ष 2007 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश से सात लाख श्रमिक काम के लिए स्वायत्त प्रदेश से बाहर गए, किसान व चरवाहों की औसतन शुद्ध आय 2788 य्वान तक पहुंच गई है और लगातार पांच वर्षों से दो अंकों की वृद्धि दर बरकरार है । तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सामाजिक अकादमी के ग्रामीण आर्थिक अनुसंधान केंद्र के उप निदेशक श्री डोछिंग ने कहा:
"देश ने किसानों व चरवाहों को व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया, इस तरह तिब्बती किसानों व चरवाहों में व्यापर करने की विचारधारा काफी हद तक बढ़ गई है और उन के निजीगत कारोबारों का जोरदार विकास हो रहा है । वर्ष 2008 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के कृषि व पशुपालन क्षेत्रों में औद्योगिक व वाणिज्यिक व्यापारियों की संख्या 78 हज़ार तक पहुंच गई । किसान व चरवाहे अब केवल कृषि व पशुपालन नहीं करते, वे खुले बाज़ार में उद्योग, परिवहन और वाणिज्य आदि का काम भी करने लगे हैं।"
तिब्बती किसानों व चरवाहों की उत्पादन व जीवन स्थिति का पूरी तरह सुधार करने के लिए चीन सरकार ने "किसानों व चरवाहों की उत्पादन व जीवन स्थिति को सुधारने और उन की आय को उन्नत करने के लिए तिब्बत के आर्थिक व सामाजिक विकास का प्रथम कार्य"वाली रणनीतिक नीति बनायी । वर्ष 2006 के बाद से लेकर अब तक कुल एक लाख 14 हज़ार परिवारों के पांच लाख 79 हज़ार किसानों व चरवाहों ने पेयजल और बिजली का प्रयोग तथा सुविधापूर्ण मार्गों के इस्तेमाल वाले रिहायशी मकानों में प्रवेश किया है । वे स्वस्थ और पर्यावरण संरक्षण वाली मैथन गैस ऊर्जा का प्रयोग करते हैं । विशेष कर मुफ्त इलाज के आधार पर सहयोग चिकित्सा व्यवस्था कृषि व पशुपालन क्षेत्र में सर्वतौमुखी तौर पर लागू की जा रही है, जिस से व्यापाक किसानों व चरवाहों का इलाज करने का बोझ कम हुआ है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के स्वास्थ्य ब्यूरो के बुनियादी स्वास्थ्य व महिला बाल स्वास्थ्य विभाग के प्रधान श्री वांग च्येनफङ ने कहा:
"वर्ष 2007 तक तिब्बत के कृषि व पशुपालन क्षेत्रों में हर वर्ष औसतन व्यक्ति ने 110 य्वान की पूंजी जुटाई, जिस में केंद्र सरकार द्वारा दी गई पूंजी 85 य्वान थी। यह राशि तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में किसान चरवाहा चिकित्सा कोष का 77 प्रतिशत बनता है । अब तक इस व्यवस्था से सारे स्वायत्त प्रदेश के सभी किसानों व चरवाहों को लाभ मिल रहा है।"
वर्ष 2008 में चीन सरकार ने सात बार तिब्बती किसानों व चरवाहों के मुफ्त इलाज मापदंड को उन्नत किया, अब सालाना औसतन व्यक्ति की राशि 140 तक पहुंच गई है । आज तिब्बती कृषि व पशुपालन क्षेत्रों में लोगों की औसतन उम्र लोकतांत्रिक सुधार के पूर्व की 35.5 वर्ष से बढ़ कर 67 वर्ष तक पहुंच गई है । तिब्बत में सौ वर्ष की उम्र वाले बूढ़ों की संख्या भी ज्यादा है ।(श्याओ थांग)