2009-02-24 16:23:11

तिब्बत की प्रतिक्रियावादी शक्तियों के सशस्त्र विद्रोह को शांत

    9 मार्च 1959 की रात, तत्कालीन ल्हासा मेयर ने गाक्सांग के निर्देश के अनुसार हान लोगों द्वारा दलाई लामा को आघात पहुंचाने की अफवाह फैला कर ल्हासा निवासियों को सड़क पर आवेदन प्रदर्शन करने और दलाई लामा को सैन्य कमान में सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने से रोकने के लिए उकसाया । 10 तारीख के सुबह, उकसावे में आए 2000 से ज्यादा ल्हासा निवासियों और सैकड़ों विद्रोहियों ने ल्हासा के पश्चिमी उपनगर के नोर्बु लिंगका में कार्यरत दलाई लामा को सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने जाने से रोका ।

 10 तारीख के दोपहरबाद, विद्रोहियों और गाक्सांग के प्रतिक्रियावादी अधिकारियों ने सभा बुलाकर केन्द्र से विच्छिन्न होने की घोषणा की और खुलेआम तिब्बत स्वाधीनता आंदोलन चलाया । विद्रोहियों ने ल्हासा में विज्ञप्ति चिपका कर तिब्बत को स्वाधीन देश घोषित किया और अपने प्रतिनिधियों को ल्हासा स्थित भारतीय जनरल कांसुलट भेज कर अपने स्वाधीनता आंदोलन की शुरूआत घोषित किया और भारत से संरक्षण प्रदान करने की मांग की । भारत में सक्रिय तिब्बती प्रतिक्रियावादियों ने भी तार मिल कर विश्व को तथाकथित तिब्बती स्वाधीन देश की स्थापना की खबर जारी की।

 10 तारीख की रात को हजारों सशस्त्र भिक्षु और तिब्बती सेना के विद्रोही सिपाही युद्ध की स्थिति में तैयार हो गए और ल्हासा के आसपास बिखेरे सशस्त्र विद्रोही तत्व भी ल्हासा में जमा होने के लिए आए । गाक्सांग ने शस्त्र गोदाम खोल कर विद्रोहियों में हथियार बांटे ।

 10 मार्च 1959 को तिब्बती विद्रोहियों ने खुले तौर पर देश का विभाजन करने वाला तिब्बत स्वाधीनता आंदोलन शुरू किया । बेशुमार सशस्त्र विद्रोही तत्वों ने ल्हासा की सड़कों पर तिब्बत स्वाधीनता की हांक लगायी और नॉर्बु लिंगका में तिब्बती सैन्य कमान के डिप्टी कमांडर साम्पो त्सेवांग रिगजिन को घायल कर दिया और पागबाल्हा सोनाम ग्यात्सो आदि अनेक तिब्बती जाति के देशभक्त व्यक्तियों को मार डाला । उन्हों ने दुकान खोलने की इजाजत नहीं दी और लोगों को विद्रोही प्रदर्शन करने पर मजबूर किया।

 इस बीच, तिब्बत स्थित केन्द्रीय प्रतिनिधि ने तीन बार दलाई लामा को पत्र लिख कर उनके विद्रोहियों के नियंत्रण में आने की स्थिति पर समझ व्यक्त की और केन्द्र की आशा है कि तिब्बती स्थानीय सरकार अपना गलत रूख बदल लेगी । वरना, केन्द्र को खुद सामने आकर देश के एकीकरण व एकता को बनाए रखने की कोशिश करनी पड़ेगी।

 अपने जवाबी पत्र में दलाई लामा ने कहा कि विद्रोही तत्व उन का संरक्षण करने के बहाने उन्हें नुकसान पहुंचाने की कार्यवाही कर रहे हैं, वे अब विद्रोह को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं, पर्याप्त विश्वसनीय शक्ति पाने के बाद वे तिब्बती सैन्य कमान में आएंगे । लेकिन 17 मार्च की रात में कुछ विद्रोही सरगनाओं के बंदोबस्त में दलाई लामा और उन के रिश्तेदार, सहचरी और रक्षक कुल 60 से ज्यादा लोग छद्मवेश में ल्हासा से भाग निकले और उसी रात ही तिब्बत के लोको क्षेत्र में भागे। तत्काल,चीनी राष्ट्राध्य माओ त्सेतुंग ने तिब्बती सैन्य कमान को आदेश दिया कि यदि दलाई लामा भाग निकले , जहां भी वह गये ,उसे मुक्ति सेना ना रोकेगी । इसी तरह दलाई लामा और उस के लोगों के दो हफ्तों के भाग निकलने के रास्ते में उन्हें मुक्ति सेना से पीछा करने और रोकने का नहीं सामना हुआ।

  ल्हासा में जमा हुए 7000 से अधिक विद्रोही तत्वों ने तोपों और मशीनगन जैसे भारी हथियारों से पोताला महल , नॉर्बु लिंगका और ल्हासा शहर के विभिन्न मजबूत निर्माणों पर कब्जा किया और 20 मार्च के तड़के ल्हासा स्थित कार्यालयों, मुक्ति सेना की टुकड़ियों और कारोबारों पर चौतरफा हमला बोला । 20 मार्च के सुबह ल्हासा में तैनात मुक्ति सेना ने आदेशानुसार जवाबी हमले किए और 22 मार्च के तड़के तक दो दिनों के समय में ल्हासा शहर के विद्रोह को पूरी तरह शांत कर दिया।

26 मार्च को दलाई लामा और उस के लोग लोको के लोंगची जिले पहुंचे, विद्रोहियों ने दलाई लामा का प्रतिनिधित्व करते हुए तथाकथित अस्थाई तिब्बत सरकार की स्थापना की घोषणा की और अपनी देशद्रोही कार्यवाही जारी रखी। 28 मार्च को चीनी प्रधान मंत्री चो एनलाई ने राज्य परिषद का आदेश जारी कर तिब्बती सैन्य कमान को तमान सशस्त्र विप्लवों को शांत करने का कार्य सौंपा और ऐलान किया कि उसी दिन तिब्बती स्थानीय सरकार को भंग किया गया और तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की तैयारी कमेटी को तिब्बती स्थानीय सरकार का कार्यभार प्रदान किया। दलाई लामा के फरार होने के दौरान पंचन लामा तैयारी कमेटी के कार्यवाक अध्यक्ष का पद संभालते रहे।

 31 मार्च को दलाई लामा भारत पहुंचे, उस ने भारत सरकार को कथित राजनीतिक शरण मांगा । भारत में दलाई लामा और उस के लोग चीन का विभाजन करने की कार्यवाही करते रहते हैं ।

 व्यापक तिब्बती जनता के समर्थन में 1961 के अंत में तिब्बत में तैनात जन मुक्ति सेना ने पूरे प्रदेश में विद्रोह की बची खुची शक्तियों का सफाया कर दिया ।