2009-03-09 18:31:00

तिब्बती व्यंजन

तिब्बती व्यंजन की ज्यादा शाखाएं नहीं हैं , उस की किस्में भी बहुत ज्यादा नहीं है। बस कुछ क्षेत्रीय विशेषताएं पायी जाती हैं।

तिब्बती व्यंजन बारीकी से चार स्वाद में विभाजित हो सकता है। एकः अली और नाछ्यु क्षेत्र के व्यंजन को छ्यांग क्षेत्रीय खाना कहलाता है। दोः ल्हासा, शिकाजे और लोको के व्यंजन को ल्हासा क्षेत्रीय खाना कहा जा सकता है। तीनः लिनची , मोथ्वो और चीमु के व्यंजन को रोंग क्षेत्रीय खाना तथा राजा, कुलीन व सरकारी संस्था के व्यंजन को दरबारी खाना कहलाते है.

छ्यांग क्षेत्रीय भोजन कड़ी सर्दी वाले चरगाहों में खाया जाने वाला भोजन है जिस की विशेषता मूल स्वाद बनाए रखती है यानी रमकीन, मीठा, ताजा , खट्टा और सुगंधित सिन्गल स्वाद होते हैं जो सर्दी मौसम के अनुरूप है। छ्यांग व्यंजन में पनीर, बैल के खूर, दही, घी आदि मुख्य कच्चे माल के रूप में है।

ल्हासा क्षेत्रीय व्यंजन जो ल्हासा, लोको और शिकाजे में प्रचलित है। वह कृषि और अर्ध कृषि व अर्ध चरगाह क्षेत्र का खाना है । इस व्यंजन की सामग्री विविधतापूर्ण है जिस में दुध के उत्पादों व बैल बकरी के मांस के अलावा फसलों की चीजें भी हैं। खाने में मांसाकारी और शाहाकारी दोनों के हैं , स्वाद नमकीन , हल्का मीठा है और उबालने, भुनने, तलने और भाप में पकाने के अनेक तरीके अपनाये जाते हैं।

रोंग व्यंजन समुद्री सतह से कम ऊंचाई पर स्थित तिब्बत के दक्षिण पूर्व भाग का भोजन है। खाना बनाने की सामग्री पहाड़ और जंगल से लायी जाती है और कुकुमरत्ता वाली सब्जी प्रमुख है और खाना बनाने का तौर तरीका भी आदि काल का है और स्वाद ताजा होता है।

दरबारी व्यंजन बारीकी से बनाने तथा सूक्ष्म कच्चा माल चुनने के कारण व्यंजन रंग में ताजा और खूबसूरत होता है। यह तिब्बती व्यंजन में श्रेष्ठत्तम है और तिब्बत के हर क्षेत्र में लोकप्रिय होता है।

चार व्यंजन किस्मों के अलावा ल्हासा क्षेत्र का व्यंजन ज्यादा प्रभावित होता है। तिब्बत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थानीय भोजन जैसा कि फुलान का निवु शोरबा, लोको का अंडा, यातुंग की मछली, ल्हासा का च्यानपा, लिनची का मुर्गा कुकुमरत्ता, छांगतु का शहद चटनी भी बहुत मशहूर और विविध है ।

तिब्बती व्यंजन में बहुत से कच्चे माल औषधि की क्षमता रखते हैं जो मानव के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है । निम्न लिखित कुछ उदाहरणः

तिब्बती जौः तिब्बती चिकित्सा ग्रंथ《 चिनजू जड़ी-बूटी》में उल्लिखित एक अहम औषधि मानी जाती है। इस के प्रयोग से अनेक रोग का निवारण हो सकता है। अधिकारिक संस्था के आंकड़ों के अनुसार तिब्बत में जोड़ों में दर्द और मधुमेह की दर सिर्फ 0.01 प्रतिशत है, जिस का श्रेय तिब्बती जौ के आटे से बने चानपा को जाता है । तिब्बती लोग तिब्बती जौ को जन समुदाय की माता रानी कहते हैं और जौ के आटे से बनाया जाने वाला चानपा माता रानी का अमोल पुत्र कहते हैं और जौ का मदिरा अमृत बहन कहते है। वर्तमान में जौ में टॉनिक क्षमता का व्यापक दोहन किया गया और चानपा भी और अधिक लोकप्रिय हो गया है।

