2009-03-05 17:07:52

चीन की शिक्षा के अन्तरराष्ट्रीयकरण के तीस साल

तीस साल पहले एक आम चीनी के लिए विदेशों में जाकर पढ़ना एक सपना सा था। देश की नीति व विदेशी भाषा की कमजोरी व आर्थिक स्थिति आदि कारकों के कारण लोगों के विदेशों में जाकर पढ़ने का सपना एक सपना ही बना रहा। खुलेपन व आर्थिक सुधार के तीस साल के बाद, चीन के समाज व आर्थिक में तेज विकास हुआ, जिस से शिक्षा कार्य के अन्तरराष्ट्रीयकरण के कदम भी तेज गति से बढ़ने लगा है । फिलहाल विदेशों में जाकर पढ़ना एक मामूली सी बात बन गयी है, विदेशों से चीन में आकर पढ़नेवालों की संख्या भी बराबर बढ़ती जा रही है। आज के इस कार्यक्रम में हम आप को इसी संदर्भ पर एक आलेख सुनाएगें।

सुश्री चू जी चुएन जर्मनी गोथे यूनीवर्सिटी के पेइचिंग कालेज की एक कर्मचारी है। 1999 में विश्वविद्यालय से स्नातक होने के बाद के तीन साल अध्यापिका का काम करने के बाद ,उन्होने जर्मनी में पढ़ने का फैसला लिया। जर्मनी के स्टेगर्ट यूनीवर्सीटी में सुश्री चू जी चुएन ने समतल डिजाइन सीखना शुरू किया, इस अवसर पर उन्हे अन्य कई विदेशों की सैर करने का मौका भी मिला। उन्होने कहा कि चार साल की विदेशी पढ़ाई में उन्होने अपनी जिन्दगी का नया अर्थ निकाला है। उन्होने कहा(आवाज 1) विदेश में अपने को नया रूप देने के साथ मैने अन्य देशों का दौरा किया और इस मौके को लेकर अपने विचारों को नया रूप दिया। मेरे दिल में पहले जैसी घबराहट नहीं रही, मैंने नयी दुनिया में जीना सीख लिया, विशेषकर दोनों देशों की संस्कृति की समझ में भारी प्रगति हुई।

सुश्री चू जी चुएन सीमापार संस्कृति आदान प्रदान के कार्य में जुटी हुई है, इधर के सालों में उनकी तरह बहुत से चीनी लोगों ने विदेशों में पढ़ना शुरू कर दिया है, उनके चिन्ह दुनिया के हर कोने में फैल रहे हैं। चीनी विदेशी छात्र समूह की बढ़ती प्रगति पर बोलते हुए चीन स्थिति जर्मनी के राजदूत मिशेल शेफर ने भाव विभोर हो कर कहा(आवाज 2) वर्तमान कुल 30 हजार चीनी छात्र जर्मनी में अध्ययन कर रहे हैं और उनकी संख्या बढ़ती जा रही है। जर्मनी अब चीनी छात्रों के विदेशों में पढ़ने वाले देशों में सबसे ज्यादा छात्र वाला देश बन गया है, वह अमरीका,फ्रांस और अन्य यूरोपीय देशों से कहीं ज्यादा है।

चीनी लोगों के विदेशों में पढ़ने की लहर उस समय की सामाजिक व आर्थिक पर्यावरण से घनिष्ठ संबंध रखता है। 19 वीं शताब्दी में चीन पर विदेशों का आक्रमण व अपने देश के अन्दर उस समय की सरकार के भ्रष्टाचार होने की पृष्ठभूमि में बहुत से प्रतिभाशाली चीनी जवान चीन को बलवान देश व आर्थिक में शक्तिशाली देश बनाने का राज ढूंढने यूरोप, अमरीका व जापान आदि देशों में पढ़ने गए थे. चीन के मशहूर राजनीतिक नेता चओ एन लाई, तंग श्याओ फिंग व मशहूर विज्ञानी छयेन श्वे शन आदि इन प्रतिभाशाली लोगों के प्रतिनिधि हैं। 1949 में चीन लोक गणराज्य की स्थापना के बाद विचारधारा व अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण की वजह से चीन की शिक्षा आदान प्रदान बन्द रहा। 1978 में खुलेपन व आर्थिक सुधार ने इस स्थिति को बदल डाला, शिक्षा अन्तरराष्ट्रीय सहयोग सवाल फिर से सरकार का एक महत्वपूर्ण मुददा बन गया। स्वर्गीय चीनी नेता तंग श्याओ फिंग ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि हजारों करोड़ों प्रतिभाशाली लोगों को विदेशों में जाकर पढ़ने भेजा जाए, ताकि चीन के विकास को प्रेरक शक्ति मिल सके।

