इस तरह कई दिन गुजरे थे , राजा शिल्पी से उत्तम मूर्ति कला का प्रदर्शन देखने के अत्यन्त आतुर हो गया , लोकिन शिल्पी ने राजा से कहा , महा राजा , यदि आप मेरी अनुठा मूर्ति कला देखना चाहते हैं , तो मेरी दो शर्तें मानना होगी । पहली शर्त है कि आप आधा साल के अन्दर अंतरपूरी में रानियों से मिलने कभी नहीं जाए , दूसरी है कि आप मदिरा और गोश्त नहीं खाने का व्रत रखें । फिर एक धूप वाले साफ दिन में आधा अंधेरा वाली रोशनी में मेरे द्वारा झाड़ी के नुकीले कांटे पर तरा की गई बंदर की मूर्ति देख पाएंगे । ये शर्तें राजा के लिए अत्यन्त कठिन थी , उसे वह पूरा नहीं कर सकता था । लाचार हो कर राजा को शिल्पी को दरबार में बढ़िया खाना व पहनना प्रदान कर पालना पड़ा । किन्तु उस की अनुठा कला देखने का मौका कभी भी नहीं मिला ।
खबर दरबार के एक लोहार के कान तक पहुंची , उसे शिल्पी के चाल पर हंसी पड़ी . लोहार ने राजा से कहा , मैं लोहे के औजार बनाने में कुशल हूं , मुझे मालूम है कि मूर्ति जितनी छोटी क्यों न हो , उसे चाकू से खोद तराश कर बनाया गया है । इसलिए वह चाकू की धार से बड़ा होना जरूरी है । अगर वह चीज जिस पर मुर्ति खोदी जाती है , चाकू की धार से भी पतली नुकीली है , तो उस पर मूर्ति नहीं खोदी जा सकती है । महा राजा , आप उस शिल्पी के चाकू की जांच कर जायज करे , तभी शिल्पी का वह दावा सच हो या झूठ सामने आ जाएगा । लोहार की बात से राजा जाग गए , उस ने तुरंत शिल्पी को पास बुलाया और पूछा कि तुम झाड़ी के नुकीले कांटे रक बंदर की मूर्ति बना सकते हो , तो बताओ कि तुम किस तरह के औजार से बनाओगे । शिल्पी ने जवाब देते हुए कहा , चाकू से बनाता हूं । राजा बोला , ठीक है , तुम अपना चाकू दिखाओ । शिल्पी बहुत घबराया और वह अपने निवास से चाकू लाने जाने के बहाने पर चुपे छुपे दरबार से निकल कर फरार हो गया ।
इस नीति कथा की शिक्षा है कि झूठ बोलना और डींग मारना एक बहुत बुरी आदत है , झूठ की कलई एक न एक दिन अवश्य ही खुल जाती है .