2008-12-04 11:09:34

अमरीका भारत पाक संकट में क्रियाशील क्यों

दोस्तो , अमरीकी विदेश मंत्री सुश्री राइस तीन दिसम्बर को भारत की यात्रा समाप्त कर चार दिसम्बर को पाकिस्तान के लिये रवाना हो गयी और वे पाकिस्तान के साथ मुम्बई आतंकवादी हमलों का जायज़ा लेंगी और उन पर विचार विमर्श करेंगी । इस के साथ ही अमरीकी ज्वाइंट कांफ्रेंस ओफ चीफ आफ स्टाफ के अध्यक्ष मिचेल मुल्लेन पाकिस्तान की यात्रा समाप्त कर भारतीय सेना के साथ समुद्र तटीय सुरक्षा के सवाल पर विचार विमर्श करने के लिये भारत पहुंच गये हैं । विश्लेषकों का मानना है कि अमरीकी वरिष्ठ अधिकारियों का भारत व पाकिस्तान की यात्रा करने का प्रमुख मकसद है कि मुम्बई आतंकवादी हमलों की वजह से दिन ब दिन तनावपूर्ण भारत पाक संबंधों में शैथिलय लाने के लिये उक्त दोनों देशों की मदद की जाये ।

अमरीकी विदेश मंत्री सुश्री राइय की मौजूदा भारत यात्रा अमरीकी राष्ट्रपति श्री बुश के निर्देश पर हुई है । इसलिये उन्हों ने यूरोपीय यात्रा की समयसूची कम कर दी है । तीन दिसम्बर को भारतीय विदेश मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी के साथ वार्ता के बाद आयोजित संयुक्त न्युज ब्रीफिंग में सुश्री राइस ने यह आश्वासन दिया है कि अमरीका भारत के साथ सहयोग कर मुम्बई आतंकवादी हमलों का जायज़ा लेगा और पाकिस्तान को आतंकवाद विरोधी सवालों पर भारत को और पारदर्शी समर्थन देने की सलाह देगा । सुश्री राइस ने यह भी कहा कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति श्री जरदारी ने मुम्बई आतंकवादी हमलों की जांच पड़ताल करने में भारत का पूरा साथ देने का वायदा भी किया है ।

चालू वर्ष में भारत में अनेक बार आतंकवादी हमले हुए हैं , लेकिन मुम्बई आतंकवादी हमलों के बाद अमरीका अचानक अपना सामान्य रुख बदलकर इसी संदर्भ में क्रियाशील होने लगा है । सर्वप्रथम अमरीकी विदेश मंत्रालय और अमरीकी राष्ट्रपति श्री बुश ने इस बात को लेकर जारी अपने अपने वक्तव्य में वचन दिया है कि अमरीका भारत सरकार का आतंकवादी हमलों का जायजा लेने के लिये पूरा समर्थन कर देगा । फिर राष्ट्रपति श्री बुश ने विदेश मंत्रालय , रक्षा मंत्रालय और अन्य संबंधित संस्थाओं को इसी घटना की जांच पड़ताल करने के लिये मानवीय व अन्य सहायता करने का आदेश दिया है और लगातार नव निर्वाचित राष्ट्रपति ओबामा को संबंधित सूचनाएं सूचित कर दीं । इस के अतिरिक्त अमरीकी संस्था एफ बी आई के कर्मचारी तुरंत ही जांच पड़ताल को सहायता देने के लिये भारत गये हैं , इसी बीच सुश्री राइस भारत पाक वरिष्ठ अधिकारियों के साथ सम्पर्क बनाये रखे हुए हैं ।

विश्लेषकों ने जताया है कि अमरीका ने इसीलिये मुम्बई आंतकवादी हमलों की जांच पड़ताल करने में सक्रिय रूप से कदम रखा है , क्योंकि वह इस बात पर चिन्तित है कि कहीं अफगानिस्तान में अपने नेतृत्व में आतंक विरोधी संघर्ष को तनावपूर्ण भारत पाक संबंधों की वजह से प्रभावित न हो जाये ।

2001 में अमरीका में हुई 11 सितम्बर आतंक घटना के बाद पाकिस्तान दक्षिण एशिया में अमरीका का सब से प्रमुख आतंक विरोधी संश्रयकारियों में से एक बन गया है । अमरीका ने पाकिस्तान के समर्थन के जरिये अफगानिस्तान के भीतर अल कायदा के खिलाफ विशाल फौजी अभियान चलाये हैं और तालिबान सत्ता का तख्ता उलट दिया है । पर इधर सालों में अमरीका ने आंतक विरोधी संघर्ष का जोर इराक युद्ध मोर्चे पर स्थानांतरित किया है , जिस से अफगानिस्तान के भीतर तालिबान व अल कायदा का उदय फिर हो गया है । वर्तमान में आतंक विरोधी अफगान संघर्ष को मजबूत बनाने के लिये अमरीकी चीफ आफ स्टाफ के ज्वाइंट कांफ्रेंस के अध्य़क्ष माल्लेन ने अनेक बार पाक सेनाध्यक्ष के साथ वार्ताओं में पश्चिम पाकिस्तानी सीमावर्ती क्षेत्र में आतंक विरोधी मामलों पर विचार विमर्श किया । अमरीका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति ओबामा भी तालिबान व अल कायता की बची खुची शक्तियों का खात्मा करने के लिये अफगानिस्तान में और सैनिक भेजने का पक्ष लेते हैं ।

वर्तमान में हालांकि पाकिस्तान ने इस बात को बारंबार अस्वीकार किया है कि मुम्बई आतंकवादी हमलों में पाकिस्तान का हाथ है और संबंधित व्यक्तियों को इसी घटना की जांच पड़ताल करने में भारत का साथ देने के लिये भेज दिया है , पर भारत द्वारा जारी संबंधित जांच परिणामों व सबूतों का निशाना फिर भी लगातार पाकिस्तान पर है । विश्लेषकों का कहना है कि यदि संबंधित जांच पड़ताल अंत में इस बात को साबित कर दिखाएगी कि मुम्बई आतंकवादी हमलों में सचमुच पाकिस्तान का हाथ होगा , तो दुविधा में पड़ने वाला अमरीका मजबूर होकर पाकिस्तान पर कुछ कदम उठा देगा ।लेकिन आगामी काफी लम्बे अर्से में आफगानिस्तान व पाकिस्तान फिर भी अमरीका के सामने मौजूद सब से बड़ा आतंकवादी खतरा ही है , जिस से पाक अफगान सीमांत क्षेत्रों में अमरीकी आतंक विरोधी संघर्ष और अत्यंत कठिन होगा । इसलिये अमरीका पाक सरकारी व फौजी समर्थन व सहयोग को नहीं छोड़ सकेगा , पाकिस्तान आतंक विरोधी विश्वव्यापी संघर्ष में अमरीका का अपरिहार्य दक्षिण एशियाई संश्रयकारी भी बना रहेगा ।

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