चीन के तिब्बत में दलाई लामा उपाधि को अस्तित्व में आए अब 400 से ज्यादा साल हो गया है । दलाई लामा का इतिहास तिब्बत के राजनीतिक इतिहास से घनिष्ठ रूप से जुड़ा है । असल में दलाई लामा यह उपाधि तिब्बत की मूल संस्कृति का अंग नहीं है , वह एक बाहर से आयातित शब्द है ।
वर्ष 1578 यानी चीन के मिंग राजवंश के वानली काल के छठे साल में तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय यानी पीड शाखा के नेता सोइनाम ग्याको छिंगहाई में जा कर धार्मिक प्रचार करने लगे, इस के दौरान वे मंगोल जाति के कबालाई मुखिया अंदाहाम को मनवा कर बौद्ध धर्म स्वीकार कराने में सफल हुए । इस बीच दोनों एक दूसरे को उपाधि प्रदान कर अपना अपना समादर प्रकट करते थे । अंदाहाम ने सोइनाम ग्याको को दलाई लामा की उपाधि भी दी , जिस में दलाई शब्द का मंगोल भाषा में अर्थ सागर है और लामा का तिब्बती भाषा में अर्थ गुरू । शुरू शुरू में दलाई लामा उपाधि मात्र निजी तौर पर एक दूसरे को प्रदत्त सादर संबोधन था , जिस का राजनीति और विधि से कोई सरोकार नहीं था ।
उस समय तक , अंदाहाम को मिंग राजवंश द्वारा न्याय प्रिय राजा की पदवी प्रदान की जा चुकी थी । सोइनाम ग्याको ने उन के माध्यम से मिंग राजवंश के सम्राट से अपने लिए उपाधि मांगी , उन्हों ने खुद मिंग राजवंश के दरबारी प्रधान मंत्री के नाम भी पत्र लिख कर उपाधि मांगी । कुछ समय बाद , मिंग राजवंश के वानली सम्राट ने राजाज्ञा जारी कर पदवी प्रदान की , जिस में दलाई का शब्द भी है । 1587 में मिंग राजवंश की सरकार ने औपचारिक रूप से इस उपाधि को मान्यता दी और सोइनाम ग्याको को तीसरी पीढी के दलाई लामा की उपाधि दी गयी , क्योंकि प्रथम व द्वितीय दलाई की उपाधि अलग अलग तौर पर गेलुग संप्रदाय के संस्थापक के स्वर्गीय शिष्य गेन्दुन जुबा और गेन्दुन ग्याको को प्रदान कर दी गयी ।
वर्ष 1653 में चीन के छिंग राजवंश के काल में पांचवें दलाई लामा छिंग सम्राट के निमंत्रण पर पेइचिंग आये । छिंग सम्राट स्वुन ची ने उन्हें दलाई लामा की उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया , इस तरह पांचवें दलाई लामा को अधिकृत रूप से पदवी दे कर स्वर्ण प्रमाण पत्र और स्वर्ण मुहर भी मुहैया किया गया । तभी से दलाई लामा की उपाधि में राजनीतिक महत्व और विधिशीलता का समावेश हुआ । सन् 1751 में छिंग राजवंश ने तिब्बत पर अपने शासन को बेहतर चलाने के लिए सातवें दलाई लामा को स्थानीय प्रशासन का अधिकार सौंपा । इसी समय से तिब्बत में राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित सत्ता की व्यवस्था कायम हुई ।
सन् 1959 में तिब्बत से भारत में भागे दलाई लामा तिब्बत का 14 वां दलाई लामा है ।