ईस्वी वर्ष 618 में चीन के इतिहास में महा थांग राजवंश की स्थापना हुई , यह बहुत शक्तिशाली राजवंश है और तत्कालीन पूर्वी एशियाई क्षेत्र की सभ्यता का केंद्र बन गया था, आसपास के छोटे राज्यों ने थांग राजवंश से मैत्रीपूर्ण संबंध कायम करने की कोशिश की ।
उसी समय तिब्बत के राजा सोंगजान कानबू ने तिब्बती क्षेत्र का एकीकरण किया और एकीकृत थूपो राजवंश स्थापित किया । राजा सोंगजान कानबू ने थांग राजवंश के साथ घनिष्ठ संबंध कायम करने की कोशिश की । वर्ष 634 से उन्होंने दो बार अपने मंत्री गार तोंगत्सान को थांग राजवंश की राजधानी छांग आन भेज कर थांग राजकुमारी के साथ शादी करने की मांग की । सात साल बाद थांग राजवंश के राजा ली शीमिन ने राजकुमारी वनछंङ और राजा सोंगजान कानबू की शादी की मंजूरी दी। इस तरह राजकुमारी वनछङ लम्बी यात्रा कर तिब्बत पठार आ गईं । थूपो के मंत्री गार तोंगत्सान की छांग आन यात्रा तथा उन्होंने थांग राजवंश के शाह द्वारा पूछे गए मुश्किल सवालों का सही जवाब देकर अपने राजा का सुन्दर राजकुमारी वनछङ के साथ शादी करने का कार्य पूरा किया। इस के बारे में तिब्बती लोगों के बीच अनेक लोक कथाएं आज तक प्रचलित हैं ।
राजा सांगजान कानपू ने थांग राजकुमारी के साथ शादी करने की खबर प्राप्त करने के बाद राजकुमारी वनछङ की अगवानी के लिए अपने सैनिकों का नेतृत्व कर खुद थांग और थूपो के प्राचीन रास्ता यानी आज के छिंगहाई प्रांत में स्थित पीली नदी के उद्गम स्थल गए और यहां एक भवन का निर्माण किया । उन्होंने इस भवन में राजकुमारी वनछंङ के साथ प्रथम रात्रि बिताई ।
राजा सोंगजान कानपू और राजकुमारी वनछङ तिब्बत की राजधानी ल्हासा जाने के दौरान आज के छिंगहाई प्रांत के य्वूशू तिब्बती प्रिफैक्चर में एक महीने के लिए ठहरे । अवकाश के समय राजकुमारी वनछङ ने छांग आन से लाए बीजों को उगाया और स्थानीय लोगों को ऑटा व शराब बनाने की तकनीक सिखायी । इस तरह य्वूशू वासी राजकुमारी वनछङ के बहुत आभारी हैं । स्थानीय तिब्बती लोगों ने उन के शीविर को सुरक्षित किया और उन की छवि को पत्थर पर अंकित किया और हर वर्ष उस का पूजा करते हैं ।
वर्ष 642 में राजा सोंगजानकानबू और राजकुमारी वनछङ सही सलामत तिब्बत की राजधानी ल्हासा पहुंचे और स्थानीय लोगों ने गाते नाचते उन का स्वागत किया ।
उसी समय थांग राजवंश में बौद्ध धर्म बहुत लोकप्रिय था । लेकिन थूपो यानी आज के तिब्बत क्षेत्र में बौद्ध धर्म ने अभी तक प्रवेश नहीं किया था। राजकुमारी वनछङ एक बौद्ध धर्म अनुयायी थी । वे बौद्ध सूत्र व बुद्ध की मूर्तियों को थूपो में लायीं और यहां बौद्ध धर्म के मठों का निर्माण किया। कहते हैं कि वर्तमान में तिब्बत का मशहूर जोखान मठ राजकुमारी वनछङ के सुझाव पर निर्मित किया गया था। आज जोखान मठ के प्रमुख भवन के केंद्र में बुद्ध शाक्यमुनि की मूर्ति सुरक्षित है, जिसे राजकुमारी वनछङ थांग राजवंश की राजधानी छांग आन से तिब्बत लायीं । बाद में राजकुमारी वनछङ की राय पर रामोचे मठ की स्थापना की गई । इस तरह बौद्ध धर्म धीरे-धीरे थू पो में फैला। इस के साथ ही राजकुमारी वनछङ ने छांग आन से बीजों को तिब्बत ला कर स्थानीय लोगों को उगाने का तरीका सिखाया । जिन में भीतरी इलाके से लाए गए गेहूं का विकास लम्बे समय में आज के जौ के रूप में बदला । राजकुमारी वनछङ गाड़ियां, घोड़े, ऊंट तथा उत्पादन तकनीक और चिकित्सा लेखन भी थूपो में लायीं , जिन से स्थानीय सामाजिक प्रगति आगे बढ़ी ।
कहते हैं कि राजा सोंगजान कानबू ने राजकुमारी वनछंङ को बहुत पसंद किया और विशेष तौर पर उन के लिए आलिशान पोटाला महल का निर्माण किया । 17वीं शताब्दी में इस महान महल का दो बार व्यापक निर्माण किया गया। वर्तमान में पोटाला महल में बड़ी संख्या में सुन्दर भीत्ति चित्र सुरक्षित हैं, जिन में राजकुमारी वनछङ के तिब्बत की राजधानी ल्हासा पहुंचने के रास्ते में लोगों की आगवानी के भीत्ति चित्र भी शामिल हैं ।
राजा सोंगजान कानबू और राजकुमारी वनछङ की शादी के बाद चीन के भीतरी इलाके और थूपो के बीच संबंध बहुत मैत्रीपूर्ण रहा । इस के बाद के दो सौ वर्षौं के भीतर दोनों पक्षों के दूतों व व्यापारियों में घनिष्ठ आवाजाही रही । राजा सोगजान कानबू को भीतरी इलाके की संस्कृति पसंद थी और थूपो के शाही युवाओं को पढ़ने के लिए छांग आन भेजा गया । इस के साथ ही थांग राजवंश ने विभिन्न प्रकार के मज़दूरों को थूपो भेज कर तकनीक का प्रशिक्षण लिया। राजा सोंगजान कानबू और राजकुमारी वनछङ ने चीन के इतिहास के विकास के लिए भारी योगदान दिया है और आज तक वे तिब्बती व चीनी हान जाति के लोगों के दिलों में बसी हुई हैं ।