इसी साल के दिसम्बर में प्रथम जत्थे के 52 लोग सरकारी पैसों से अमरीका में पढ़ने के लिए भेजे गए। चीनी शिक्षा मंत्रालय के अन्तरराष्ट्रीय सहयोग व आदान प्रदान विभाग के निदेशक सुश्री चांग श्यो छिन ने कहा कि तीस सालों में चीन अब दुनिया में विदेशों में पढ़ने वाले छात्रों का सबसे बड़ा देश बन गया है। उन्होने कहा (आवाज 3) 1978 से 2007 तक हमारे देश ने विभिन्न देशों में कुल 12 लाख छात्र भेजे हैं, जो वर्तमान 100 से अधिक देशों व क्षेत्रों में अध्ययन कर रहे हैं।

वर्तमान सरकार की तरफ से भेजे जाने वाले लोगों के अलावा, चीन में अपने खर्चे से विदेशों में पढ़ने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है, यह चीनी लोगों के भौतिक स्तर की उन्नति के साथ विदेशी भाषा की तकनीकी स्तर में उन्नति होने का एक प्रमुख कारण है। जानकारी के अनुसार, विदेशों में पढ़कर वापस स्वदेश लौटने वाले लोगों की संख्या 3 लाख जा पहुंची है, वे अपनी जगहों में देश के आधुनिकीकरण निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। खुलेपन व आर्थिक सुधार के चलते, अधिकाधिक विदेशी लोग भी चीन के तीव्र विकास , आर्थिक प्रगति व रंग बिरंगी संस्कृति से मुग्ध होकर चीन में बढ़चढ़ कर आने लगे हैं।

भारतीय युवक विकाश कुमार सिंह इन में से एक हैं, वर्तमान में वह चीनी जन यूनिवर्सिटी में मास्टर डिग्री का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होने हमारे संवाददाता को बताया कि मिडिल स्कूल में पढ़ते समय उन्हे चीन के चौकोर आकार वाले शब्दों पर भारी दिलचस्पी उत्पन्न हुई, तब से वह चीन की संस्कृति पर मुग्ध हो गए हैं। भारत की जवाहरलाल नेहरू यूनीवर्सिटी में चीनी भाषा विभाग से स्नातक होने के बाद, श्री विकास कुमार सिंह को चीन में एक साल तक पढ़ने का सुअवसर मिला, तब से उन्होने चीन को अपना घर समझ लिया । उन्होने कहा(आवाज4) मुझे चीन की परम्परागत संस्कृति पर भारी रूचि है, चीन की चाय,चीन की मदिरा संस्कृति, चीन का वसंत त्यौहार व ड्रेगन बोट आदि उत्सव पर उन्हे गहरी दिलचस्पी रही है। क्लास में हमारे अध्यापक हमें चीन की संस्कृति, समाज व राजनीति पर जानकारी देते रहे हैं, मुझे इस जानकारी से चीन पर अधिक रूचि होने लगी है, मैं चीन में रहना चाहता हूं।

