2008-11-24 17:04:51

ल्हासा के सांगमू गांव का दौरा

इस वर्ष 21 जून की सुबह पेइचिंग ऑलंपिक पवित्र अग्नि की रिले रस्म ल्हासा में आयोजित की गयी । सांगमू गांव के तिब्बती लोगों ने त्योहार के वक्त पहने जाने वाले सुन्दर कपड़े पहन कर गाते नाचते हुए ऑलंपिक की पवित्र अग्नि का स्वागत किया । सांगमू गांव के 87 वर्ष की बड़ी मां यांगजोंग ने खुशी के साथ कहा:

"मैं ने अपने घर को खूब साफ़ किया । देखो, आंगन में फूल खिल रहे हैं। मैं ने सफेद हाता और जौ की मदिरा तैयार की, और मैं समय पर ऑलंपिक की पवित्र अग्नि के आगमन का स्वागत करने को तैयार हूं ।"

बड़ी मां यांगजोंग का सांगमू गांव तिब्बत में नाच-गान के लिए मशहूर है । वर्ष 2002 में ल्हासा सरकार ने इस गांव को तिब्बती जातीय रीति रिवाज़ पर्यटन गांव का दर्जा दिया । बड़ी मां यांग जोंग ने कहा कि छिंगहाई-तिब्बत रेल लाइन बिछने के बाद तिब्बत स्वायत्त प्रदेश और सांगमू गांव में आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है । पर्यटक सांगमू गांव आने के बाद गांव में सब से ज्यादा उम्र वाली"गाईड"और सब से ज्यादा उम्र वाली गायिका यांगजोंग द्वारा गाए गए तिब्बती लोक गीत और तिब्बती ऑपेरा सुनना चाहते हैं ।

तिब्बती लोक गीत----

अब आप सुन रहे हैं बड़ी मां यांगजोंग द्वारा गाया गया तिब्बत में प्रचलित《चोमा लाखांग》नामक लोक गीत । गीत के बोल इस प्रकार हैं :

हमारा जन्मस्थान सब से सुन्दर है

हमारा जन्मस्थान का पानी सब से स्वच्छ है

हमारे जन्मस्थान के लोग सब से अच्छे हैं

वे बहुत सीधे-सादे हैं और मेहमानन वाज़ भी

तिब्बती बड़ी मां यांगजोंग ने कहा कि यह गीत वे पुराने तिब्बत से नए तिब्बत तक गाती हैं । गीत के शब्दों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, लेकिन अलल-अलग युग में इस गीत को गाने की भावना अलग होती है । उन्होंने कहा:

"पुराने जमाने में कर वसूली बहुत ज्यादा थी । मैं गाने से कुछ कमाई कर जीवन बिताती थी, लेकिन मेरे पास जूते भी नहीं होते थे। तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति के बाद मैं सामान्य जीवन बिताने लगी । गीत गाना अपने जीवन के मनोरंजन के लिए हो गया । आज हमारा जीवन सुखी है, दूर से आए मेहमानों के लिए गीत गाना मुझे अच्छा लगता है ।"

तिब्बती बड़ी मां यांगजोंग का गांव सांगमू गांव है । तिब्बती भाषा में"सांगमू"का मतलब है"उपजाऊ भूमि"। वर्ष 2002 में तिब्बती जातीय रीति रिवाज़ पर्यटन गांव बनने के पूर्व यहां उपजाऊ भूमि, के अलावा, तिब्बती ऑपेरा, लोकगीत और तिब्बती नृत्य आदि विशेष सांस्कृतिक संसाधन थे । लेकिन लम्बे समय तक गांव वासियों को जातीय सांस्कृतिक संसाधनों से उन के जीवन में आने वाला कोई भी परिवर्तन महसूस नहीं हुआ । सांगमू गांव की समिति के प्रधान श्री थुतङ ने कहा:

"पहले हमारे गांव के लोग काम करने के वक्त गीत गाते थे ।मसलन मकान बनाने के वक्त गाए मेहनत का गीत, खेती का काम करने के वक्त खेती का गीत और पशु पालने के वक्त गाए जाने वाला गीत इत्यादि । लेकिन दसियों वर्षों से खेती का काम करते हुए हम ने कभी नहीं सोचा कि गीत गाने और नाचने से पैसा कमाया जा सकता है ।"

तिब्बत में लगातार सुधार व खुलेपन के चलते सांगमू गांव वासी उप नगर कृषि के विकास में जुटे हुए हैं । वर्ष 2002 में गांव वासियों की औसतन आय 2500 य्वान थी, यह संख्या इस वर्ष तिब्बती किसान व चरवाहों की औसतन आय से 430 य्वान अधिक है । ल्हासा की एक पर्यटन कंपनी ने सांगमू गांव का मूल्य पहचाना और गांव की तत्कालीन मुखिया बाजू के साथ सहयोग करने की वार्ता करने आई । इस की चर्चा में तिब्बती बंधु बाजू ने कहा:

"वर्ष 2002 में च्येन नामक एक मैनेजर हमारे गांव आया और उन्होंने हमारे गांव के साथ सहयोग करने की बात की । यानी कि गांव में सांगमू जातीय रीति रिवाज़ मिल्कियत कंपनी की स्थापना की जाएगी। गांव वासियों ने इस पर विचार-विमर्श किया और माना कि यह अच्छी बात है, जिस से गाववासियों की आय में वृद्धि हो सकती है।"

इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े । (श्याओ थांग)