2008-12-25 10:09:50

सुश्री सांग क क व उस की पुस्तक《बचपन》

हाल ही में चीन की पुस्तक की दुकानों में एक बहुत लोकप्रिय पुस्तक बेची जा रही है, जिस का नाम है《बचपन》। और इसपुस्तक की लेखिका है तिब्बती लड़की सांग क क। सांग क क एक प्यारी लड़की है, लेकिन उस की जिन्दगी उस जैसी प्यारी नहीं है। पिछली शताब्दी के 70वें दशक में दक्षिण-पश्चिमी चीन के स्छ्वान छंङतू में उस का जन्म हुआ । उसने मां-बाप के प्रेम में मुक्त व दिलचस्प बचपन बिताया। लेकिन बाद में उस के माता-पिता ने आपस में तलाक ले लिया। इस का सांग क क पर बड़ा प्रभाव पड़ा। युवती बनने के बाद उस ने पहली बार प्यार किया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। इस के बाद सांग क क स्छ्वान से जाकर पेइचिंग, शांघाई व क्वांङचो तीन शहरों में घूमती रही। उस ने कहा कि उसे विभिन्न शहरों के बीच सैर-सपाटा करना पसंद है। वह अस्थिर अभिनेत्री, मॉडल बनी, और बियर बेचने वाली व संवाददाता भी बनी । अब वह शहरी चीन नामक पत्रिका में काम कर रही है।

《बचपन》नामक इस पुस्तक के सब से पहले सांग क क ने ऐसी बात लिखी है कि बीते हुए समय मिठाई की तरह है, मैंने चुपके-चुपके से इसे खा लिया। सचमुच इस मिठाई ने उसे मीठास देने के साथ-साथ दूसरों को भी मिठास दी है। इस पुस्तक में सांग क क की बहुत सी व्यक्तिगत रहस्य की यादें शामिल हैं। और वह इस पुस्तक से लोगों के मनों को खोलना चाहती है। उसने कहा कि, मैं ज़माने के परिवर्तन को अपनी छोटी-छोटी कहानियों में घुलमिलाना की कोशिश करना चाहती हूं। उदाहरण के लिये मैंने अपनी पुस्तक में सीधे से हमारे देश में हुए परिवर्तन के बारे में नहीं लिखा है, मैंने केवल यह लिखा है कि जहां मैं रहती हूं, वहां क्या बदलाव हुआ है। मैं एक छोटी बच्ची की दृष्टि से समाज के वास्तविक व जीवित परिवर्तन को दिखाना चाहती हूं।

कुछ टिप्पणीकारों के ख्याल से इस पुस्तक में एक ज़माने को बहुत दिलचस्प कहानियों में बांटा गया है। सचमुच इस पुस्तक से पाठक चीन के सुधार व खुलेपन नीति लागू किए जाने के बाद पैदी हुई पीढ़ी के विशेष अनुभव व भावना को समझ सकते हैं। जब लोगों ने सांग क क से यह सवाल पूछा कि क्या पुस्तक में लिखी हुई कहानियां उस के वास्तविक अनुभव हैं?तो उसने जवाब दिया कि, मुझे लगता है कि शायद हर लेखक को ऐसे सवाल का सामना करना पड़ता है, और इस सवाल का जवाब बहुत मुश्किल से दिया जा सकता है। क्योंकि कहानियां ज़रूर वास्तविकता से आयी हैं, लेकिन अगर आप ने सीधे से पाठकों के सामने यह वास्तविकता पेश की, तो ऐसा ही होगा जैसे रसोइया ने कच्चा खाद्यपदार्थ आप के सामने रख दिय़ा हो, ऐसा खाद्यपदार्थ खाया नहीं जा सकता। पुस्तक की ठोस कहानियों में किस ने वास्तव में कब क्या किया?यह जानने की ज़रूरत नहीं है। मैं केवल इस पुस्तक से पाठकों को उस ज़माने की अपनी यादें दिखाना चाहती हूं। (चंद्रिमा)