2008-11-17 16:38:53

जी बीस के शिखर सम्मेलन से वित्तीय संकट के मुकाबले में विश्व का विश्वास बढ़ा

दोस्तो , विश्व की नजर में जी बीस का शिखर सम्मेलन गत शनिवार को अमरीका में संपन्न हुआ । चीनी अर्थशास्त्रियों ने कहा कि हालांकि मौजूदा सम्मेलन में वित्तीय संकट के मुकाबले के लिये कोई संतोषजनक प्रस्ताव नहीं हो पाया , लेकिन सम्मेलन में हिस्सेदारों द्वारा संयुक्त रूप से जारी घोषणा पत्र से वर्तमान संकट के मुकाबले में विभिन्न देशों का विश्वास बढ़ गया और अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था के सुधार पर सैद्धांतिक मतैक्य प्राप्त हो पाया है ।

जी बीस के शिखर सम्मेलन में विकसित देशों व विकासमान देशों के नेताओं का समान विचार है कि समग्र आर्थिक सहयोग के आधार पर और व्यापक नीतिगत कार्यवाही करना जरूरी है , ताकि वित्तीय संकट और भूमंडलीय आर्थिक मंदी से उत्पन्न प्रभाव को कम किया जाये सके और विकासमान देशों को समर्थन दिया जा सके । सम्मेलन में विभिन्न देशों से यह अपील की गयी है कि आर्थिक वृद्धि व स्थिरता को बनाये रखने के लिये आवश्यक वित्तीय व मैद्रिक नीतियां अपनायी जाये , साथ ही अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था के सुधार के बारे में पांच सिद्धांत निश्चित हुए हैं , पर ठोस कदम अगले वर्ष मार्च में सार्वजनिक होगा ।

अर्थ शास्त्रियों का मानना है कि हालांकि लोग इस सम्मेलन पर ज्यादा आशाएं बांधे हुए हैं , पर विश्वव्यापी वित्तीय संकट का समाधान एक ही रात में करना असम्भव है , संबंधित ठोस कदमों पर सलाह मशविरा सम्मेलन के बाद किया जाना आवश्यक है । शांगहाई फू तान विश्वविद्यालय के चीनी आर्थिक अनुसंधान केंद्र के प्रधान श्री चांग च्युन का विचार है कि इस सम्मेलन ने जो सब से बड़ा योगदान किया है , उस से विश्व अर्थव्यवस्था में लोगों का विश्वास बढ़ गया है ।

असल में मुझे लगता है कि सम्मेलन से जो सब से बड़ी सूचना प्राप्त हुई है , वह विश्वास ही है , जी बीस के देशों का एकत्र होने का अर्थ वित्तीय संकट के और फैलाव पर रोक लगाने के लिये समान सहयोग कर कार्यवाही योजना निर्धारित करना ही है , मेरे ख्याल से यह एक बेहद महत्वपूर्ण सिगनल है ।

वर्तमान में विकसित देशों ने आर्थिक वृद्धि का समर्थन करने के लिये ब्याज दर गिराने की मैद्रिक नीति अपनायी , जबकि मौजूदा शिखर सम्मेलन ने स्पष्टतः यह विचार व्यक्त किया है कि विभिन्न देशों को अर्थतंत्र को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक वित्तीय नीति अपनाने की जरूरत है । शिखर सम्मेलन के आयोजन से पहले चीन ने अर्थतंत्र को बढ़ावा देने के लिये 40 खरब य्वान का प्रस्ताव सार्वजनिक किया , जिस से सारी दुनिया में सकारात्मक प्रतिक्रियाएं पैदा हो गयीं ।

फू तान विश्वविद्यालय के चीनी आर्थिक अनुसंधान केंद्र के प्रधान श्री चांग च्युन ने इस की चर्चा में कहा कि चीन का 40 खरब य्वान का प्रस्ताव मौजूदा शिखर सम्मेलन में एक बहुचर्चित सवाल बन गया है , इस से बहुत से विकासमान देशों को सीखने का सिगलन सूचित हुआ है और इस का विश्वव्यापी अर्थतंत्र पर अनुकूल प्रभाव पड़ गया है ।

इस के अतिरिक्त सम्मेलन में हिस्सेदार विभिन्न देशों के नेताओं ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था के सुधार पर कुछ सैद्धांतिक मतैक्य प्राप्त कर लिये हैं । इन सिद्धांतों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं का रूप बदलेगा तथा और अधिक नवोदित आर्थिक समुदायों के सदस्यों का ग्रहण किया जायेगा , मसलन चीन , भारत व ब्राजिल जैसे नवोदित आर्थिक समुदाय अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था में और बड़ी भूमिका निभा देंगे । मौजूदा शिखर सम्मेलन में हिस्सेदारों की निगाहें चीन पर टिकी हुई हैं और उन्हें उम्मीद है कि वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्थार के सुधार में चीन और बड़ी भूमिका निभायेगा । चीनी राष्ट्राध्यक्ष हू चिन थाओ ने जी बीस के शिखर सम्मेलन में स्पष्टतः जताया कि चीन जिम्मेदारा रुख अपनाकर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता की रक्षा करने और विश्व आर्थिक विकास के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देने को तैयार है ।

जे . पी . मोर्गन चास के एशिया प्रशांत क्षेत्र के चीफ अर्थ शास्त्री कोंग फांग शुंग ने कहा कि चीन को ऐसे वक्त पर विश्वव्यापी आर्थिक बहाली के लिये योगदान करना चाहिये , इस के साथ ही चीन को बोलने का तदनुरूप अधिकार भी प्राप्त करना भी चाहिये । उन का कहना है मेरे ख्याल से एक तरफ भाग लेने में पहल करना जरूरी तो है , पर दूसरी तरफ अपना उचित स्थान व अधिकार प्राप्त करने के लिये प्रयासशील भी होना चाहिये ।

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि चीन , भारत व ब्राजिल जैसे नवोदित आर्थिक समुदायों ने जी बीस के शिखर सम्मेलन में मुख्य पार्ट अदाकर अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था के सुधार की प्रक्रिया में सकारात्मक भूमिका निभायी है , इस से जाहिर है कि विश्वव्यापी आर्थिक शक्तियों का अनुपात स्पष्टतः बदल गया है ।