2008-12-04 16:22:38

विविधतापूर्ण चीनी दक्षिण एशिया अंतर्राष्ट्रीय शोध अध्ययन मंच

पेइचिंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय चीनी दक्षिण एशिया अंतर्राष्ट्रीय शोध अध्ययन मंच के आयोजकों में से एक है। और मंच में ज्यादातर सांस्कृतिक गतिविधियां इस विश्वविद्यालय में आयोजित की गयीं। पेइचिंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय ने क्यों इतने जोश से इस मंच में भाग लिया?और उस का दक्षिण एशिया के साथ क्या संबंध है?इस विश्वविद्यालय के एशिया व अफ़्रीका कॉलेज के प्रधान श्री च्यांग शी फीन की बातें सुनकर आप ज़रूर जान जाएंगे। उन्होंने कहा, पेइचिंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के एशिया व अफ़्रीका कॉलेज की स्थापना वर्ष 1961 में हुई थी। अब इस कॉलेज में 17 भाषाओं के विभाग हैं, और 40 से ज्यादा अध्यापक पढ़ा रहे हैं। वर्ष 2001 में एशिया व अफ़्रीका कॉलेज शिक्षा मंत्रालय की अनुमति प्राप्त करके राष्ट्रीय विदेशी भाषा के उच्च शिक्षालयों में गैर सामान्य भाषा के सुयोग्य व्यक्तियों का प्रशिक्षण केंद्र बन गया, और वह पूरे देश की नयी शताब्दी उच्च शिक्षा की सुधार परियोजना में भी शामिल है। 40 वर्ष में इस कॉलेज ने देश के लिये बड़ी खेप वाले विदेशी भाषा के सुयोग्य व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया है। वे देश के विभिन्न विभागों में काम कर रहे हैं। अब एशिया अफ़्रीका कॉलेज में दक्षिण एशिया का अध्ययन केंद्र व दक्षिण एशिया की भाषाओं के विभाग हैं। उन में हिन्दी, सिंहली व उर्दू तीन विभाग शामिल हैं। पढ़ाई के साथ-साथ दक्षिण एशिया के विभिन्न विभाग दक्षिण एशिया की संस्कृति व चीन-दक्षिण एशिया संबंधों का अध्ययन करने पर भी ध्यान देते हैं। इस बार हमने दक्षिण एशिया अंतर्राष्ट्रीय शोध अध्ययन मंच के आयोजन के सुअवसर पर पेइचिंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय में सिलसिलेवार सांस्कृतिक गतिविधियां भी आयोजित कीं।

श्री च्यांग शी फीन ने इस बार के चीन दक्षिण एशिया अंतर्राष्ट्रीय शोध अध्ययन मंच का उच्च मूल्यांकन किया। उन्होंने कहा कि, मेरे ख्याल से इस मंच के आयोजन से भारत के प्रति हमारी समझ बढ़ी है। क्योंकि चीन व भारत एशिया में दोनों बड़े विकासशील देश हैं, और दोनों देशों का सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी दीर्घकालीन है। विकास के नये दौर में भारत के साथ इस तरह की मैत्रिपूर्ण गतिविधि का आयोजन बहुत सार्थक है। यह मंच हाल के कई वर्षों में चीन व भारत के विद्वानों द्वारा आयोजित एक उच्च स्तरीय मंच है। चीन, भारत, अमरीका, कनाडा आदि देशों से आए 70 से ज्यादा विद्वानों व अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञों ने इस में भाग लिया। साथ ही चीनी विदेश मंत्रालय, चीनी सामाजिक विज्ञान अकादमी, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन अकादमी व दक्षिण एशिया संघ आदि विभागों ने भी अपने प्रतिनिधि भेजकर इस में भाग लिया।

इस वर्ष चीनी विद्वान श्री थेन यून शान व भारतीय विद्वान श्री शी ज्यूए यूए के जन्मदिन की 110वीं वर्षगांठ है। उन दोनों ने चीन व भारत के सांस्कृतिक आदान-प्रदान के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसलिये श्री थेन यून शान व श्री शी ज्यूए यूए के जन्मदिन की 110वीं वर्षगांठ की स्मृति नामक अंतर्राष्ट्रीय शोध अध्ययन मंच इस बार की गतिविधियों में महत्वपूर्ण बन गया। पेइचिंग विदेशी भाषा विश्वविद्यालय के चीनी सीमापार चीनी भाषा का ज्ञान अध्ययन केंद्र के उपाध्यक्ष श्री ली श्येए थाओ ने हमें उन दोनों सांस्कृतिक प्रसिद्ध विद्वानों का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि, श्री शी ज्यूए यूए एक बहुत प्रसिद्ध भारतीय संस्कृति व बौद्ध धर्म के विद्वान हैं। वे पहले फ़्रांस में पढ़ते थे, वहां उन के अध्यापक फ़्रांस में सब से प्रसिद्ध चीनी संस्कृति के विद्वान थे। इसलिये श्री शी ज्यूए यूए व चीन का संबंध फ़्रांस की यात्रा के बाद चीन की परंपरागत संस्कृति खास तौर पर बौद्ध धर्म से जुड़ा। श्री शी ज्यूए यूए का पूर्व नाम है प्रबोध चंद्र बाग्ची। वे भारतीय ठाकुर अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के चीनी कॉलेज के उपप्रधान व प्रोफेसर थे। चीन की यात्रा के दौरान वे पेइचिंग यूनिवर्सिटी के अतिथि प्रोफ़ेसर थे।

श्री थेन यून शान हूनान प्रांत के चायलींग काउंटी से थे। वर्ष 1927 में वे सिंगापुर में भारतीय प्रसिद्ध कवि ठाकुर से परिचित हुए और दोनों अच्छे मित्र बन गये। वर्ष 1928 में ठाकुर के निमंत्रण पर उन्होंने भारत पहुंचकर भारतीय अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में पढ़ाना शुरू किया, और चीनी संस्कृति के प्रचार-प्रसार की कोशिश की। इस के प्रति श्री ली श्येए थाओ ने कहा कि, लोग शायद जानते हैं कि श्री थेन यून शान को सब से पहले पुराने चीन की क्वूमिनतोंग सरकार ने भारत भेजा था, जहां जाकर उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में चीनी कॉलेज की स्थापना की थी, और वहां वे चीनी भाषा पढ़ाते थे। अब हमारे देश का एक बहुत महत्वपूर्ण कार्य है चीनी संस्कृति व चीनी भाषा की शिक्षा का प्रचार-प्रसार। विदेशों में बहुत से कन्फ़्यूशियस कॉलेजों व चीनी संस्कृति कॉलेजों की स्थापना की गयी है। विदेशों में चीनी भाषा की पढ़ाई कैसी चलेगी?और विदेश में चीनी भाषा की पढ़ाई का अनुभव कैसा इकट्ठा हो सकेगा?इस सवाल पर श्री थेन यून शान से हम बहुत सीख सकते हैं।(चंद्रिमा)