2008-12-01 15:22:56

मानी पत्थर टीला और मानी प्रस्तर नक्काशी

तिब्बत स्वायत्त प्रदेश और तिब्बती बहुल क्षेत्र में मानी पत्थर टीला बहुत सामान्य है । मानी पत्थर आम तौर पर सफेद रंग का होता है, जिस का आकार गोल और वर्गाकार होता है । आम तौर पर मानी पत्थर पहाड़ की चोटी, रास्ते के चौराहे, बंदरगाह, झील के तट पर और मठ में देखने को मिल जाता है, यह मंगल का प्रतीक माना जाता है । प्रारंभिक मानी पत्थर टीले का पैमाना ज्यादा बड़ा नहीं है, लेकिन पठार में रहने वाले तिब्बती बंधुओं की आदत है कि वे मानी पत्थर टीला के पास से गुज़रने के वक्त देवी-देवताओं से प्रार्थना करते हैं । इस के साथ ही वे मानी पत्थर टीले का एक चक्कर लगाते हैं और एक और पत्थर टीले पर फेंकते हैं। इस तरह लम्बे समय में पूर्व मानी पत्थर टीले का पैमाना धीरे-धीरे बड़ा हो गया है ।

बौद्ध धर्म के तिब्बत में प्रवेश होने के बाद मानी पत्थर टीला का और विकास हुआ । स्थानीय लोग कुछ विशेष सफेद पत्थरों पर बौद्ध सूत्र और बुद्ध मूर्ति अंकित करते हैं । इन मानी पत्थरों का आकार भिन्न-भिन्न है, जिस पर अंकित किए जाने वाले विषय आम तौर पर तिब्बती बौद्ध धर्म से संबंधित हैं । बौद्ध सूत्र, बुद्ध मूर्ति और देव मूर्ति के अलावा तिब्बती लोग शुभकामना वाले वाक्य और जानवरों की आकृति आदि भी तराशते हैं । इस तरह मानी पत्थर का विषय बहुत विविधतापूर्ण है ।

मानी परस्तर नक्काश कलाकार तिब्बत में ज्यादा हैं । मानी पत्थर पर किसी भी विषय को तराश करने के पूर्व, वे सदिच्छापूर्ण देव की प्रार्थना करते हैं । तिब्बत के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग शैली है । भिन्न-भिन्न नक्काश कलाकारों द्वारा तराशे किए गए मानी पत्थर अलग-अलग हैं । यहां तक कि एक ही कलाकार की रचनाएं भी विविधतापूर्ण हैं । तिब्बती मानी पत्थर के प्रस्तर नक्काश कलाकारों के विचार में तराशने में बुद्ध के प्रति सदिच्छपूर्ण भावना सब से महत्वपूर्ण है ।

तिब्बती बहुल क्षेत्रों में लोग मानी पत्थर को अपने अक्सर आने-जाने वाले स्थल पर रखते हैं, कुछ लोग मानी पत्थर को पवित्र वस्तु के रूप में घर में भी रखते हैं, कुछ लोग दूर की पवित्र यात्रा के लिए मानी पत्थर को अपने पास रखते हैं । मानी पत्थर को लोगों के सुरक्षा देव के रूप में दीवार पर रखा जाता है । यहां तक कि कुछ स्थलों में मानी पत्थर की पूजा के लिए विशेष भवन का भी निर्माण हुआ है ।

धर्म और कला को जोड़ने वाली वस्तु"त्स्हा-त्स्हा"

तिब्बत में मानी पत्थर के अलावा और एक किस्म वाली धार्मिक कलात्मक वस्तु बहुत लोकप्रिय है, जिस की तिब्बती बंधु पूजा करते हैं, इस का नाम है"त्स्हा-त्स्हा"।

"त्स्हा-त्स्हा"एक किस्म की छोटे आकार वाली मिट्टी की बुद्ध मूर्ति है, इसे तिब्बती बंधु पवित्र वस्तु के रूप में आम तौर पर पवित्र पहाड़, देव भवन और मठ के पास रखते हैं । कुछ"त्स्हा-त्स्हा"को नदियों व झीलों में, मार्गों के केंद्र और चौराहों पर भी रखा जाता है, यहां तक कि कुछ"त्स्हा-त्स्हा" को बड़ी बुद्ध मूर्ति के अंदर, बुद्ध पैगोडा के केंद्र में भी रखा जाता है । अनेक तिब्बती लोग सुरक्षा की प्रार्थना के लिए "त्स्हा-त्स्हा"को अपने पास रखते हैं । और तो और, "त्स्हा-त्स्हा" मानी पत्थर और सूत्र झंडी तीनों वस्तु तिब्बती बंधु के प्रार्थना जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं ।

"त्स्हा-त्स्हा"आम तौर पर मिट्टी से बनी हुई होती है । लोग आर्द्र मिट्टी को विभिन्न प्रकार के नमूनों में रखते हैं, सूखने के बाद"त्स्हा-त्स्हा"सामने आता है । आम तौर पर मिट्टी वाले"त्स्हा-त्स्हा"की छोटी बुद्ध मूर्ति से अग्नि के जरिए मिट्टी का बर्तन बनाया जाता है । इस प्रकार"त्स्हा-त्स्हा"बहुत सुस्थिर और सुन्दर भी है । "त्स्हा-त्स्हा" का रंग मिट्टी के रंग के अलावा, काला, लाला और नीला आदि भी होता है । इस से अक्सर रंगीन बुद्ध मूर्ति बनायी जाती है । मिट्टी"त्स्हा-त्स्हा"बनाने वाली बुनियादी सामग्री है, लेकिन वह एक मात्र सामग्री नहीं है, इस में स्वर्ण व रजत सामग्री, मोती और रत्न को भी शामिल किया जा सकता है । इस प्रकार का"त्स्हा-त्स्हा बहूमूल्य है ।

सब से उच्च त्तरीय"त्स्हा-त्स्हा"का नाम है"बु त्स्हा"। उस की विशेषता है कि"त्स्हा-त्स्हा"बनाने के वक्त मिट्टी में जीवित बुद्ध का खून पानी वाला नमक और मूल्यवान तिब्बती औषधि शामिल की जाती है । ये जीवित बुद्ध मात्र दलाई लामा और पंचन लामा आदि अल्पसंख्यक जीवित बुद्ध हैं, जो पैगोडे में कब्रगाह कर सकते हैं । पैगोडे में निर्वाण ले रहे जीवित बुद्धों को कब्रगाह करने के पूर्व उन के शरीर का कड़ा निपटारा किया जाता है । इसी दौरान नमक और तिब्बती औषधि के जरिए जीवित बुद्ध के शरीर के खून और पानी को सुखाया जाता है । इस नमक और तिब्बती औषधि से बना"बू त्स्हा"बह्तु मूल्यवान है, इससे रोग का इलाज किया जा सकता है और अमंगल वस्तु को दूर किया दा सकता है ।