बैठक में सम्राट याओ ने अपना विचार जताया , तो फांग छी नाम के एक मुखिया ने कहा कि महा राजा , आप का पुत्र तानजु प्रतिभाशाली है , उसे आप की जगह गद्दी पर बिठाना चाहिए । याओ ने गंभीरता के साथ कहाः नहीं ,मेरा पुत्र नैतिक आचार में ठीक नहीं है , वह औरों के साथ झगड़ा हुआ करता है । एक दूसरे मुखिया ने कहा कि जल संसरण अधिकारी क्वांगकुंग ठीक है । नहीं में सिर हिलाते हुए याओ ने कहाः क्वांगकुंग बड़ा खुशामद निकला है , पर मन में अलग सोचता है , इस किस्म के लोग पर मैं विश्वास नहीं कर सकता हूं । इस बैठक में कोई निष्कर्ष नहीं निकला , याओ ने अपने उतराधकारी की तलाश करना जारी रखा ।
एक अरसा गुजरा , याओ ने फिर सभी मुखियाओं को बुला कर उतराधिकारी के चुनाव पर सलाह सुना । इस बैठक में कुछ मुखियाओं ने एक जन साधारण नौजवान श्वुन की सिफारिश की । याओ ने हां में सिर हिलाया और कहाः मैं ने भी सुना है कि वह एक बहुत नैक व्यक्ति है । क्या तुम लोग उस के बारे में कुछ ज्यादा बता सकते हो ? तो उन मुखियाओं ने कहा कि श्वुन का पिता एक अत्यन्त साधारण और खराब तबीयत आदमी है , वह आंखों में अंधा है । श्वुन की माता बहुत पहले ही चल बसी है , सौता मां उस के साथ बहुत बुरा व्यवहार करती है , सौता मां का पुत्र श्यांग है , जो बेहद घमंडी है , अंधा पिता भी श्यांग से बड़ा दुलार करता है । श्वुन इसी प्रकार के परिवार में रहता है , तो भी वह पिता , सौता माता और सौता भाई के साथ बहुत नैक आचार करता है , इसलिए लोग उसे नैतिक औऱ सुशील मानते हैं ।
श्वुन की कहानी सुनने के बाद सम्राट याओ ने उस की जांच परख करने का निश्चय किया । याओ ने अपनी दो पुत्रियों अहुंग और न्युइंग को श्वुन के साथ शादी करवायी और श्वुन के लिए अन्नभंडार बनवाया तथा बड़ी संख्या में बैल बकरे भी भेंट किए । श्वुन की सौता मां और सौता भाई को इस पर बहुत ईर्षा आयी , उन्हों ने श्वुन के अंधा पिता के साथ मिलीभगत कर श्वुन की गुप्त हत्या करने की कोशिश की ।
एक बार , श्वुन के अंधा पिता ने उसे अन्नगोदाम की छत की मरम्मत करने को कहा , जब श्वुन सीढी से छत पर चढ़ा , तो अंधा ने गोदाम के नीचे से आग जला कर उसे जिन्दा मारने की कोशिश की । छत पर चढ़े श्वुन ने जब देखा कि गोदाम पर आग लगी , तो उस ने सीढी ढूंढी , लोकिन इस वक्त सीढी वहां गायब हो गई । सौभाग्य की बात थी कि श्वुन के पास दो बड़ी बड़ी बांस की टोपी हैं , जो तपती सूर्य किरणों से सायां लेने के लिए लायी थीं । श्वुन तुरंत हाथों में दोनों टोपियों का पक्षी पंखे के रूप में इस्तेमाल कर छत पर से नीचे उड़ते उतर आया , बांस की टोपियों के हवा में उड़ते हुए श्वुन सही सलामत जमीन पर उतरा और उसे जरा भी चोट नहीं लगी ।
अंधा पिता और सौता भाई अपनी विफलता से हार नहीं मानी , उन्हों श्वुन को कुआ खोदने भेजा , जब श्वुन कुवा के भीतर कुद पड़ा , तो दोनों ने ऊपर से कुआ के भीतर बहुत से पत्थर फेंके , वे चाहते थे कि श्वुन को कुआ में दबा कर मारा जाए । लेकिन श्वुन ने कुआ में उतरने के बाद ही कुआ की भीति पर एक सुरंग खोदा , इसी से निकल कर वह सुरक्षित रूप से घर लौटा ।
इस वक्त श्वुन के सौता भाई श्यांग को पता नहीं था कि श्वुन खतरे से बच चुका है , वह बड़ी खुशी के साथ घर आया और अंधा पिता से बोला कि अब बड़ा भाई जरूर मर चुका है , यह चाल मैं ने सोच निकाला है , अभी हम भाई की संपति का बंटवारा करें । कहते हुए वह श्वुन के कमरे में चला , कमरे में प्रवेश करते ही उस ने पाया कि श्वुन पलंग पर बैठे तुंत वाद्य बजा रहा है । श्वुन को सही सलामत लौटे देख कर श्यांग को बड़ी हैरत आयी , वह लज्जा के साथ बोला , भाई , मैं आप की बहुत याद कर रहा हूं ।
प्रकट में कुछ भी नहीं हुआ सा दिखाते हुए श्वुन बोलाः तुम अच्छा आए हो , मेरा बहुत सा काम करना है , आओ , मेरी मदद करो । इस घटना के बाद भी श्वुन पहले की ही तरह बड़े स्नेह के साथ पिता माता और भाई से बर्ताव करता है , तभी से अंधा पिता और सौता भाई को फिर श्वुन के साथ अहित कार्यवाही करने का साहस नहीं आ सका ।
सम्राट याओ ने अनेक मौकों पर श्वुन का निरीक्षण किया और अंत में माना कि श्वुन सच्चे माइये में एक नैतिक और कार्यकुशल व्यक्ति है , इसलिए उस ने सम्राट की गद्दी श्वुन को सौपी , श्वुन भी चीनी राष्ट्र का एक प्रसिद्ध महा सम्राट बन गया ।
सम्राट की गद्दी पर बैठने के बाद श्वुन अपनी मेहनत व किफायत की श्रेष्ठ परम्परा बनाए रखते हुए प्रजा की ही तरह परिश्रम करता रहा , उसे भी प्रजा से विश्वास मिला । कुछ सालों के बाद पूर्व सम्राट याओ का देहांत हुआ , तब श्वुन ने सम्राट की गद्दी को उस के पुत्र तानजु के हवाले कर देने को भी चाहा , लेकिन सभी लोग नहीं मानते थे । सम्राट श्वुन ने भी अपनी वृद्धावस्था में इसी तरह नैतिक व प्रतिभाशाली यु को चुन कर अपना उतराधिकारी बनाया ।