चश्मा पहने केल्ज़ांग येशे देखने में बहुत पतले दुबले हैं। वे उन के साथी पासांग त्सेरिंग के साथ चुपके से कुछ लिख रहे हैं। हमारे आगमन से वहां की शांति टूटी। श्री केल्ज़ांग येशे, जो तिब्बत की तिब्बती भाषी प्राचीन ग्रंथावली के प्रकाशन गृह के प्रधान हैं, ने गौरव के साथ हमें बताया कि हालांकि हमारे प्रकाशनगृह में केवल आठ कर्मचारी हैं, लेकिन हमारे काम बहुत ज्यादा हैं। उन्होंने कहाः
"हमारे तिब्बती भाषी प्राचीन ग्रंथावली के प्रकाशनगृह का मुख्य कर्तव्य प्राचीन तिब्बती पुस्तकों को बचाकर उस का संग्रहण-संकलन करना है। हम प्राचीन तिब्बती ग्रंथों की तलाश के लिए समय-समय पर जन समुदाय व विभिन्न मंदिरों में जाया करते हैं , और अब तक हमें छह सौ से ज्यादा पांडुलिपि, काष्ठ छापे की कॉपि आदि तिब्बती भाषी ग्रंथावली नसीब हो चुकी है । उन ग्रंथावली को हम उन के मूल्य के आधार पर संपादित और संकलित करके क्रमशः प्रकाशित करते हैं ।"
चीनी मूल्यवान् सांस्कृतिक विरासत के रूप में तिब्बती संस्कृति अपने विशेष व रहस्यमयी धार्मिक विषय से देश-विदेश के बहुत से अनुसंधानकर्ताओं को आकर्षित करती है। इतिहास व धर्म आदि कारणों से बेशुमार तिब्बती भाषी प्राचीन ग्रंथ जन साधाण के हाथों में चले गए हैं। और कम लोग उन्हें जानते हैं। पिछली शताब्दी के अस्सी वाले दशक के अंत में तिब्बत ने विशेष तौर पर तिब्बती भाषी प्राचीन ग्रंथावली का प्रकाशनगृह स्थापित किया। उसने क्रमशः तिब्बत के इतिहास, धर्म, चिकित्सा, पंचांग, महान व्यक्तियों की जीवनी आदि से जुड़ी 50 से ज्यादा पुस्तकों को प्रकाशित किया, जिससे उन तिब्बती प्राचीन ग्रंथों, जिन की सैकड़ों वर्षों में केवल पांडुलिपि व काष्ठ छापे की कॉपि मौजूद थी, के विभिन्न सुन्दर आधुनिक मुद्रित संस्करण भी प्रकाश में आए हैं। उन में अनुसंधान करने व उन का संग्रह करने का बड़ा मूल्य भी हो गया है।
हजार वर्ष पुराने तिब्बती भाषी प्राचीन ग्रंथावली का संग्रहण-संकलन करके प्रकाशित करने में बहुत गहरा ज्ञान होने की ज़रूरत है। तिब्बती भाषी प्राचीन ग्रंथावली प्रकाशन गृह में सभी कर्मचारी तिब्बती भाषा के धुरंधार विद्वान है। और सभी लोग तिब्बत विद के अनुसंधान के क्षेत्र में पारंगत हैं। खुद श्री केल्ज़ांग येशे भी प्राचीन तिब्बती भाषा व संस्कृति विषय के स्नातकोत्तर हैं, तिब्बत के प्रसिद्ध विद्वान व बड़े अनुवादक हैं। प्रकाशनगृह के उपप्रधान श्री पासांग त्सेरिंग भी तिब्बती भाषा के एक उच्च स्तरीय अनुवादक हैं और वर्षों से वे लगातार तिब्बती भाषा के प्रकाशन कार्य में संलग्न रहे हैं।
50 वर्षीय केल्ज़ांग येशे एक बहुत वाकपटु, मिलनसार व विनोदपूर्ण आदमी हैं। उन्होंने कहा कि हमारे प्रकाशन गृह में ये सभी ग्रंथावली तिब्बती संस्कृति का खजाना है। एक फ़ाइल रूम में संवाददाता ने पीले कपड़े से लपेटी गयी अनेक पांडुलिपि की कॉपियां देखने को पायी। वे सभी सुव्यवस्थित रूप से पुस्तक की अलमारी में रखी हुईं हैं। श्री केल्ज़ांग येशे ने कहा कि वे ग्रंथावली बहुत मूल्यवान् हैं, हम ने बहुत मुश्किल से या बहुत खर्च करके उन्हें खरीदे है। प्राचीन ग्रंथावली के प्रकाशन कार्य संभालने वाले लोगों के लिए सब से खुशी की बात यह है कि वे जन साधारण के हाथों में से इस संसार में एक एकमात्र मौजूद प्रति ढूंढ़ कर लाते हैं। जब कभी उन्होंने यह सुना कि कहां कहां पुरातन पुस्तक मिल सकती है, तो वे जल्द ही इसे ढूंढ़ने के लिये वहां भागे । पर कभी कभी कोई उन्हें खाली हाथ भी लौटना पड़ा । केल्ज़ांग येशे को तो एक बार ऐसी घटना का सामना करना पड़ा था। इस के बारे में परिचय देते हुए उन्हों कहाः
"एक बार किसी ने हमें बताया था कि फलां जगह में बहुत ऊंचा ऐतिहासिक मूल्य वाली पुस्तक मिल सकती है, इसलिये हम बड़ी खुशी से वहां जा पहुंचे । वहां जाने का रास्ता बहुत दुर्गम है। हमें पैदल से चलना पड़ा, पहाड़ों पर चढ़े और फिर गुफ़ा के अंदर में भी घुसे । लेकिन अंत में जब हमने इस पुस्तक को ढूंढ़कर देखा, तो पता चला है कि यह केवल एक अरबी भाषा की पुस्तक है , सफेद कागज वाली यह पुस्तक निहायत प्राचीन भी नहीं है । हम बहुत से समय लगाकर वहां गये, लेकिन खाली हाथ लौटना पड़ा। पर हम इस बात पर नहीं पछताये, क्योंकि अगर वह एक असली पुरातन तिब्बती पुस्तक होती, और हम वहां नहीं गये होते, तो हम वह सुअवसर खो बैठ जाते, तभी हमें सचमुच ही पछताना पड़ता।"(चंद्रिमा)
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