2009-02-05 10:38:55

श्रीलंका की स्थिति कैसे बदलेगी

श्रीलंकाई राष्ट्रपति राजापाकस ने 4 फरवरी को राजधानी कोलंबो में घोषणा की कि श्रीलकाई सरकारी सेना ने लिट्टे के साथ लड़ी लड़ाई में जीत प्राप्त किया है और भविष्य में सरकारी सेना लिट्टे को मिटा कर राष्ट्रीय पुनरेकीकरण बहाल करेगी। लोकमत का मानना है कि इस से यह साबित हुआ है कि श्रीलंका में आतंकवादी पूरी तरह खत्म हो जाएगा। लेकिन श्रीलंका की आगामी स्थिति के विकास पर लोगों का रूख आशाप्रद नहीं है।

लिट्टे ने गत शताब्दी के 80 वाले दशक से श्रीलंका के पूर्वी व उत्तरी क्षेत्रों में सरकारी सेना के साथ युद्ध करना शुरू किया। बीस सालों तक चली मुठभेड़ से बहुत से आम लोगों की हताहती हुई। गत साल के उत्तरार्द्ध से दोनों बीच मुठभेड़ और बिगड़ी है और बारंबार घमासान युद्ध हुआ हैं। इस साल के आरंभ में सरकारी सेना ने क्रमशः लिट्टे द्वारा आधिकृत किलिनोची और एलेफांट पास आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर कब्जा किया है। 3 फरवरी को श्रीलंकाई सेना ने घोषणा की कि उसी दिन सरकारी सेना लिट्टे के अंतिम हवाई-पट्टी पर कब्जा कर लिया है और लिट्टे की वायु सैन्य शक्ति को पूरी तरह मिटा दिया है। वर्तमान में दोनों बीच हुई लड़ाई मुलैटिवू क्षेत्र में केंद्रित है। सरकारी सेना ने कहा कि आगामी कुछ दिनों के भीतर लिट्टे को पूरी तरह मिटा दिया जाएगा।

हालांकि श्रीलंकाई सरकारी सेना ने युद्ध में महत्वपूर्ण जीत प्राप्त की है फिर भी श्रीलंका की आगामी स्थिति के विकास पर स्थानीय लोकमत आशावान नहीं है। सूत्रों के अनुसार सरकारी सेना द्वारा लिट्टे के बहुत अहम शहरों व काऊंटियों पर कब्जा करने के बावजूद लिट्टे के महत्वपूर्ण नेताओं को पकड़ा नहीं गया है। अन्य रिपोर्ट के अनुसार लिट्टे की मुख्य सैन्य शक्ति नहीं मिटायी गयी है। सशस्त्र तत्व सिर्फ अन्य क्षेत्र में छिपे हुए हैं, जो श्रीलंकाई समाज के लिये बहुत खतरे की बात है। वर्तमान में उत्तरी श्रीलंकाई क्षेत्र सरकारी सेना के नियंत्रण में है, लेकिन लिट्टे के हजारों सशस्त्र तत्व देश के विभिन्न क्षेत्र में छिपे हुए हैं, जिस से श्रीलंका की आगामी स्थिति के लिये बहुत खतरा है।

इसलिये लिट्टे व सरकारी सेना के बीच निरंतर बीस सालों से जो युद्ध हो रहा है, उसे एक सरल अलगवादी सवाल मान कर नहीं समझा जा सकता है। श्रीलंका में दो जातियां हैं यानी सिहंली जाति और तमिल जाति। दोनों के बीच संघर्ष का बहुत पुराना इतिहास है। इस के साथ श्रीलंका में रहने वाले तमिल दक्षिण भारत व दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले करोड़ तमिल से जुड़े हुए हैं। लिट्टे को सामग्री व वित्तीय समर्थन न केवल श्रीलंका से मिलाता रहा है, बल्कि उस की एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समर्थक वेबसाइट भी है, यही कारण है कि लिट्टे सरकारी सेना का इतने सालों से लगातार मुकाबला कर रहा है।

श्रीलंका के महत्वपूर्ण पड़ोसी देश के नाते लिट्टे सवाल पर भारत का रूख अत्यन्त अहम है। भारतीय थामिलनादु प्रांत की सत्तारूढ़ पार्टी डी एम के वर्तमान में भारतीय कांग्रस पार्टी के गठबंधन में शामिल है। इस साल श्रीलंका सरकारी सेना द्वारा लिट्टे के साथ लड़ी लड़ाई में जीत प्राप्त करने के बाद डी एम के ने भारतीय सरकार से श्रीलंका की स्थिति पर प्रभाव डालने का निरंतर आग्रह किया और यह संकेत भी किया कि आगामी आम चुनाव में उस का कांग्रस पार्टी को दिये जाने वाला समर्थन श्रीलंका के प्रति कांग्रस पार्टी द्वारा अपनायी गयी नीति पर आधारित होगा, इस से कांग्रस पार्टी को कठिनाई का सामना करना पड़ा रहा है। अगर श्रीलंका की स्थिति में दखल नहीं दिया जाएगा तो कांग्रस पार्टी को आगामी आम चुनाव में डी एम के का साथ नहीं मिलेगा। अगर ऐसा हुआ तो और सवाल पैदा होंगे। भारतीय विदेश मंत्री मुखर्जी ने इस साल की जनवरी के अंत में कोलंबो की यात्रा की और श्रीलंका की स्थिति पर भारत की गंभीर चिंता व्यक्त भी की। उन की आशा है कि श्रीलंका में रहते थामिलों की हितों की गारंटी मिल सकेगी। लेकिन वार्ता में श्रीलंका की स्थिति पर दोनों बीच के कोई सममति नहीं हुई।

हाल में श्रीलंका के उत्तरी क्षेत्र में युद्ध होने के कारण आम लोगों के हताहत होने की संख्या निरंतर बढ़ रही है। अमरीका, ब्रिटेन आदि पश्चिमी देशों ने लिट्टे व सरकारी सेना से अस्थायी फायरबंदी करने की अपील की। लेकिन श्रीलंकाई नेता ने कहा कि लिट्टे को पूरी तरह मिटाने के लिये हर कोशिश की जाएगी। श्रीलंका की स्थिति का किस ओर विकास होगी और श्रीलंका में अंत में शांति, सुरक्षा व पुनरेकीकरण साकार होगी या नहीं लोगों की प्रतिक्षा में हैं।(रूपा)