महाकाव्य《राजा केसर》को प्राचीन समय में तिब्बती लोक संस्कृति की सब से उच्च स्तरीय कामयाबी के रुप में देखा जाता है । अब तक इस की कोई 150 किस्म की प्रतियां सुरक्षित रखी हुई हैं । पूरे महाकाव्य में कोई एक करोड़ पचास लाख अक्षर हैं । यह महाकाव्य प्राचीन यूनान के महाकाव्य《इलियड》और भारत के《महाभारत》से दस गुना से भी अधिक बड़ा है ।《राजा केसर》"वर्तमान विश्व में इसे सब से लम्बा जीवित महाकाव्य"माना जाता है । इतने लम्बे महाकाव्य को कथा वाचक मौखिक कैसे याद रखते हैं?इस की चर्चा में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सामाजिक विज्ञान अकादमी के जाति अनुसंधान केंद्र के उप प्रधान त्सेरिन फुन्त्सोक ने जानकारी देते हुए कहा:
"विश्व में कई महान महाकाव्यों की रचना हुई है। यूनान और भारत में अनेक महाकाव्य हैं । लेकिन ये महाकाव्य लिखित रुप में उपलब्ध हैं, इस लिए उन के और विस्तार व विकास की गुंजाईश नहीं रही है । मात्र महाकाव्य《राजा केसर》 एक हज़ार वर्षों से अधिक समय में पीढ़ी दर पीढ़ी कथा वाचकों की जुबान से प्रसारित होता रहा है । इस तरह इस महाकाव्य के विषय भी लगातार फैलते गए,उन में और कहानियां जुड़ती गईं हैं । इस तरह यह महाकाव्य वर्तमान विश्व में एक मात्र जीवित महाकाव्य के रुप में दिखाई पड़ता है। कथा वाचकों की कलात्मक प्रतिभा लोगों को आश्चर्य में डाल देती है । वे कैसे गाते हैं और इन विषयों को याद कैसे रखते हैं, यह हमारे अनुसंधान का एक रहस्यपूर्ण विषय भी है।"
श्री त्सरिन फुनत्सोक ने कहा कि वर्ष 1959 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में लोकतांत्रिक सुधार किए जाने के बाद आधुनिक संस्कृति का जोरदार विकास किया जा रहा है । इस के साथ ही तिब्बत की पम्परागत संस्कृति का संरक्षण व विकास भी मज़बूत किया जा रहा है । वे दसेक साल से महाकाव्य《राजा केसर》का अनुसंधान व आकलन कार्य करने में लगे हुए हैं । इस तरह उन के पास एकत्र अनेक अनुभव हैं । उन्होंने कहा:
"चीन तिब्बत के महाकाव्य राजा केसर के संरक्षण व बचाव कार्य को बहुत महत्व देता है । वर्ष 1979 में चीन ने इस के लिए एक विशेष संस्था की स्थापना की और क्रमशः महाकाव्य के बचाव और संग्रहण कार्य को महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अनुसंधान परियोजनाओं में शामिल किया और बड़ी तादाद में धन राशि लगायी । इस के साथ ही देश ने तिब्बत के नाछ्यू और छांगतु दो प्रिफैक्चरों में केसर से जुड़ा सर्वेक्षण कार्य किया जिस से महाकाव्य राजा केसर की 74 किस्मों की प्रतियां संग्रहित की गईं हैं ।"
श्री त्सेरिन फुनत्सोक ने कहा कि वर्तमान में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश की सामाजिक विज्ञान अकादमी वाचक सांगजू द्वारा गाई गई कथाओं के बचाव व संग्रहण कार्य में संलग्न है । उन का कहना है:
"कथा वाचक सांगजू द्वारा गाए गई《राजा केसर》की कहानियां अधिक हैं । उन में बुनियादी तौर पर सारा महाकाव्य दिखायी देता है।《राजा केसर के संदर्भ में सांगजू का गायन》नामक कृति आज तक एक मात्र कृति है, जिस में राजा केसर की अधिकतम कहानियां शामिल हैं। अब तक 2114 घंटे की रिकार्डिंग की गई है । हम तीन से पांच वर्षों में सारे रिकॉर्डिंग, सम्पादन और आकलन कार्य समाप्त कर प्रकाशित करेंगे। यह एक अभूतपूर्व कार्य है और इतिहास में इस का एक रिकॉर्ड बन जाएगा।"
श्री त्सिरन फुनत्सोक ने कहा कि तीस सालों से ज्यादा समय की खोज, रिकॉर्डिंग और संग्रहण के जरिए वर्तमान में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश ने महाकाव्य《राजा केसर》के अनुसंधान व आकलन में नई प्रगति हासिल की है। उन्होंने कहा:
"अब तक तिब्बत ने कथा वाचकों द्वारा गाईं गईं 130 कृतियों की 5000 कैसेटों में 5000 घंटों की रिकॉर्डिंग की है ।"
तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सामाजिक विज्ञान अकादमी के जाति अनुसंधान केंद्र के उप निदेशक श्री त्सेरिन फुनत्सोक ने कहा कि पिछले पचास वर्षों में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश ने लोक साहित्य व कलात्मक विरासतों के बचाव, आकलन, संग्रहण, अनुसंधान, संपादन, प्रकाशन के लिए इतिहास में अभूतपूर्व कार्य किए । उन्होंने कहा:
"धार्मिक संस्कृति की प्राथमिकता वाले पुराने तिब्बत में प्रचलित लोक महाकाव्य को महत्व नहीं दिया गया । तिब्बत की शांतिपूर्ण मुक्ति व लोकतांत्रिक सुधार के बाद, विशेष कर सुधार व खुले द्वारा की नीति लागू होने के बाद सरकार तिब्बत के सांस्कृतिक संरक्षण व विकास को महत्व दे रही है । अब तक क्रमशः 57 लोक कथा वाचकों की खोज की गई, कुल 130 से ज्यादा गायन कृतियां बनायी गईं और 73 कृतियों को प्रकाशित किया गया । कई विषयों का अंग्रेज़ी, जापानी और फ्रांसीसी भाषा में भी अनुवाद किया गया । यह तिब्बती जातीय लोक संस्कृति व कला के संरक्षण व प्रकाशन इतिहास में अभूतपूर्व है । तथ्यों से जाहिर है कि दलाई लामा ग्रुप द्वारा फैलायी गई अफ़वाह पूरी तरह निराधार है,कि चीन सरकार ने तिब्बत की संस्कृति को नष्ट किया है । यह विश्व को बेवकूफ़ बनाने वाली झूठी बात है ।" (श्याओ थांग)