इस विचार के आधार पर विकास कुमार सिंह ने चीनी जन यूनिवर्सिटी के अन्तरराष्ट्रीय संबंध कालेज में मास्टर डिग्री का अध्ययन करना शुरू किया और उन्हे चीन का स्कोलरशिप भी हासिल हुआ। फिलहाल वह चीन में आन्नदपूर्ण जीवन व शिक्षा जीवन बिता रहे हैं। चीनी शिक्षा मंत्रालय के आंकड़ो के अनुसार, 1978 से 2007 के तीस सालों में कोई 13 लाख छात्र चीन में पढ़ने आए हैं, केवल 2007 में करीब 2 लाख विदेशी छात्र चीन में पढ़ने आए थे। चीनी शिक्षा मंत्रालय के अन्तरराष्ट्रीय सहयोग व आदान प्रदान ब्यूरो के चीनी भाषा कार्य विभाग के निदेशक चाओ लिंग सान ने जानकारी देते हुए कहा कि इधर के सालों में विदेशों से चीन में पढ़ने आने वालों की संख्या प्रति वर्ष 20 प्रतिशत की गति से बढ़ती जा रही है। उन्होने कहा(आवाड5) हमारा देश अन्तरराष्ट्रीय छात्रों को अधिकाधिक आकर्षित कर रहा है। 2007 में दुनिया के 188 देशों व क्षेत्रों से आए विदेशी छात्र फिलहाल चीन के 31 प्रांतो, स्वायत्त प्रदेशों व केन्द्रीय शहरों के 500 से अधिक विश्वविद्यालयों व अन्य शिक्षा संस्थाओं में पढ़ रहे हैं, विदेशी छात्रों का अध्ययन विषय उच्च शिक्षालयों के सभी 11 प्रमुख मेजरों से संबंध रखता है।

चीन में पढ़ने वालों की मांग को पूरा करने के लिए, चीन ने एक बहुत सुविधाजनक मार्ग स्थापित किया है, विभिन्न स्तरीय सरकारों ने सरकारी स्कोलरशिप समेत यूनिवर्सिटी स्कोलरशिप आदि पूंजी सहायता के माध्यम को भी परिपूर्ण किया है और अनेक उदार नीतिया तय की हैं। चीनी जन यूनिवर्सिटी के विदेशी छात्र मामला कार्यालय के निदेशक चांग क्वो चंग ने हमें बताया(आवाज 6) बहुत सी कुंजीभूत यूनिवर्सिटियों ने चीनी छात्र व विदेशी छात्र आपसी सहायता व आपसी शिक्षा मदद दलों की स्थापना की है। इस के साथ विदेशी छात्रों के वास्तविक स्थिति के मुताबिक उनकी जरूरत को ध्यान में रखते हुए उनकी मांग के अनुरूप पाठयक्रमों का इन्तेजाम करने के साथ पूरी अंग्रेजी से पढ़ाने का बन्दोबस्त भी किया है।

वर्तमान चीन में पढ़ने आने वाले देशों में आसपास के पड़ोसी देश व यूरोपीय व अमरीका प्रमुख हैं, केवल कोरिया गणराज्य व जापान से आने वाले छात्रों की संख्या करीब 80 हजार से अधिक हैं। वे अकेले चीनी भाषा ही नहीं बल्कि चीन के सर्वश्रेष्ठ अध्ययन विषयों पर भी पूरी लगाव से पढ़ रहे हैं। श्री चाओ लिंग सान ने कहा कि चीन में पढ़ने की सरगर्मी के पीछे आर्थिक व संस्कृति तत्व ही नहीं चीन की शिक्षा के अन्तरराष्ट्रीयकरण के लगातार गहन होना भी एक मुख्य कारण है। उन्होने कहा(आवाज7) अब तक हमारे देश ने 33 देशों व क्षेत्रों के साथ उच्चतम शिक्षालयों के डिप्लोमा को आपसी मान्यता देने के समझौते संपन्न कर लिए हैं। चीन के विश्वविद्यालयों की रंगबिरंगी संस्कृति ने विदेशी छात्रों को चीन में अध्ययन करने व स्वेदश लौटने के बाद रोजगार पाने के सुअवसर प्रदान किए हैं। हमारे देश की शिक्षा फीस अपेक्षाकृत कम है, और तो और विदेशी छात्रों को स्वेदश लौटने के बाद रोजगारी पाने का मौका भी बढ़ता जा रहा है।