45 वर्षीय लोसांग चोमौ तिब्बती बड़ी मां तुनचु चोमा की बड़ी बेटी है । उसे मालूल हुआ कि हम राजधानी पेइचिंग से आए हैं, यह खबर पाकर लोसांग चोमा रोने लगी और कहा कि उस की छोटी बेटी पेइचिंग के केंद्रीय जातीय विश्वविद्यालय के तिब्बती भाषा विभाग में पढ़ रही है। जब पेइचिंग से कोई आता है , तो उन्हें अपनी बेटी की याद आ जाती है ।लोसांग चोमा ने कहा कि बेटियों का जीवन बहुत सुखी है, उन्हें राजधानी पेइचिंग में पढ़ने और देश में उच्च स्तरीय शिक्षा पाने का मौका मिला है । पहले इस के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था । हालांकि वह कभी कभार दूर रहने वाली बेटी की चिंता करती है, लेकिन फिर भी वह बहुत संतुष्ट है ।
वर्तमान जीवन के प्रति लोसांगचोमा को संतोष है । पति का एक ट्रक है और वे बाहर जाकर परिवहन का काम करते हैं । हर माह चार हज़ार से ज्यादा य्वान की आय प्राप्त करते हैं । आम दिनों में लोसांग चोमा घर में खेती का काम करती है, नीलगाय पालती हैं और जंगल से मशरूम इक्ट्ठा करती हैं । इधर के वर्षों में शांगरिला आने वाले पर्यटकों की संख्या ज्यादा हो रही है, घर में बनाया गया घी और दूध आदि तिब्बती विशेष वस्तुएं पर्यटकों को पसंद हैं । इस तरह एक साल में घर की कमाई साठ हज़ार य्वान से ज्यादा हो जाती है । दो साल पूर्व घर में दो मंजिला नए रिहायशी मकान का निर्माण किया गया और अनेक नया फ़र्निचर खरीदा गया । तिब्बती बंधु लोसांगचोमा ने खुशी के साथ कहा :
"आज का जीवन बहुत सुखी है, बहुत अच्छा है । घर में टी.वी.सेट, फ्रीज, इलेक्ट्रोनिक कूकर और सौर ऊर्जा आदि सब कुछ है । दो बेटियों के पास दो कंप्युटर भी हैं ।"
लोसांगचोमा ने कहा कि जब उसे दूर पढ़ने वाली बेटी की याद आती है, तो फोन कर उस के साथ बातचीत कर सकती है । लेकिन आज घर में कंप्युटर हैं और इन्टरनेट का प्रयोग भी किया जा सकता है । भविष्य में लोसांगचोमा कंप्युटर से संबंधित जानकारी सीखना चाहती है, घर में बैठकर इन्टरनेट के जरिए दूर रहने वाले बेटियों के साथ संपर्क कर सकेगी और बेटियों की दादी भी उन के साथ वीडियो पर बातचीत कर सकती हैं ।
तिब्बती बड़ी मां तुनचुचोमा का पौत्र तानचङ छीलिन पेइचिंग खेलकूद विश्वविद्यालय का विद्यार्थी था ।अभी-अभी स्नातक होने के बाद घर वापस लौटा है। तानचङ छीलिन ने कहा कि अब जन्मभूमि में विभिन्न स्थितियां अच्छी हो गई हैं । अनेक तिब्बती विद्यार्थी विश्वविद्यालय में पढ़ने लगे हैं। उस समय पेइचिंग खेलकूद विश्वविद्यालय में उस का दाखिला होना गांव में बहुत आश्चर्यजनक बात थी । अब छोटी बहन ने पेइचिंग केंद्रीय जातीय विश्वविद्यालय में प्रवेश किया है । तिब्बती युवा तानचङ छीलिन ने कहा:
"हमारे घर में, हमारे यहां मेरी छोटी बहन प्रथम व्यक्ति है, जिस ने केंद्रीय जातीय विश्वविद्यालय के तिब्बती भाषा विभाग में प्रवेश किया है । मैं शांगरिला के पांचवें मीडिल स्कूल में पढ़ता था । हमारा स्कूल बहुत श्रेष्ठ है, करीब नब्बे प्रतिशत विद्यार्थी विश्वविद्यालयों में प्रवेश कर सकते है । अगर कोई विद्यार्थी राष्ट्र स्तरीय महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय में दाखिल होता है, तो स्थानीय सरकार उसे पुरस्कार देती है। पेइचिंग में पढ़ने वाले मेरे सहपाठी सात हैं !"
तिब्बती बड़ी मां तुनचुचोमा के घर में कई विश्वविद्यालय जाने वाले विद्यार्थी हुए हैं, इस तरह आसपास के गांवों में यह परिवार मशहूर हो गया है । बड़ी मां ने कहा कि वर्तमान में देश की जातीय नीति अच्छी है, नागरिकों का जीवन ज्यादा से ज्यादा अच्छा हो रहा है । अपनी उम्र ज्यादा हो गई है, आम दिनों में घर की सफ़ाई करना, नीलगाय पालने का काम करती हैं और तिब्बती बौद्ध सूत्र भी पढ़ती हैं । जीवन बहुत आरामदेह है । दो साल पूर्व बड़ी मां तुनचु चोमा ने अपने बेटे के साथ तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की राजधानी ल्हासा की तीर्थ यात्रा की थी । उन्होंने कहा कि पोटाला महल में सूत्र घुमाना और तिब्बत में तीर्थ यात्रा करना तिब्बतियों की अभिलाषा है, यह घर की कई पीढ़ियों के लोगों का सपना भी है । आज बड़ी मां ने घर की कई पीढ़ियों का सपना पूरा किया है , उन्हें बहुत गौरव है और वे खुश हैं । तिब्बती बड़ी मां तुनचुचोमा ने हंसते हुए कहा :
"आशा है कि इस प्रकार का सुखी जीवन और लम्बा होगा,आशा है कि हमारी संतान भी मुझ से ज्यादा अच्छा जीवन बिताएगी ।"