थोड़ी देर में वह हंस नजदीक आ पहुंचा , मौका देख कर कङ -लै ने तीर के तंतु पर जोर का बल मार कर छोड़ा ,इस से फुङ की तीव्र आवाज निकली , देखते ही देखते इस तेज आवाज के साथ वह हंस अनायास ऊपर की ओर झपक गया , फिर वही हवा में कई बार निर्बल पंख फड़फड़ा करके अन्त में नीचे की ओर गिर पड़ा ।
इस करिश्मा पर राजा को अत्यन्त बड़ा आश्चर्य हुआ , उस का मुह देर तक खुला हुआ रहा , उस ने ताली बजा बजा कर कहा , कमाल है , आदमी का तीरंदाजी कौशल इतने ऊंचे स्तर पर भी पहुंच सकता है । सचमुच ताज्जुब की बात है । कङ -लै ने राजा को समझाते हुए कहा , महा राजा , वास्तव में मेरा तीरंदाजी कौशल इतना ऊंचा नहीं है । असलियत बात यह है कि हंस के शरीर पर घाव लगा है । राजा को और आश्चर्य हुआ , बहुत दूर से तुझे कैसा मालूम हो गया था कि हंस पर घाव लगा है . कङ -लै ने समझाया , यह हंस बहुत धीमी गति से हमारी ओर उड़ने आ रहा था और उस की आवाज भी धीमी और दुख से भरी हुई सुनाई देती थी , अनुभव मुझे बताता है कि उड़ने की गति इसलिए धीमी थी कि उस के शरीर में घाव लगा है और आवाज दुखी होने का कारण है कि वह अपने दल से लम्बे समय से अलग थलग हो गया था । एकांकी स्थिति में पड़ी घायल चिड़िया जरूर घबराती रहती है । ऐसी मानसिक हालत में तीर के तंतु की तेज आवाज सुनने पर वह अवश्य घबराते हुए ऊंपर की ओर भाग जाती है , तेज गति से पंख फड़फड़ाने के कारण उस के शरीर में पड़ा घाव फिर से फट सकता है और वह भी असह हो कर नीचे गिर आता है ।
यह नीति कथा हमें बताती है कि किसी बात पर गौर से विचार करने पर उस की असलियत का पता लग सकता है । इसलिए हमें गौर से चीजों का अध्ययन करने तथा उस का विश्लेषण करने की आदत प्राप्त करना चाहिए । चीन में इस नीति कथा से जो कहावत बनाया गया है , उस का अर्थ है कि बड़ी घबराने की स्थिति में कोई भी अपने को बचा नहीं सकता ।