2009-02-20 15:26:02

सौ कदम पर व्यंग

चीन के युद्धरत काल में ल्यांग राज्य का राजा ह्वी वांग अपने राज्य का विस्तार करना और धन दौलत जुटाना चाहता था । उस ने दूसरे राज्यों के विरूद्ध अनेक युद्ध छेड़े और अपनी प्रजा को बड़ी संख्या में युद्ध में भेजा ।

एक दिन उस ने तत्कालीन महान दार्शनिक मङ-ची से पूछा , मैं ने राज्य के लिए अतुल्य सेवा की है , जब राज्य के हनाई जगह पर सूखा पड़ा , तो मैं ने वहां की प्रजा को धनी जगह ह तुंग में स्थानांतरित किया और ह तुंग के अनाज को ह नाई को मुहैया कर दिया।

जब ह तुंग पर बाढ़ आयी , तो मैं ने फिर वहां ह नाई का अनाज भेजवाया और राहत सहायता दी । हमारे पास पड़ोस के किसी भी राज्य के राजा ने मेरा जैसा काम नहीं किया था , फिर भी उन राज्यों में ऐसी स्थिति नहीं पैदा हुई कि प्रजा बड़ी संख्या में घेरबार छोड़ कर दूसरी जगह भाग गए।

और मेरे राज्य में प्रजा की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई , इस का क्या कारण हो सकता है।

मङ-ची ने जवाब में कहा , महा राजा, आप युद्ध छेड़ना पसंद करते हैं , तो मिसाल के लिए मैं युद्ध का उदाहरण दूंगा । युद्ध मैदान में रण-बिगुल बजने पर दोनों पक्षों के सिपाहियों के बीच आमने सामने की लड़ाई चली , हार के पक्ष में सिपाही जान बचाने के लिए तलवार और ढाल छोड़ कर पीछे भाग गए।

एक सिपाही पीछे सौ कदम भागा , और दूसरा सिपाही पचास कदम भागा। अगर इस समय पचास कदम पीछे भाग गए सिपाही ने सौ कदम पीछे भागे सिपाही पर व्यंग करते हुए उसे डरपोज बताया , तो महा राजा , आप के विचार में क्या यह सही है।

राजा हुई वांग ने कहा , बेशक यह ठीक नहीं है , सौ कदम पीछे हो अथवा पचास कदम , दोनों का मतलब भाग जाना ही है , इस में सार्थक फर्क नहीं है।

मङ -ची ने कहा , महा राजा , आप ने ठीक समझा है , इसी प्रकार के कारण ही से आप की प्रजा की संख्या पड़ोसी राज्यों से ज्यादा नहीं हो सकती है।

दोस्तो , क्या आप भी समझे , पचास और सौ कदम मात्र संख्या का फर्क है , लेकिन दोनों में तात्विक अन्तर नहीं है। अतः पचास वाला को सौ वाले की निन्दा करने का क्या हक है।

यह समान तर्क है कि प्रजा की नजर में राजा ह्वी वांग और पड़ोसी के राजाओं में कोई तात्विक फर्क नहीं है।