2009-03-09 18:27:32

तिब्बत का घुड़सवारी दौड़

वर्ष 2008 की आठ अगस्त को 29वां ऑलंपिक खेल समारोह धूमधाम से चीन की राजधानी पेइचिंग में आयोजित हुआ । एक शक्तिशाली खेलकूद देश के रूप में विश्व का ध्यान चीन पर केंद्रित हुआ था । तिब्बती जाति एक बलवान जाति है। तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद तिब्बत के खेलकूद का जोरदार विकास हो रहा है ।

छिंगहाई तिब्बत पठार पर रहने वाले तिब्बती लोगों के अनेक परम्परागत खेल व्यायाम चलते हैं, जो तिब्बती जाति के जीवन पर्यावरण व जीवन तरीके से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं । तिब्बती खेलकूद तिब्बती संस्कृति का महत्वपूर्ण भाग भी है । तिब्बत में घोड़े, नीलगाय और ऊंट पर सवार होकर दौड़ने की प्रतियोगिता बहुत सामान्य होती है ।

तिब्बती लोगों के पूर्वज आम तौर पर घुमंतू जीवन बिताते थे । लोगों के बीच आवाजाही, जीवन, उत्पादन और युद्ध में घोड़ा बहुत महत्वपूर्ण पशु है । जीवन और पर्यावरण के कारण तिब्बती लोग छोटी उम्र से ही घोड़े के साथ संपर्क कायम हो गए । इस तरह घोड़े पर सवार होकर दौड़ की प्रतियोगिता का जन्म हुआ। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा के पोताला महल और लोका प्रिफैक्चर के सांगये मठ में घुड़सवारी दौड़ के संदर्भ में सुन्दर भित्ति चित्र सुरक्षित हैं । इस के साथ ही तिब्बत के प्राचीन ग्रंथों में घुड़सवारी दौड़ के बारे में भी उल्लेख है । तिब्बती जाति की प्रथा-परम्परा के अनुसार खुशी के वक्त और त्योहार मनाने और मेले के आयोजन के दौरान घुड़सवारी दौड़ प्रतियोगिता आयोजित करना जरूरी है ।

तिब्बत में नीलगाय यानी याक पर सवार होकर दौड़ की प्रतियोगिता आयोजित करना भी आम बात है । नीलगाय छिंगहाई तिब्बत पठार का विशेष गाय है, जिसे समुद्र के सतह से ऊंचे स्थान पर और ठंडे जलवायु वाले वातावरण में रहने की आदत है । नीलगाय को पठारीय नाव कहा जाता है । लम्बे समय में नीलगाय छिंगहाई तिब्बत पठार के चरवाहों का प्रमुख जीवन संसाधन और यातायात का साधन था । बाद में पठार के घास मैदान क्षेत्र में नीलगाय दौड़ की प्रतियोगिता पैदा हुई, जो धीरे-धीरे तिब्बत में एक विशेष प्रतियोगिता बन गई । नीलगाय दौड़ प्रतियोगिता गति की आजमाइश है । इस में भाग लेने वाले खिलाड़ी नीलगाय की पीठ पर सवार होकर उस का निर्देशन कर आगे दौड़ाते हैं, जब अनेकों नीलगाय घास मैदान में दौड़ते हुए दिखाई देता है, तो एक विशेष दृश्य बन जाता है ।

तिब्बत में ऊंट पर सवार होकर दौड़ की प्रतियोगिता आयोजित करना एक और विशेष खेलकूद इवेंट है । वर्तमान में तिब्बती पशुपालन क्षेत्र में ऊंट का पालन कम है । लेकिन प्राचीन समय में ऊंट पठार में महत्वपूर्ण पशुओं में से एक था ।《थांग राजवंश के थुबो की कहानी》नामक किबात में लिखा गया कि तिब्बत के थुबो राजवंश में ऊंट खाद्य पदार्थ का परिवहन, सेना की आपूर्ति ढोलने का आदि काम करते थे । प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार सांगये मठ में त्योहार मनाने के वक्त ऊंट दौड़ की प्रतियोगिता आयोजित का जाता था । लेकिन आज तिब्बत में ऊंट दौड़ की प्रतियोगिता कम हो गई।

