तिब्बती जाति गाने नाचने के शौकिन है । नाचना तिब्बती लोगों के जीवन में एक अवंचित अंग है । तिब्बती नृत्य की चार किस्में होती हैं, यानी कि लोक नृत्य, धार्मिक नृत्य, दरबारी नृत्य और ऑपेरा नृत्य । आइये, आज के इस कार्यक्रम में मैं आप को बताऊंगी तिब्बती नाच गान के बारे में कुछ जानकारी ।
तिब्बती लोक नृत्य में"गोर्शिए" या"गोर्चोम" नृत्यु सब से लोकप्रिय और प्राचीन काल से प्रचलित होता आया है । यह ऐसा नृत्य है, जिस में लोग एक गोलाकार बनाकर एक साथ नाचते हैं । आम तौर पर कहा जाए, तो तिब्बत के दक्षिण भाग में इस प्रकार के गोलाकार नृत्य को"गोर्शिए"कहा जाता है, जबकि पूर्वी तिब्बत के छांगतु प्रिफैक्चर, स्छ्वान प्रांत और युन्नान प्रांत के तिब्बती बहुल क्षेत्रों में इसे"गोर्चोम"कहा जाता है ।
"गोर्चोम नृत्य"नाचने वालों की संख्या अनिश्चित है । लोग अपने-अपने घर के आंगन में, द्वार के बाहर और मैदान में नाच सकते हैं । त्योहार के समय और पार्टी के आयोजन के वक्त तिब्बती लोग बड़ी खुशी के साथ गोर्चोम नृत्य नाचते हैं । शुरू-शुरू में पुरूष और महीला अलग-अलग तौर पर अर्ध गोलाकार बना कर हाथ में हाथ डाल कर या एक दूसरे के कंधे पर हाथ थामे नाचते हैं । नाचने के दौरान लोग धुन के ताल पर पांव पटकते हुए चक्कर लगाते हैं, साथ ही गाना भी गाते हैं और गीत के अंत में वे ऊंची आवाज में या—या बुलंद कर पुकारते हैं और अपने वस्त्र के लम्बे आस्तीन को फहराते हुए तेज गति में घूमते हैं , झूकते है और थरकते हैं , इस तरह नाच उत्साह के चरम पर पुहंच कर समाप्त होता है ।
गोर्चोम नृत्य करते समय लोग किसी गायक के गीतों के साथ नाचते हैं । गीत के विषय विविध और प्रचुर है । कुछ गीतों के विषयों में बुद्ध का स्तुति गान और सुन्दर जीवन का गुणगान होता है, इस तरह के नृत्य की गति धीमी है और आम तौर पर प्रौढ़ व बुढ़े लोग नाचते हैं । कुछ गीतों में युवक और युवती के बीच प्यार की भावना अभिव्यक्त होती है, और नृत्य की गति भी उत्साहजनक और तेज़ द्रुत होती है । आनंददायी गीतों के साथ तिब्बती लोग नाचते हैं, इस से थकावट और तकलीफ़ को भूल जाते हैं, एक दूसरे को दोस्त बनाते हैं और दूसरे मिलन समारोह में एक साथ फिर नाचने का आमंत्रण देते हैं ।
तिब्बती छ्यांगमू नृत्य
"छ्यांगमू"नृत्य तिब्बती में प्रचलित एक प्राचीन किस्म वाला धार्मिक नृत्य है । विभिन्न तिब्बती बौद्ध मठों में धार्मिक अनुष्ठान के दौरान छ्यांगमू नृत्य नाचा जाता है । इसे "देव पूजा नृत्य"भी कहा जाता है । यह तिब्बती बौद्ध धर्म के लामा व भिक्षु द्वारा प्रदर्शित एक रस्मी नृत्य है । कहते हैं कि सातवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म भारत और नेपाल तथा तत्कालीन चीन के भीतरी इलाके से तिब्बत में आया, इसी दौरान तिब्बती भिक्षु तिब्बत के स्थानीय नृत्य, बोन धर्म के तांत्रिक नृत्य तथा भारत के योग संप्रदाय के मुखोटा नृत्य को जोड़ कर छ्यांगमू नृत्य बनाया, जिस का मकदस दैत्य प्रेत को भगा देना है ।
छ्यांग मू नृत्य एकल नृत्य, युगल नृत्य और सामूहिक नृत्य में बंटा है । नाचने के वक्त नृतक चेहरे पर मुखौटा पहनता है, तिब्बती लम्बा चोगा पहनते हैं और रंगीन फीता व तलवार लेते हैं । नाच के समय वाद्य बजाया जाता है । तिब्बती बौद्ध धर्म की अनेक शाखाएं होने के कारण भिन्न-भिन्न शाखा भिन्न-भिन्न किस्म के देवता की पूजा करती है । इस तरह छ्यांगमू नृत्य नाचने की तिथि, कार्यविधि, नृत्य की शैली और आभूषण वस्त्र भी अलग-अलग होते हैं । तिब्बत की राजधानी ल्हासा क्षेत्र में"देव पूजा"दिवस तिब्बती पंचांग के अनुसार दिसम्बर की 29 तारीख को मनाया जाता है, इसी दौरान जोखांग मठ और पोटाला महल आदि मठों में वार्षिक"देव पूजा अनुष्ठान"आयोजित होता है । लामा और भिक्षु नाचने के पूर्व सूत्र पढ़ते हैं और पशुवध की रस्म आयोजित की जाती है । लेकिन सच्चे पशु का वध नहीं होता है, आम तौर पर पशु की जगह पर उपकरण या चित्र की बलि होती है । तिब्बत के शिकाज़े क्षेत्र में तिब्बती पंचांग के अनुसार सातवें माह के शुरू में"देव पूजा"त्योहार आयोजित होता है । इसी दौरान तिब्बती ऑपेरा, शेर नृत्य और सुरागाय नृत्य प्रदर्शित किया जाता है । इस के अलावा जाशलुम्बू मठ के भिक्षु छ्यांगमू नृत्य भी नाचते हैं ।
तिब्बती बौद्ध धर्म के प्रसार के चलते छ्यांगमू नृत्य यानी"देव पूजा नृत्य"धीरे-धीरे तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के बाहर अन्य तिब्बती बहुल क्षेत्रों तथा भीतरी इलाके में स्थित कुछ तिब्बती लामा मठों में भी लोकप्रिय हुआ। विभिन्न स्थलों में उस का नाम अलग है, लेकिन इस नृत्य का मकसद दैत्य प्रेत को भगा देनना और शुभकामना करना समान है ।(श्याओ थांग)