2008-10-30 10:28:25

खुशामद पसंद करने वाला बाघ

जंगल में बंदर की एक विशेष जाति रहती है , इस जाति के बंदर, शरीर में हल्का व चुस्त और पेड़ पर चढ़ने में माहिर होता है । उस के पंजे तेज चाकू की भांति हैं । वह वन-राजा के नाम से मशहूर बाघ को खुशामद करना जानता है ।

बाघ के सिर में अकसर खुजली आती है , खुजली असह्य होने पर, बाघ पेड़ के तन पर सिर रगड़ रगड़ कर खुजली को दूर करने की कोशिश करता है । इसे देख कर बंदर ने बड़ी मीठी शब्दों में कहा

"बाघ दादा , देखो , पेड़ का तन बड़ा गंदा है , फिर तो इस पर सिर रगड़ने से खुजली दूर भी नहीं हो सकती । बेहतर है कि मैं आप की खुजली का अन्त करने आप के सिर पर खुजलाता हूं "।

कह कर ही बंदर फांद कर बाघ के सिर पर जा बैठा और अपने तेज पंजों से बाघ के सिर को खुजलाने लगा । बाघ को बड़ा राहत मिला और आंखों की पलकें बन्द किए खुर्राट लेने लगा । उस के सिर पर बंदर के पंजे धीरे धीरे जोर पकड़ी जा रही है , बंदर ने तेज पंजों से बाघ के खोपड़ी पर आहिसते आहिसते एक छोटा सा छेद बनाया , और अपने पंजे को अन्दर प्रवेश कर बाघ के खोपड़ी का मस्तिक निकाल कर चबाया । भर पेट खाने के बाद बंदर ने बचे हुए कचरे को बाघ के आगे पेश कर भेंट किया और कहा

"बाघ दादा , जब आप झपकी ले रहे थे , मैं कहीं कुछ मांस ढूंढ कर लाया है , उसे मुझे खुद खाने की हिम्मत नहीं है , तो आप को भेंट कर दूंगा , उम्मीद है कि आप इस छोटी सी भेंट पर असंतुष्ट न हों।"

बंदर के वाक्य से बहुत ही प्रभावित हो कर बाघ ने कृपा अदा करते हुए कहा

"तुम सचमुच मेरा वफादार सेवक हो , तुम खुद बड़ी भूख लगने पर भी मेरी सेवा करते हो , इस के लिए मैं तुम्हारा आभारी हूं ।"

यह कहते हुए बाघ ने अपना मस्तिष्क गले के अन्दर डाल दिया ।

दिन पर दिन गुजरता रहा , बाघ के मस्तिष्क को बंदर से खोखला किया जा रहा । उस के सिर में इतना दर्द शुरू हुई, मानो खोपड़ी अभी ही फट जाए , अभी ही फट जाए । तब जा कर उसे मालुम हो गया है कि वह बंदर के चाल में फंस गया है । वह छटपटाते हुए बंदर को प्रतिशोध के लिए ढूंढ़ने लगा , किन्तु इस समय बंदर कब ही ऊंचे पेड़ पर चढ़ कर छिप गया । बाघ बड़ी पश्चापात कर कई दहाड़ मार कर जमीर पर गिर पड़ा और वहीं लुढ़कते लुढ़कते खेत हो गया ।

इस कथा से यह शिक्षा है कि तुच्छ वालों की मीठी बातों में ना आए , किसी की खुशामदी से दूर रहे । तभी बदनियती से अपने की रक्षा की जा सकती है ।