2009 में चेक फ्रांस की जगह लेकर यूरोपीय संघ का सत्र-अध्यक्ष देश बन गया, इस बीच गाजा में इजराइल और फिलिस्तीन की सशस्त्र मुठभेड़ भी लगातार बढ़ती जा रही। यो तो फ्रांस फिलिस्तीन इजराइल समस्या को चेक के हवाले कर सकता है, फिर भी फ्रांसीसी राष्ट्रपति सार्काजी ने इस कांटे की समस्या को छोड़ना न चाह कर फिर एक बार मध्य पूर्व में मध्यस्थता करने जाना और वहां अपना प्रभाव बढ़ाना चाहा ।
फ्रांसीसी राष्ट्रपति भवन ने 2 जनवरी को इस बात की पुष्टि की है कि सार्काजी 5 व 6 तारीख को मध्य पूर्व की यात्रा पर जाएंगे और मिश्र के राष्ट्रपति मुबारक, फिलिस्तीनी राष्ट्रीय सत्ताधारी संस्था के अध्यक्ष अब्बास, इजराइली प्रधान मंत्री ओल्मेर्ट तथा सीरिया के राष्ट्रपति असाद से भेंट वार्ता करेंगे। फ्रांस के बजट मंत्री वॉएर्थ ने चार तारीख को फ्रांसीसी मीडिया के साथ बातचीत में कहा कि क्योंकि इजराइल ने गाजा पर जमीनी हमला बोलना शुरू किया है, इसलिए श्री सार्काजी की मौजूदा मध्य पूर्व यात्रा अत्यन्त कठिन होगी, पर वह बेहद जरूरी है। अपनी मौजूदा यात्रा में सार्काजी कोई पूर्व निर्धारिक योजना नहीं ले जाएंगे । श्री वॉएर्थ ने मौजूदा इजराइल फिलिस्तीन मुठभेड़ पर फ्रांस का रूख भी दोहराया, उन्हों ने कहा कि फ्रांस एक तरफ हमास द्वारा इजराइल की भूमि पर राकेट दागने का विरोध करता है, दूसरी तरफ इजराइल द्वारा 3 तारीख से गाजा के खिलाफ किए गए जमीनी हमले का भी विरोध करता है।
विश्लेषकों का मानना है कि सार्काजी ने साफ साफ जाना है कि उन की इस यात्रा में उपलब्धि पाना अत्यन्त मुश्किल है, फिर भी वह यात्रा करने जाने पर जिद्द है, इस का एक कारण यह है कि फ्रांस मानता है कि उसे कदम ब कदम मध्य पूर्व क्षेत्र में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है और वह इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। श्री वॉएर्थ ने पते की बात कही कि अमरीका की अनुपस्थिति में सार्काजी बीचबचाव करने वाला एकमात्र दक्ष शख्स है। यह सर्वविदित है कि अमरीका मध्य पूर्व क्षेत्र के सब से अहम मध्यस्थता कर्ता है और इजराइल का मजबूत पृष्ठपोषक है। लेकिन श्री बुश ने अपने कार्यकाल में मध्य पूर्व शांति प्रकिया बढ़ाने में खास सफलता नहीं प्राप्त पायी, फिर तो इस समय ह्वाइट हाउस में सत्ता का हस्तांतरण भी हो रहा है और ओबामा की मध्य पूर्व नीति भी स्पष्ट नहीं है, ऐसा मौका फ्रांस के लिए फायदामंद है । किन्तु इस मौके को पकड़ना मुश्किल जरूर है।
पहले, सार्काजी की मौजूदा यात्रा की हैसियत स्पष्ट नहीं है। वर्तमान में चेक यूरोपीय संघ का अध्यक्ष देश है और चेक व यूरोपीय संघ के प्रतिनिधि इस समय फिलिस्तीन इजराइल में राजनयिक मध्यस्थता कर ही रहे हैं। सार्काजी फ्रांसीसी राष्ट्रपति की हैसियत से यूरोपीय संघ- चेक मिशन दल के साथ साथ वहां मिश्र और इजराइल आदि के साथ वार्ता करेंगे, तो यूरोपीय संघ में यह संदेह पैदा हुआ है कि अखिरकार कौन संघ का प्रतिनिधित्व करता है।
दूसरे, फिलिस्तीन इजराइल समस्या फ्रांस के लिए भी कांटे की समस्या है। 3 तारीख को फ्रांस के विभिन्न शहरों में फिलिस्तीन का समर्थन करने वाले प्रदर्शन निकाले गए । पैरिस में 25 हजार लोगों ने जलसे में भाग लिया । 4तारीख को फ्रांस में बसे यहुदियों के संगठनों ने फ्रांस स्थित इजराइली दूतावास के सामने समर्थन प्रदर्शन किया और हमासे की निन्दा की। जाहिर है कि फिलिस्तीन इजराइल सवाल पर फ्रांस के भीतर एक दूसरे के विरोध के दो जनमत मौजूद है। यदि इस सवाल को सार्काजी ने उचित रूप से नहीं हल कर सका, तो वह बड़ी कोशिश करके भी देश के जनमतों को खुश नहीं कर सकेंगे और यूरोप के कुछ देशों को भी नाराज कर सकेंगे।
तीसरे, अभी अमरीका फिलिस्तीन इजराइल सवाल के कुंजीभूत मध्यस्थता कर्ता है। यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की तीन तारीख की आपात मीटिंग से पुष्ट हो सका। उसी दिन की रात, सुरक्षा परिषद के 15 सदस्य देशों में सलाह मशविरा हुआ और इजराइल व फिलिस्तीनी सशस्त्र शक्तियों को नियंत्रित करने वाला एक वक्तव्य पारित करने की कोशिश की गयी, पर अमरीका के विरोध के कारण सहमति प्राप्त नहीं हो पायी। अमरीका की तुलना में फ्रांस का प्रभाव कमजोर सिद्ध हुआ है।
इस सब से जाहिर है कि श्री सार्काजी की मौजूदा यात्रा की सफलता सीमित होगी और वह चाहता है कि इस यात्रा से मध्य पूर्व में फ्रांस का प्रभाव और बढ जाए, जो अवश्य एक कलोप-कल्पना होगा ।
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