निशानेबाजी का खेल

छिंगहाई तिब्बत पठार पर बसी तिब्बती जनता अनेक किस्मों के खेल व्यायाम पसंद करती है। ये खेल व्यायाम उन के जीवन वातावरण और जीवन के तौर तरीके से जुड़े हुए हैं,जो तिब्बती जाति की संस्कृति का एक भाग है।

तिब्बती जाति में परंपरागत निशानेबाजी की दो किस्में हैं यानी तीरंदाजी और शूटिंग ।

तीरंदाजी तिब्बती जाति का एक व्यापक लोकप्रिय खेल है, तिब्बती जाति के वीर गाथा《राजा गैसर 》आदि पुस्तकों से पता चल सकता है कि घुड़सवारी दौड़ की भांति तीरंदाजी का मैच भी त्यौहार पर्व की मुख्य कार्यलाहियों में से एक था। 《राजा गैसर 》में तीरंदाजी के बारे में बेशुमार स्तुति वाक्य मिलते हैं और बड़ी संख्या में कुशल तीरंदाजों के नाम लिखे गए हैं । ल्हासा के पोताला महल के भित्ती चित्रों में तीरंदाजी संबंधी चित्र देखने को मिलते हैं, जिस में लोग जमीन पर खड़े कमान तानते हुए, दौड़ते घोड़े पर सवार लोग मार्ग के किनारे पर बनाये गए निशाने पर तीर छोड़ते हुए दिखाई देता है। इस से साबित हुआ है कि घुड़सवारी दौड़ और तीरंदाजी का खेल आम तौर पर एक साथ मिल कर खेला जाता था।

आज के तिब्बत में बहुत से स्थानों में बड़े पैमाने पर वसंतकालीन तीरंदाजी प्रतियोगिता आयोजित होती है। जो बहुत आकर्षक होता है। प्रतियोगिता में आम तौर पर बैल के सिंग और लकड़ी के फलक और बैल के सूखे नस से निर्मित परंपरागत बाण-धनुष प्रयोग किया जाता है। तीर आम तौर पर बांस , लकड़ी के डंड , बाज के पंखे तथा लोहे के बाण से बनाये गए हैं। इस के अलावा पुश्यू नाम का तीर भी होता है,जिस का पूंच्छ पंखे का नहीं है ,बल्कि शंकु आकार का सीटि लगता है ,जिसे छोड़ने पर आवाज बजती है।

तिब्बत क्षेत्र में शूटिंग में प्रयुक्त बंदूक आम बंदूक नहीं है, बल्कि पक्षी मारने वाला बंदूक है ,जिस में आगे की नाली से गोली भरी जाती है और पीछे भाग से फायर किया जाता है। इस प्रकार का बंदूक छिंग राजवंश के काल में व्यापक तौर पर इस्तेमाल किया जाता था । तिब्बती किस्म के इस प्रकार के बंदूक से लोग आत्मरक्षा और शिकार करते हैं। इसलिए इस के कुशल प्रयोग पर ज्यादा महत्व दिया जाता है। शूटिंग प्रतियोगिता तीरंगादी की तरह स्थिर खड़े निशाने पर या घोड़ पर निशानेबाजी दो प्रकार की है। पोताला महल के भित्ति चित्रों में इस प्रकार की प्रतियोगिता का चितरण मिलता है , जिस में खिलाड़ी तेज दौड़ते हुए घोड़े पर सवार होकर निशाने के नजदीक आने पर पीठ पर से पक्षी मारक बंदूक उतार कर लक्ष्य साधते हुए दिखाई देता है।

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