2008-12-05 11:58:28

कुवा का मेढ़क

एक मेढ़क हमेशा एक सूखे कुआ में रहता था , वह अपनी इस छोटी दुनिया पर अत्यन्त संतुष्ट था । जब कभी मौका मिला , तो वह अपने बड़प्पन की बघार करता था । एक दिन , भर पेट खाने के बाद वह फिर कुआ पर बने एक तंभे पर ऊंकड़ू बैठे आराम कर रहा था , तो कुछ दूर एक भीमकाय समुद्री कछुवा पहल चहल करते हुए घूम रहा था , मेढ़क ने आवाज ऊंचा करके पुकारा , हेलो , कछुवा भाई , आओ , इधर आ जा । कछुवा कुवा के पास आ पहुंचा , मेढ़क की बातचीत जब छिड़ी , तो खत्म करने को तैयार नही . देखो , कछुवा भाई , तुम्हारी किस्मत जो खुली है , वह तो तुमहारे भाग्य में लिखा हुआ है , मैं तुझे मेरी अपनी दुनिया दिखाऊंगा , तुम आंखें खोल कर देखो , मेरा आवास का जवाब नहीं हैं , वह बिलकुल स्वर्ग तूल्य है । तुझे जरूर ऐसा खुला , हवादार , रोशनीदार और विशाल आवास देखने को नहीं मिल सकता है । कछुवा ने कुवा के अन्दर झांका , कुआ के अन्दर किचड़ी भरा पानी का एक छिछला ताल था , जिस पर हरी ताई भी पड़ी हुई थी और हल्की गंदा गंध भी रह रह कर आ रहा था । कछुवा के माथे पर झर्ड़ियां भर आई और उस का सिर तुरंत वापस खिंचा । मेढ़क का कछुवा के हाव भाव पर ध्यान नहीं गया , उस ने अपना बड़ा सा पेट दिखाते हुए डींग मारना जारी किया , देखो , मेरा आवास कितना आरामदेह है . शाम को मैं कुआ के तंभे पर शीतल हवा लेने ऊपर आता हूं , देर रात कुआ की दीवार में पड़े छेद में नींद से सो सकता हूं , मैं पानी में बैठ सकता है , पानी मेरा मुंह तक आता है , मैं पानी में तैर सकता हूं , कीचड़ी में पांव गाड़ सकता हूं और किचड़ी में लेट लोट कर सकता हूं । वे सभी जीव जंतु जो कीड़े , केकड़ी और मछली जैसी वस्तु कैसे मेरी तुलना कर सकती हो । कहते बड़बडाते मेढ़क के मुंह से झाड़ छिड़ कर चारों ओर बिखरा , और उस की घमंडी बढ़ती गई , देखो ,देखो , यह कुवा . कुवा का यह पानी सब का सब मेरा अकेला है , मैं जो चाहे कर सकता हूं । यह तो चरम का आनंद कहा जा सकता है ना . कछुवा भाई, तुम अन्दर आने की तशरीफ करो , जरा देखने आओ । मेढ़क के उत्साह को टाला तो नहीं जा सकता था , सो कछुवा कुवा के किनारे पर आ पहुंचा , उस का दाईं पैर कुवा के अन्दर नहीं जा पाया था कि उस की बाईं घुटनी कुआ के तंभे पर अटक कर फंस पड़ा । लाचार हो कर कछुवा पीछे हटा और उस ने मेढ़क से पूछा कि तुम ने कभी समुद्र के बारे में कुछ तो सुना है ना . मेढ़क ने नहीं के रूप में सिर हिलाया । कछुवा ने कहा , समुद्र अपार विशाल है , उस में जल राशि तोली नहीं जा सकती है , वह इतना विशाल है , जिसे हजारों किलोमीटर कहने पर भी कम है , वह इतना गहरा है , जिसे लाख मीटर बताना भी स्टीक नहीं है । कहा जाता है कि चार हजार वर्ष पहले जब युई देश का राजा था , उस अवधि में दस सालों में नौ साल ऐसा था , जिस में मुसलाघार वर्षा होती रही थी , पर समुद्र में पानी पहले से कहीं ज्यादा नहीं बढ़ा । तीन हजार वर्ष पहले जब सांगथांग राजा की गद्दी पर था , उस अवधि में दस सालों में नौ साल रहा , जिस में सूखा पड़ा , लेकिन समुद्र का पानी देखने में कुछ भी नहीं घटा । समुद्र इतना विशाल है , उस की जल राशि समय और बाढ़ सूखा के बढ़ने या घटने से खास परिवर्तित नहीं होती है । मेढ़क भाई , मैं समुद्र में रहता हूं । तुम सोचो , तुम्हारे इस छोटे कुवा और हथली भर के पानी से कौन सी दुनिया विशाल है और किस का आनंद अतुल्य है । कछुवा की बात सुन कर असीम ताज्जुब के कारण मेढ़क की आंखें बाहर निकल सी रह गयी और मुंह खुला सा खुला रह गया ।

चीन में जब यह नीति कथा प्रचलित हो गई , तो ऐसे व्यक्ति को कुवा का मेढ़क कहलाने लगा है , जो अज्ञान हो और बड़ा घमंड भी हो ।