तिब्बती बौद्ध धर्म का एक प्रमुख गुरू पंचन लामा से भी जाना जाता है, पंचन का पूरा नाम पंचन अर्डेनी है , जो तिब्बती बौद्ध धर्म के मुख्य संप्रदाय यानी गेलुग अर्थात पीड संप्रदाय के दो नेताओं में से एक है, इस संप्रदाय के अन्य एक नेता दलाई लामा है । तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायियों के दिल में पंचन लामा के प्रति असीम आस्था है , वे सर्वोपरि अध्यात्मिक प्रतिष्ठा रखते हैं । वर्तमान पंचन लामा 11 वें पंचन अर्डेनी क्वोजी ग्यीबो हैं ।
पंचन की यह उपाधि सब से पहले 1645 में चीन के मिंग राजवंश के अंतिम काल में इस्तेमाल में आयी थी । उस काल में तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय के प्रमुख नेता लॉबसांग क्वोजी थे , वे गेलुग संप्रदाय के संस्थापक गुरू त्सोंगखापा के उत्तराधिकारी थे , जो तत्काल शिकाजे में स्थित ताशिलुंपो मठ के मठाध्यक्षी थे । सन् 1641 में छिंगहाई प्रदेश पर अधिकृत मंगोल सत्ता के गुशरी खान ने तिब्बत में प्रवेश किया और स्थानीय तिब्बती सत्ता का अंत कर तिब्बत पर अपना आधिपत्य कायम किया । 1645 में गुशरी खान ने गेलुग के नेता लोबासांग क्वोजी को पंचन बोकेदो की उपाधि प्रदान की । पंचन बोकेदो संस्कृत , तिब्बती और मंगोली भाषाओं का मिश्रित नाम है , इस में पं का अर्थ संस्कृत में पंडित , चन का अर्थ तिब्बती में महा और बोकेदो का अर्थ मंगोली में वीर है , पूरे नाम का अर्थ है बुद्धिमान और बहादुर विद्वान । लोसांग क्वोजी को चौथे पंचन के पद पर नियुक्त किए गए थे , इस से पहले तीन पंचन इस संप्रदाय के स्वर्गीय पूर्व गूरूओं को प्रदान किए गए थे , प्रथम पंचन त्सोंगखापा के शिष्य केदुपजी को मुहैया किया गया । गुशरी खान के आदेश के अनुसार चौथे पंचन लामा ताशिलुंपो मठ के मठाध्यक्षी बने और उन का तिब्बत के उत्तर पश्चिम भाग पर राज कायम हुआ ।
लोसांग क्वोजी के निर्वाण के बाद उन के उत्तराधिकारी लोसांगयीसी को छिंग राजवंश दरबार द्वारा पंचन अर्डेनी की पदवी प्रदान की गयी और स्वर्ण प्रमाण पत्र और स्वर्ण मुहर दिया गया । लोसांगयीसी पांचवें पंचन हो गए । पंचन अर्डेनी में से अर्डेनी का अर्थ मंजुरिया भाषा में रत्न मणि है यानी पंचन अर्डेनी का अर्थ है अमोल पंडित । यह उपाधि औपचारिक , राजनीतिक और विधिशील माना गया , जो आज तक चली आयी ।