2008-12-02 12:47:26

भगवान और मानव को जोड़ने वाली सूत्र झंडी

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में पहाड़ों की चोटियों, नदियों व रास्तों के पास तथा मठों में अक्सर रंगबिरंगी सूत्र झंडियां दिखाई देती हैं । झंडियों में बौद्ध सूत्र अंकित रहते हैं । तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायियों के विचार में हवा के साथ फहराती हुई सूत्र झंडियां लोगों के सूत्र पढ़ने के समान हैं। सूत्र झंडियां लगातार भगवान के सामने मानव की इच्छा व्यक्त करती हैं, इस तरह इसे भगवान और मानव को जोड़ने वाला पुल माना जाता है ।

तिब्बती सूत्र झंडी में अंकित चित्र भिन्न-भिन्न होते हैं और लम्बाई भी अलग-अलग होती है । सब से लम्बी सूत्र झंडी तीन से पांच मीटर लम्बी और साठ सेंटीमीटर चौड़ी होती है, जिस पर बौद्ध सूत्र, पक्षी व जानवरों के चित्र अंकित रहते हैं । इस प्रकार की सूत्र झंडी आम तौर पर मैदान और मठों के सामने रखे हुए सूत्र झंडी स्तंभ पर बांधी जाती है। कम लम्बाई वाली सूत्र झंडी आम तौर पर नीली, सफेद, लाल, हरी और पीले पांच रंगों वाली होती हैं, जिन पर बौद्ध सूत्र, पक्षी और जानवरों के चित्र अंतिक रहते हैं और आम तौर पर एक रस्सी पर बांधी जाती हैं । रस्सी को पहाड़ की चोटी पर बांधा जाता है, जहां कम आदमी आते-जाते हैं । तिब्बती लोगों के मकान की छत पर बंधी सूत्र झंडी इस प्रकार की होती है, ऊपर पांच नीली, सफेद, लाल, हरी और पीली झंडी और नीचे एक रंग वाली प्रमुख झंडी होती है । तिब्बती लोग इसे हवा में फहराती हुई सूत्र झंडी या "हवा झंडी"कहते हैं । ये झंडियां रंगविरंगी होती हैं। सूत्र झंडी के रंगों का अलग-अलग अर्थ होता है । नीली सूत्र झंडी आसमान का प्रतीक है, सफेद सूत्र झंडी सफेद बादल का, लाल सूत्र झंडी अग्नि का, हरी सूत्र झंडी हरे पानी की और पीली सूत्र झंडी जमीन की प्रतीक है ।

नए साल में एक ही समय पर हर तिब्बती परिवार नई सूत्र झंडी बांधता है । महत्वपूर्ण त्योहार, घर स्थानांतरण, शादी, प्रार्थना के लिए बाहर जाना आदि महत्वपूर्ण दिवस पर तिब्बती लोग सूत्र झंडी बांधते हैं । अनेक क्षेत्रों में लोग विशेष दिन सूत्र झंडी को बदलते हैं । मसलन तिब्बती बंधुओं द्वारा पवित्र पहाड़ कांगडे पर्वत पर, तिब्बती पंचांग के अनुसार हर वर्ष की अप्रेल की पंद्रह तारीख को सूत्र झंडी परिवर्तन रस्म आयोजित की जाती है, इस प्रथा का इतिहास बहुत पुराना है । इसी दिन तिब्बती लोग पुरानी पांच रंग वाली सूत्र झंडी को बदल कर नई पांच रंग वाली सूत्र झंडी बांधते हैं । लोग सूत्र झंडी बदलने की रस्म में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और पुरानी सूत्र झंडी छीनने की गतिविधि में भी हिस्सा लेते हैं । कहते हैं कि एक साल फहराने वाली पुरानी सूत्र झंडी अमंगल दूर कर सकती है ।

 

तिबब्त में पुण्य कर्म के लिए बकरी स्वतंत्र छोड़े जाने की प्रथा

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के अनेक मठों में या उन के आसपास कभी कभार ऐसे बकरी विचरते दिखाई देते हैं, जिन के कोई मालिक नहीं है । बकरियों के गले पर लाल कपड़े की पट्टी बांधी गई है । ये बकरी या तो अकेले या दो तीन के झुंड में स्वच्छंद से घास चरते फिरते हैं । वास्तव में इन बकरियों के पहले मालिक थे, उन के पूर्व मालिक तिब्बती बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और उन्होंने पुण्य कर्म के लिए अपने बकरी को मठ में या मठ के आसपास स्वतंत्र छोड़ दिया, जो वध किये जाने से बच जा सकते है।

तिब्बती बौद्द धर्म के अनुयायियों के विचार में बकरी को स्वतंत्र छोड़ने से पुण्य जुटाया जा सकता है और सुखमय जीवन प्राप्त हो जाता है । इस तरह बकरी को स्वतंत्र छोड़ना एक पुण्य का कार्य माना जाता है । तिब्बती चरवाहे बकरी पालते हैं, एक दो बकरी को स्वतंत्र छोड़ना उन के लिए कोई भारी बोझ नहीं है । लेकिन कृषि प्रधान क्षेत्र व शहर में बकरी को स्वतंत्र छोड़ना अलग की बात है । वहां जो बकरी को पुण्य-कर्म के लिए स्वतंत्र छोड़ना चाहता है, तो उसे बकरी खरीदना पड़ता, यदि ऐसी बकरी खरीदने को मिली , जिस का वध किया जाने वाला है , तो उसे स्वतंत्र छोड़ा जाना ज्यादा पुण्य समझा जाता है । क्यों कि इस तरह उस बकरी का भाग्य पलट गया है।

बकरी खरीदने के बाद मनमाने ढंग से उसे नहीं छोड़ा जाता है । बकरी को स्वतंत्र छोड़ने की बंधी-बनी रस्म होती है । आम तौर पर मालिक बकरी को लेकर मठ या तीर्थ स्थल जा कर उस का परिक्रमा करता है, दंडवत प्रमाण करता है और देवदार पेड़ के पत्तों को धूपबत्ती के रूप में जला कर पूजा-अर्चना करता है । दिलचस्पी की बात यह है कि मालिक इन कर्मों को अदा करने के वक्त बकरी को भी मिलती जुलती हरकत करवाता है । अंत में बकरी के गले पर लाल कपड़े की पट्टी बांध दी गयी और उसे स्वतंत्र छोड़ा गया । इसी वक्त से वह बकरी स्वतंत्र बकरी बन गयी ।

आश्चर्यजनक बात यह है कि ये मालिक रहित बकरी दूर नहीं भागते हैं । मानो वे भी प्रगाढ़ धार्मिक वातावरण से प्रभावित हो जाते हैं। वे मठ में पूजा करने आए धर्मचक्र घूमाने वाले लोगों के साथ चक्कर काटते हुए चलते फिरते हैं ।

स्वतंत्र छोड़े गए बकरी के साथ धर्मचक्र घूमाने आने वाले तिब्बती बौद्ध अनुयायी अच्छा व्यवहार करते हैं । वे बकरियों को खाने की चीज़ देते हैं । इस तरह स्वतंत्र छोड़े गए बकरी को कभी भूख नहीं लगती । शायद इसी कारण ये बकरी बहुत आज्ञाकारी बने और धर्म चक्र घूमाने वाले तिब्बती बौद्ध अनुयायियों की पांते का एक भाग बन गया और तिब्बत में एक विशेष दृश्य हो गया ।(श्याओ थांग)