2009-03-02 17:00:01

चीन ने तिब्बत के जनवादी सुधार के 50 वर्ष के बारे में श्वेत पत्र जारी किया

चीनी राज्य परिषद के सूचना कार्यालय ने 2 मार्च को तिब्बत के जनवादी सुधार के 50 वर्ष पर श्वेत पत्र जारी किया । यह तिब्बत के बारे में चीन सरकार द्वारा जारी आठवां श्वेत पत्र ही है । श्वेत पत्र में कहा गया है कि तिब्बत का जनवादी सुधार तिब्बत के सामाजिक विकास व मानवाधिकार प्रगति के युगांतर की भारी ऐतिहासिक घटना ही नहीं , बल्कि मानव जाति की संभ्यता के विकास व विश्व मानवाधिकार इतिहास में एक भारी महत्वपूर्ण प्रगति भी है ।

श्वेत पत्र प्रस्तावना , पुराने तिब्बत की सामंती भूदास व्यवस्था , शक्तिशाली तिब्बत का जनवादी सुधार , आधी सदी के तिब्बत में हुए ऐतिहासिक परिवर्तन और अंतभाषण इन पांच खंडों में बटा हुआ है , जिस में 50 साल पहले तिब्बत में हुए जनवादी सुधार की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि , सुधार प्रक्रिया और सुधार के बाद तिब्बत में हुए परिवर्तनों व जनवादी सुधार में प्राप्त उल्लेखनीय उपलब्धियों का तफसील से परिचय कराया गया है ।

श्वेत पत्र में कहा गया है कि 1959 से पहले तिब्बत में यूरोप के मध्यकालीन शताब्दी से कहीं अधिक अंधकारमय व पिछड़ी भूदास व्यवस्था लागू की जाती थी , 14 वें दलाई लामा तिब्बती लामा बौद्ध धर्म के गरू सम्प्रदाय के सरगना के रुप में तिब्बत के स्थानीय सरकारी शासनाध्यक्ष थे और तिब्बती सामंती भूदास मालिकों के आम प्रतिनिधि भी थे । तिब्बती जनसंख्या के पांच प्रतिशत के अधिकारियों , कुलानों व मठों के उच्च स्तरीय भिक्षुओं के पास तिब्बत के अधिकतर उत्पादन सामग्री और भौतिक मानसिक संपदा थी , जबकि तिब्बत की 95 प्रतिशत आबादी वाले भूदासों व कुलियों को उत्पादन सामग्री व शारीरिक स्वतंत्रा नसीब नहीं थी और वे अत्याचार व शोषण झेलते हुए अत्यंत गरीब शोचनीय स्थिति में पड़े थे ।

श्वेत पत्र में बड़ी संख्या में ऐतिहासिक सामग्री के माध्यम से तिब्बत के जनवादी सुधार की पृष्ठभूमि व प्रक्रिया का तफसील से परिचय कराया गया है ।1951 में चीन की केंद्र सरकार ने तिब्बत की स्थानीय सरकार के साथ तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के उपाय से जुड़ा समझौता संपन्न किया , इस समझौते में इस बात पर जोर दिया गया है कि तिब्बत की स्थानीय सरकार को सुधारने में पहल करना चाहिये । पर चीन विरोधी बाहरी शक्तियों के उकसावे व समर्थन में तिब्बत के ऊपरी शासक गुट ने सुधार विरोधी रुख अपनाकर हमेशा से सामंती भूदास व्यवस्था को बनाये रखने की कोशिश की ।

दस मार्च 1959 को तिब्बत की स्थानीय सरकार ने खुलेआम उक्त समझौते को धज्जियां उड़ायीं और चीन विरोधी बाहरी शक्तियों के समर्थन तले सशस्त्र विद्रोह छेड़ा । चीन की केंद्र सरकार व तिब्बती जनता ने साथ मिलकर इस सशस्त्र विद्रोह को दृढ़ता से शांत कर दिया , उसी साल 28 मार्च को स्वर्गीय प्रधान मंत्री चओ एन लाई ने राज्य परिषद का आदेश जारी कर तिब्बत की स्थानीय सरकार को भंग कर दिया और सामती भूदास व्यवस्था को रद्द कर लाखों भूदासों व कुलियों को मुक्त कराया ।

तिब्बत में जनवादी सुधार के बाद केंद्र सरकार ने तिब्बत में सामंती भूदास व्यवस्था को रद्द करने के अतिरिक्त भूमि सुधार और भूदासों व कुलियों को अपनी भूमि का मालिक बनने देने जैसे सिलसिलेवार सुधार किये । साथ ही राजनीति को धर्म से अलग करने और स्वतंत्रता से धार्मिक विश्वास करने की नीति भी लागू की , जिस से तिब्बती जनता को धर्म पर विश्वास करने का हक प्राप्त हो गया है । तिब्बत में आम चुनाव व्यवस्था लागू होने से तिब्बती जनता सच्चे मायने में अपने देश का मालिक बन गयी है ।

श्वेत पत्र में कहा गया है कि तिब्बत के जनवादी सुधार के पिछले 50 सालों में राजनीतिक , आर्थिक , सांस्कृतिक , शैक्षणिक व सामाजिक विकास में भारी ऐतिहासिक परिवर्तन हुए हैं । 1965 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना कर जातीय स्वशासन व्यवस्था सुनिश्चित हो गयी है । 1951 से 2008 तक केंद्र सरकार ने तिब्बत के आधारभूत संस्थापनों के निर्माण में क्रमशः एक खरब से अधिक य्वान लगा दिये । 1994 से लेकर अब तक तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के जी डी पी में औसत वार्षिक वृद्धि दर 12. 8 प्रतिशत बनी हुई है , जो समूचे देश के औसत स्तर से अधिक है ।

श्वेत पत्र के अंत में बताया गया है कि तिब्बत अभी इतिहास के सब से अच्छे विकास के दौर में है । पर पिछले 50 सालों में दलाई गुट ने सामंती भूदास व्यवस्था की बहाली की कोशिश कभी भी नहीं छोड़ी । दलाई गुट के साथ संघर्ष स्वशासन का सवाल न होकर प्रगति व पीछे वापसी और पुनरेकीकरण व विभाजन का संघर्ष ही है । श्वेत पत्र में दोहराया गया है कि केंद्र सरकार का 14 वें दलाई लामा को देशभक्तिपूर्ण रूख पर वापस लौटने देने का गेट हमेशा के लिये खुला हुआ है , आइंदे भी खुला रहेगा ।

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