2008-12-05 11:41:52

यूरोपीय संघ पूर्वी प्रतिरोधक क्षेत्र बनाने को तैयार

दोस्तो , यूरोपीय आयोग ने तीन दिसम्बर को पूर्वी साझेदारी योजना , जिस का उद्देश्य पूर्वी युरोपीय पडोसी देशों के साथ सहयोग को मजबूत बनाना है , को विधिवत रूप से पारित किया है , इस योजना में दोनों पक्षों से उत्प्रवासी व ऊर्जा क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने की अपील की गयी है । विश्लेषकों का कहना है कि यह योजना अपने आप के विकास और रणनीतिक सुरक्षा पर आधारित है , उम्मीद है कि यूरोपीय संघ और रुस के बीच एक प्रतिरोधक क्षेत्र का निर्माण किया जायेगा , लेकिन भौगोलिक राजनीति के प्रभाव तले उक्त लक्ष्य को पूरा करना यूरोपीय संघ के लिये एक स्वाभाविक राजनीतिक व आर्थिक दोहरी चुनौती ही है ।

पूर्वी पड़ोसी देशों के साथ पूर्वी साझेदारी की स्थापना का प्रस्ताव शुरु में पोलैंड व स्वीडन ने पेश किया है , फिर गत जून में हुए यूरोपीय शिखर सम्मेलन में यह योजना पारित कर विचारार्थ के लिये यूरोपीय आयोग को प्रस्तुत किया गया है । यह योजना यूरोपीय संघ के पूर्वी पड़ोसी देश अर्मेनिया , अजर्बाइजान , बाइलो रुस , जोर्जिया , मोलडोवा और युक्रेन से जुडी हुई है । यह योजना द्विपक्षीय व बहुपक्षीय ढांचों के भीतर यूरोपीय संघ व उक्त पड़ोसी देशों के बीच आर्थिक व राजनीतिक संबंध को मजबूत बनायेगी , जिन में उक्त देशों के साथ मुक्त व्यापार क्षेत्र की स्थापना , वीजा के सरलीकरण , ऊर्जा सुरक्षा व वित्तीय सहायता और सुरक्षा व प्रतिरक्षा बढाने पर विचार विमर्श भी शामिल हैं ।

हालांकि यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष बोर्रोजो ने तीन दिसम्बर को न्यूज ब्रीफिंग में कहा कि पूर्वी साझेदारी योजना उक्त देशों को यूरोपीय संघ के सदस्द के रूप में बनाने से संबंधित नहीं है , पर फिर भी इतनी क्रियाशील साझेदारी योजना स्वभावतः यूरोपीय संघ की विशाल पूर्वी विस्तार कार्यवाही की याद दिला देगी ।

विश्लेषकों का मानना है कि वैश्विक व क्षेत्रीय परिस्थितियों के विकास के चलते आज का यूरोपीस संघ पिछले दौर के पूर्वी विस्तार से पहले से एकदम भिन्न है , इसलिये उक्त लक्ष्य को पूरा करने के लिये और बड़ा प्रयास करना अत्यावश्यक है ।

सर्वप्रथम , गत दौर के जल्दबाजी पूर्वी विस्तार से अविकसित देशों को यूरोपीय संघ के मामलों का निर्णय करने का हक प्राप्त हो गया है , पर इन नये सदस्य देशों का ध्यान यूरोपीय संघ में अपने आप के स्थान को सुदृढ़ बनाने तथा और अधिक हित प्राप्त करने पर केंद्रित हुआ है ।

दूसरी तरफ , यूरोपीय संघ के उक्त 6 पूर्वी पड़ोसी देश योजना का लक्ष्य पूरा करने में सक्षम हैं या नहीं , इस का पता नहीं है । ऐतिहासिक व सांस्कृतिक कारणों की वजह से उक्त देशों की राजनीतिक धारणाएं और आर्थिक फार्मूले यूरोपीय देशों से अलग हैं , उन पर रूसी प्रभाव बना रहा है । और तो और इन देशों के अंदरूनी मामले मौजूद हैं ही , अपने अंतरविरोधों के समाधान पर ज्यादा जोर लगाने की वजह से वे एकजुट होकर सामूहिक रूप से पश्चिम की ओर देखने वाले लक्ष्य को साकार करने में असमर्थ हैं ।

अंत में भूमंडलीय आर्थिक एकीकरण व वित्तीय संकट के प्रभाव से यूरोपीय संघ की शक्तियां भी दिन ब दिन कमजोर हो गयी हैं , यूरो क्षेत्र और यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों का अर्थतंत्र मंदी के दौर में है । हालांकि उक्त योजना में यूरोपीय संघ ने ऊर्जा की आपूर्ति के लिये विविधतापूर्ण माध्यम अपनाने की अभिलाषा व्यक्त की है , पर एक काफी लम्बे समय में उस की निर्भरता रुस पर कायम रहने की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आ सकेगा ।

विश्लेषकों ने कहा कि गत अगस्त को हुई रूस जोर्जिया टक्कर से पूर्वी पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत बनाने का यूरोपीय संघ का संकल्प और पक्का हो गया है । यूरोपीय संघ की वैदेशिक संबंध सदस्य सुश्री वाल्डनेर ने जताया कि पूर्वी साझेदारी योजना यूरोप की अच्छे पड़ोसियों जैसे मैत्रीपूर्ण संबंध नीति का जारी रूप है , उद्देश्य है और बड़ी हद तक आर्थिक एकीकरण व तरलता को गति देना , ताकि यूरोपीय संघ क्षेत्रीय सुरक्षा की रक्षा और टक्करों का समाधान करते समय अधिकाधिक माध्यम प्राप्त कर सके । लेकिन लोकमत का आम विचार है कि पूर्वी साझेदारी योजना की प्राप्ति यूरोपीय संघ के लिये एक दीर्घकालिक व जटिल परीक्षा ही है ।