2009-02-23 17:01:04

वर्ष 1959 में तिब्बत की प्रतिक्रियावादी शक्तियों के सशस्त्र विद्रोह को शांत किया गया

  सन् 1951 तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति हुई, इस के बाद तिब्बत के ऊपरी तबके की प्रतिक्रियावादी शक्तियां लगातार तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बारे में समझौते का विरोध करती आयी थी। वे गुप्त रूप से कुछ लोगों का वारदात खड़े करने में समर्थन करते थे और सड़क पर जाकर तिब्बत स्वाधीनता के नारे लगाए । यद्यपि बाद के तिब्बत में बुनियादी तौर पर एकताबद्ध व स्थिर स्थिति बनी रही , तथापि विभाजन और विभाजन के विरोध और जनवादी सुधार आदि सवालों पर संघर्ष कभी नहीं रूका।

 तिब्बत की यथार्थ हालत के मुताबिक दलाई लामा और पंचन लामा तथा व्यापक जनता ने नीचे से ऊपर तक शांतिपूर्ण सलाह के तरीके से जनवादी सुधार करने का निश्चय किया । किन्तु सुधार विरोधी ऊपरी तबके के तिब्बती अधिकारियों ने सशस्त्र विद्रोह की साजिश रची और बल प्रयोग से जनवादी सुधार रोकने और भूदास व्यवस्था की रक्षा करने की कुचेष्टा की । इस बीच, कुछ प्रतिक्रियावादी लोगों ने भारत में भाग कर अपना राजनीतिक संगठन गठित किया और दूसरे देशों में सैनिक प्रशिक्षण लेने के लिए व्यक्ति भेजे और तिब्बत में सशस्त्र विप्लव करने की तैयारी की। अप्रैल 1956 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की स्थापना तैयारी कमेटी की स्थापना के समारोह में दलाई लामा तैयारी कमेटी के अध्यक्ष और पंचन लामा प्रथम उपाध्यक्ष चुने गए। फिर भी तिब्बत में कुछ स्थानीय शक्तियों ने विप्लव करने की कोशिश की, विद्रोहियों ने जन साधारण को दलित किया, यातायात सुविधाओं में तोड़फोड़ किया , तिब्बत में तैनात मुक्ति सेना के काफिलों पर हमले किए और मुक्ति सेना के अफसरों व सैनिकों को जान से हताहत कर दिया।

 1956 में भारत सरकार के निमंत्रण पर दलाई लामा और पंचन लामा ने भारत के नई दिल्ली में बुद्ध शाक्यामुनी के महानिर्वारण की 2500 वर्षगांठ की समृति कार्यवाही में हिस्सा लिया। नई दिल्ली पहुंचने के तुरंद बाद दलाई लामा भारत में भाग गए तिब्बती प्रतिक्रियावादी तत्वों से घिर गया और दलाई लामा का बड़ा भाई भी अमरीका से भारत लौटा, उन्हों ने दलाई लामा से भारत में रूक कर तिब्बत स्वाधीनता आंदोलन का नेतृत्व करने की मांग की या वह अमरीका जाए । उन के उकसावे से दलाई लामा के रूख में बदलाव हुआ ।

 उस वक्त, भारत और पाकिस्तान की यात्रा पर गए चीनी प्रधान मंत्री चो एनलाई ने अनेक बार दलाई लामा से बातचीत की और तिब्बत के बारे में केन्द्रीय सरकार की नीति दोहरायी। चो एनलाई ने दलाई लामा से कहा कि आप इतने प्रतिष्ठित और दूसरों से सम्मानित हैं, जो बिलकुल तिब्बती जनता द्वारा आप को दिया गया है। यदि आप भारत में रूके, तो आप तिब्बती जनता से विच्छेद हो गए, जनता देश में है और आप विदेश में, जनता से अलग होने पर आप सब कुछ खो जाएंगे । प्रधान मंत्री चो एनलाई ने दलाई लामा के रिश्तेदारों को दावत भी दी और उन्हें हित-हानि के बारे में समझाया । प्रधान मंत्री चो के स्नेहपूर्ण व धैर्य से समझाने बुझाने के फलस्वरूप दलाई लामा और उस के मुख्य सहचरी अधिकारी अप्रैल 1957 में ल्हासा लौटे ।

 1957 में एडरूकत्सांग की रहनुमाई में विद्रोही तत्वों ने गाक्सांग यानी तिब्बती स्थानीय सरकार की प्रशासन संस्था के शह में ल्हासा में विप्लव संगठन कायम किया , उस ने और कुछ मठों के भिक्षुओं और तिब्बती सेना के प्रतिनिधियों ने मिल कर बड़े पैमाने वाला सशस्त्र विद्रोर करने की साजिस रची। केन्द्रीय सरकार द्वारा सचेत किये जाने और समझाये जाने के बाद नवम्बर 1958 में दलाई लामा ने गाक्सांग , तीन प्रमुख मठों तथा तिब्बती सेना के जिम्मेदार व्यक्तियों की मीटिंग बुलायी और सभी अफसरों से विद्रोह को शांत करने के लिए सकारात्मक रूख अपनाने तथा संजीदगी से जिम्मेदारी निभाने की मांग की । किन्तु गाक्सांग के अधिकारियों ने नाम के तौर पर विद्रोह को शांत करने का विचार विमर्श करते हुए वास्तव में सशस्त्र विद्रोह का समर्थन करने तथा उसे विस्तृत करने पर विचार विमर्श किया । विदेशों की कुछ चीन विरोधी शक्तियों ने भी हवाई जहाज से हथियार और बारूद गिराये और सशस्त्र विद्रोह शक्ति को साथ दिया । ल्हासा क्षेत्र में उत्तरोतर बहुत से सशस्त्र विद्रोही इकट्ठे हो गए।

 फरवरी 1959 में दलाई लामा ने तत्कालीन तिब्बती सैन्य कमान के डिप्टी कमांडर तङ शाओतुंग से कहा कि वे सैन्य कमान की कला मंडली के सांस्कृतिक कार्यक्रम देखना चाहते हैं, तङ शाओतुंग ने तुरंत मंजरी दी और दलाई लामा से समय निश्चित करने को कहा। दलाई लामा ने कहा कि वे निकट कालीन धार्मिक सभा के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम देखने जाएंगे। बाद में सांकृतिक कार्यक्रम का समय 10 मार्च को निश्चित किया गया। लेकिन धार्मिक सभा के दौरान ही विद्रोही तत्वों ने अफवाहें फैला कर तिब्बती जाति और हान जाति में फुट डालने के वारदात किए और प्रचार परचे वितरित कर तिब्बत स्वाधीनता की हांक लगायी। गाक्सांग के बेशुमार अधिकारियों ने दलाई लामा के सांस्कृतिक कार्यक्रम देने की बात को लेकर सशस्त्र विद्रोह करने तथा दलाई लामा को देश से भाग लिवाने की साजिस रची।