2009-01-08 16:23:18

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच आतंक विरोधी सहयोग बढ़ाने का वचन


पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरदारी ने 7 तारीख को अफगानिस्तान की दो दिवसीय यात्रा समाप्त की, यह पिछले साल के सितम्बर में पाक राष्ट्रपति बनने के बाद उन की प्रथम औपचारिक अफगान यात्रा है। लोकमतों का कहना है कि श्री जरदारी की यह यात्रा इस का प्रतीक है कि पाक अफगान संबंध एक नये काल में दाखिल हो गया। दोनों देशों के बीच नए प्रकार का संबंध कायम कर आतंक विरोधी सहयोग बढ़ाया जाएगा ।


श्री जरदारी अफगान राष्ट्रपति करजाई के निमंत्रण पर 6 तारीख को अफगानिस्तान की यात्रा पर काबुल पहुंचे थे। यात्रा के दौरान दोनों नेताओं ने आतंक विरोध, सुरक्षा और आर्थिक व्यापारिक सहयोग सवालों पर गहन विचार विमर्श किया । छै तारीख को वार्ता के बाद दोनों पक्षों ने न्यूज ब्रिफींग बुलाई, जिस में दोनों नेताओं ने आतंक विरोधी सहयोग बढ़ाने का संकल्प जाहिर किया । श्री करजाई ने कहा कि दोनों देशों में अब नये संबंध की शुरूआत हुई है । उन की आशा है कि इस प्रकार के नए संबंध से दोनों देशों को और प्रबल रूप से आतंकवाद व उग्रवाद का दमन करने में मदद मिलेगी । श्री जरदारी ने कहा कि पाक सेना अफगान सेना के साथ कंधे से कंधा मिला कर संयुक्त रूप से तालिबान सशस्त्र शक्ति पर प्रहार करने को तैयार है।

इस के अलावा दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने अपनी अपनी सरकार की ओर से द्विपक्षीय सहयोग की दिशा वाले संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर किए । वक्तव्य में कहा गया है कि दोनों पक्ष नियमित उच्च स्तरीय आवाजाही बनाए रखने, सरकारी विभागों, संसदों, सेनाओं और सुरक्षा विभागों के बीच संपर्क कायम करने पर सहमत हैं, ताकि विभिन्न क्षेत्रों में दोनों देशों की आपसी समझ बढ़ जाए। वक्तव्य में विशेष तौर पर यह पेश किया गया कि दोनों देश आतंक विरोधी संघर्ष में रणनीतिक सहयोग गहरा करेंगे, ताकि क्षेत्र में मूलरूप से अवैध सशस्त्र शक्तियों, उग्रवाद व आतंकवाद का सफाया किया जा सके।

पाक विदेश मंत्री कुरेशी ने 7 तारीख को संयुक्त वक्तव्य का मूल्यांकन करते हुए उसे दोनों देशों के लिए जलप्रवाह विभाजन रेखा करार कर दिया और कहा कि पाक और अफगानिस्तान ने अनेकों बाधाओं व संदेहों को मिटा कर एक साथ आपसी विश्वास का नया संबंध कायम किया है।

पिछले साल, अफगानिस्तान की सुरक्षा स्थिति बिगड़ गयी, तालिबान आदि सरकार विरोधी सशस्त्र शक्तियों की कार्यवाहियों ने जोर पकड़ा और विभिन्न हिंसक कार्यवाहियों में 5000 लोग मारे गए। अफगानिस्तान में तैनात अमरीकी सेना और अफगान सरकार ने इस का दोष पाकिस्तान में सक्रिय तालिबान द्वारा अफगान सरकार विरोधी शक्तियों को दिए गए समर्थन पर मढ दिया । पाक अफगान सीमा लम्बी है जहां तालिबान की शक्ति शहजोर है। अमरीका सरकार बराबर मानती आयी है कि पाक अफगान सीमांत क्षेत्र अल कायदा व तालिबान का पनाह स्थल है । इस से पाक और अफगानिस्तान के बीच एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप होने लगा। जिस से दोनों देशों के संबंधों पर काला साया छाया रहा ।

पाकिस्तान में नयी सरकार गठित होने के बाद उस ने अफगानिस्तान के साथ संबंधों को सुधारने की कोशिश की । पिछले साल के सितम्बर में एकमात्र विदेशी शीर्ष नेता के रूप में करजाई ने निमंत्रण पर जरदारी के राष्ट्रपति के पद ग्रहण की शपथ रस्म में भाग लिया और फिर जरदारी की मौजूदा यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने आतंक विरोधी सहयोग बढ़ाने का वायदा किया, जिस से जाहिर है कि दोनों पक्ष दोनों देशों के संबंधों की विशेषता समझ ली है और यह माना है कि आतंकवाद दोनों देशों का समान खतरा है । आतंक विरोध में दोनों का सहयोग लाजिमी है।

उल्लेखनीय है कि जरदारी ने न्यूज ब्रिफींग में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से पाक व अफगानिस्तान को ज्यादा समर्थन देने की तो अपील की , पर स्पष्टः विदेशी सेना के समर्थन से इनकार किया । उन्हों ने कहा कि दोनो सेनाओं को अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के उचित समर्थन मिलने के बाद आतंक विरोधी कार्य पूरा करने की क्षमता है और दूसरों से अच्छा भी कर सकती हैं। विश्लेषकों का कहना है कि जरदारी इसलिए विदेशी सेना का समर्थन नहीं चाहते हैं, क्योंकि अमरीकी सेना ने पिछले साल सीमा पार कर सैन्य कार्यवाहियां की थी, जिस से पाक सरकार और सेना नाखुश हुई ।

इस के अलावा करजायी भी अफगानिस्तान में अमरीकी सेना की कार्यवाही को नहीं मानते। अमरीका ने इस साल अमरीकी सेना को दुगुनी बनाने की घोषणा की थी, लेकिन करजाई ने कहा कि सैन्य हथकंडे से अफगानिस्तान सवाल को पूरी तरह हल नहीं किया जा सकता । इस से व्यक्त हुआ है कि पाक और अफगानिस्तान दोनों अपने सहयोग के जरिए आतंक का विरोध करना चाहते हैं।