चीन के तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की नवीं जन प्रतिनिधि सभा के दूसरे सम्मेलन ने 19 तारीख को फैसला किया कि हर वर्ष की 28 मार्च को "दस लाख तिब्बती भूदासों का मुक्ति स्मृति दिवस"मनाया जाएगा । तिब्बती बंधुओं ने इस का स्वागत किया । संबंधित तिब्बती विदों ने कहा कि स्मृति दिवस की स्थापना से लोग ऐतिहासिक तथ्यों को हमेशा से याद रखेंगे, आज के सुखी जीवन के मूल्य को किमती समझेंगे । इस से तिब्बत की स्थिरता व विकास को आगे बढ़ाया जा सकता है ।
तिब्बत की राजधानी ल्हासा वासियों ने यह खबर पाने के बाद मैदान में आकर नाचते-गाते हुए अपनी खुशी व्यक्त की । ल्हासा वासी योंगचङ ने कहा:
"पुराने तिब्बत की भू दास व्यवस्था के बारे में सोचते ही हमें बड़ा दुख होता है । आज तिब्बत का अर्थतंत्र, राजनीति और संस्कृति में भारी परिवर्तन हो गया है । हम एक साथ मिलकर खुशियां मना रहे हैं और कामना है कि हमारी मातृभूमि ज्यादा से ज्यादा शक्तिशाली होगी और समृद्ध होगी ।"
70 वर्षीय तिब्बती बुढ़े लोसांग ने कहा कि उन की जिन्दगी के 21 साल अंधी भूदास व्यवस्था में गुज़रे हैं । इस तरह वे आज के सुखी जीवन के मूल्य को अच्छी तरह समझते हैं ।
"पुराने तिब्बत में कुलीन लोग हमारा उत्पीड़न करते थे, हमारे पास कोई अधिकार व सुख नहीं था और कभी कल्पना नहीं की थी कि आज हम सुखी जीवन बिता सकते हैं । अगर मुक्ति न होती, तो हमारा आज का जीवन न होता । हम कम्युनिस्ट पार्टी और सरकार को धन्यवाद देते हैं कि उन के कारण हम आज का सुखी जीवन बिता रहे हैं ।"
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की जन प्रतिनिधि सभा की स्थाई समिति के उप निदेशक श्री गामा ने जानकारी दी कि 28 मार्च को इसी लिए स्मृति दिवस घोषित किया क्यों कि पचास वर्ष पूर्व इसी दिन चीन की केंद्र सरकार ने तत्कालीन स्थानीय सरकार को भंग किया था, जिस ने मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए सशस्त्र विद्रोह किया । इस के बाद दस लाख भूदास स्वतंत्र जीवन बिताने लगे ।
वर्ष 1951 में चीन की केंद्र सरकार और तिब्बत की स्थानीय सरकार ने तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति वाले सत्रह समझौतों पर हस्ताक्षर किए । इस के बाद तिब्बत में वास्तविक स्थिति के अनुसार शीघ्र ही सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था का सुधार नहीं किया गया । वर्ष 1959 की 10 मार्च को तिब्बत के उच्च स्तरीय जगतों ने राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित भू दास व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सशस्त्र विद्रोह किया । केंद्र सरकार ने कदम उठाकर विद्रोह को विफल किया और तिब्बत में लोकतांत्रिक सुधार शुरु हुए । 1959 की 28 मार्च को केंद्र सरकार ने तिब्बत की स्थानीय सरकार को भंग करने का एलान किया और यह इस बात का द्योतक है कि तिब्बत के दस लाख भूदासों ने मुक्ति प्राप्त की । इस तरह तिब्बत की सामाजिक व्यवस्था को ऐतिहासिक छलांग के बाद मूर्त रूप दिया गया।
लम्बे अर्से से दलाई गुट ने जान बूझ कर चीन की जातीय क्षेत्रीय स्वशासन व्यवस्था पर हमला करने का काम किया है और तिब्बत में अंधी व पिछड़ी भू दास व्यवस्था को बहाल करने की कुचेष्टा की है । दस लाख तिब्बती भूदासों की मुक्ति वाला स्मृति दिवस स्थापित किए जाने के बाद दलाई गुट के व्यक्तियों ने कहा कि यह विदेश में नई छवि बनाने का चीन का प्रसारण उपाय है ।
चीनी तिब्बती विद अनुसंधान केंद्र के अनुसंधानकर्ता श्री ल्यान श्यांगमिन ने कहा:
"दलाई गुट का कथन बेकार होगा । लोग अक्षर, वीडियो और ऐतिहासिक दस्ताविज़ों के जरिए वस्तुगत रूख अपनाकर तथ्य जान सकते हैं । गत वर्ष 14 मार्च को हिंसक घटना घटित होने के बाद लोगों को मालूम हो गया है कि दलाई गुट के द्वारा तिब्बत की स्थिरता, विकास को नष्ट करने का कारण क्या है ।"
श्री ल्यान श्यांग मिन ने कहा कि पिछले 50 वर्ष में तिब्बत के राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में भारी परिवर्तन आया है । किसानों व चरवाहों की आय न होने के बराबर की स्थिति से अब सालाना 3 हज़ार तक पहुंच गई है, तिब्बती बंधुओं की औसतन उम्र गत शताब्दी के 50 वाले दशक में 35.5 वर्ष थी जो आज बढ़कर 67 वर्ष तक पहुंच गई है। तिब्बत में पूर्ण आधुनिक शिक्षा व्यवस्था कायम हो चुकी है। आज के तिब्बत में जातीय क्षेत्रीय स्वशासन व्यवस्था लागू है और तिब्बती लोग अपने स्वंय के खुद मालिक हैं ।
श्री ल्यान श्यांगमिन ने कहा कि तिब्बत में प्राप्त सभी उपलब्धियां 50 वर्ष पूर्व के लोकतांत्रिक सुधारों का परिणाम है , इस तरह पचास वर्ष पूर्व की 28 मार्च को हमेशा याद किया जाना चाहिए ।(श्याओ थांग)
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