जब ली चिछङ के नेतृत्व में किसान सेना पेइचिङ में प्रवेश कर मिङ शासन को समाप्त करने में लगी हुई थी, उस समय तक शान हाएक्वान दर्रे के बाहर तैनात छिङ सेना चीन के भीतरी इलाके पर हमला करने की पूरी तैयारी कर चुकी थी। विद्रोही किसान सेना ने बची खुची मिङ सेनाओं का सफाया करने में ढील देकर और छिङ सेना के सम्भावित हमले के विरूद्ध कारगर कदम न उठाकर छिङ सेना को हमला करने का एक सुनहरा मौका दे दिया।
मिङ राजवंश के जनरल ऊ सानक्वेइ ने, जो शानहाएक्वान दर्रे पर तैनात था, छिङ सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और फिर उसके साथ सांठगांठ कर उसे देश के भीतरी इलाके में ले आया। दोनों ने संयुक्त रूप से विद्रोही किसान सेना का दमन किया। पेइचिंङ की सुरक्षा की अच्छी तरह तैयारी न करने के कारण ली चिछङ को वहां से हटना पड़ा । बाद में उसे शानशी और शेनशी में लड़ना पड़ा । मई 1644 में छिङ सेना ने पेइचिङ पर कब्जा कर लिया। उसी साल के सितंबर में छिङ शिचू अथवा छिङ राजवंश के प्रथम सम्राट शुनचि ने छिङ राजधानी को शनयाङ से पेइचिङ में स्थानान्तरित कर दिया। इसके बाद उस ने सारे चीन का एकीकरण करने का प्रयास शुरू किया।
बाद में , छिङ सेना ने दो रास्तों से आगे बढकर विद्रोही किसान सेना पर हमला किया। ली चिछङ शेनशी से हूपेइ गया, जहां वह थुङशान काउन्टी के च्योकुङ पर्वत पर जमीदारों की मिलिशिया के आकस्मिक हमले में बहादुरी से लड़ता हुआ मारा गया।
चाङ श्येनचुङ और उस के सैनिक छाङच्याङ नदी घाटी के मध्यवर्ती इलाके में लड़ते रहे, लेकिन जब छिङ सेना ने सछ्वान प्रान्त में प्रवेश किया तो उस के साथ लड़ाई में चाङ की भी मृत्यु हो गई।
हालांकि ली चिछङ और चाङ श्येनचुङ के नेतृत्व वाली विद्रोही किसान सेना को मानचू और हान जातियों के जमींदारों द्वारा मिलकर कुचल दिया गया, फिर भी उस की बची खुची टुकड़ियों ने ली तिङक्वो और ली लाएहङ के नेतृत्व में अपना छिङ विरोधी संघर्ष कुछ समय बाद तक भी जारी रखा।
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