याक तिब्बत पठार का विराल पशु है। वह कड़ी सर्दी सह सकता है और निर्जन विरान ठंडे पहा़ड़ों, वादियों, मैदानों और जंगलों में रहते हैं। सदियों से पालतु होने के बाद भी याक जंगली याक की भांति जीवन बिताते हैं इसलिए उस के समूचे शरीर सींग, हड्डी, मांस और ऊन सभी रोग रोधक होते हैं । लोग याक को पठार का रत्न समझते हैं।

घी गाय दुध से परिशुद्धित तेल है। वह जीवन का तेल या तेल का अमृत कहलाता है । घी पठार पर रहने वाले लोगों का जरूरी खाद्य तेल है। अलग किस्म के घी की अलग कार्यक्षमता है । बैल और बकरी के दुध से निकले घी बुखार को दूर कर सकता है और याक व मेमने से उत्पादित घी जुकाम को दूर कर सकता है।

इन के अतिरिक्त तिब्बत में सौंफ, जीरा ,जंगली प्याज मसाला भी है और तिब्बती जड़ी-बूटी भी । इन मसालों से बनाया गया व्यंजन जायकेदार है और स्वास्थ्य लाभ भी देता है।

तिब्बत का परंपरागत व्यंजन अब उत्तरोत्तर देशी विदेशी पर्यटकों का मनपसंद खाना बन गया है। ल्हासा की बाख्वो सड़क के दक्षिण पूर्व कोने पर स्थित दो मंजिला माक्ये आमे रेस्ट्रां और उस की पेइचिंग और खुनमिन में शाखा तिब्बती परंपरागत व्यंजन और तिब्बती संस्कृति की विशेषता की वजह से देशी विदेशी पर्यटक आकर्षित हो गए।

माक्येअमी का नाम छठे दलाई लामा त्सांगयांग ग्यात्सो की प्रेम कविता से चुना गया शब्द है । कहा जाता है कि यह त्यांगयांग ग्यात्सो की प्रेमिका का नाम था। इस का तिब्बती भाषा में अर्थ पवित्र युवती है। वर्ष 1997 में तिबब्ती बंधु जेरमांग वांगक्यिंग ने बाखवो सड़क पर स्थित इस मकान को पसंद किया ,क्योंकि दंतकथा के मुताबिक यह जगह त्यांगयांग ग्यात्सो और चंद्रपरी माक्येअमे के मिलन का स्थल था। वांगक्यिंग इस लोककथा से आकर्षित हो गया और वहां एक रेस्ट्रां खोला जिस का नाम माक्येअमे रखा गया।

तिब्बती परंपरा बनाए रखने के साथ साथ श्री वांगक्यिंग ने रेस्ट्रां के संचालन में आधुनिक प्रबंध सिद्धांत अपनाया और परंपरा और आधुनिक विचार के मिश्रित होने का फार्मूला बनाया। बड़ी संख्या में देशी विदेशी पर्यटक आकर्षित हुए। माक्योअमे रेस्ट्रां में ब्रांडेड व्यंजन में बकरी मांस टोस्ट, खट्टा मूली गोश्त , भुनी तिब्बती कुकुमरत्ता, दही रुनसेन सालादा आदि। ये व्यंजन सूक्ष्म बनाया जाता है और स्वाद अनुठा और स्वादिष्ट है।

माक्येअमे रेस्ट्रां ने पेइचिंग और खुनमिंग शहरों में तीन शाखा दुकान खोली है, जिन में तिब्बती परंपरागत संस्कृति पर आधारित भीतरी सजावट किया गया और महा नगर में अपना अलग पहचान संरक्षित है और बहुत आकर्षक भी है।