एक दिन , प्यान च्वांग ची और उस के मित्र दो बाघों को एक साथ एक बैल को फाड़ फाड़ कर खाते हुए देखा , उस के दिमाग में तुरंत बाघ को मार डालने का विचार आया , अभी वह बाघ से भिड़त होने आगे बढ़ना चाहा ,तो उस के मित्र ने उसे पीछे खींच कर कहा, अभी नहीं , बैल का मांस काफी स्वादिश है , उस का बांटवारा करने के लिए दोनों बाघों में जरूर झगड़ा हो उठेगा , दोनों के बीच घोर संघर्ष होने के दौरान कमजोर बाघ शहजोर बाघ के मार -वार का शिकार बन जाएगा , साथ ही शहजोर बाघ भी मार पीट के समय घायल हो जाएगा । ऐसे समय जब तुम बाघ पर धावा बोलेंगे , निश्चय ही विजय तुम्हारे हाथ में होगी । तुम आधा शक्ति से ही दो बाघों को मारने का गौरव पा सकेंगे । प्यान च्वांग ची ने अपने मित्र का सुझाव माना और इंतजार करने लगा । थोड़ी देर में दोनों बाघ बैल के एक जांघ छीनने के लिए आपस में लड़ने लगे । परिणाम यह निकला था कि एक बाघ दूसरे बाघ से मार डाला गया , और खुद उस बाघ का पैर भी जख्म हुआ और वह लंगड़ा बन गया । इसी मौका पा कर प्यान च्वांग ची ने आगे बढ़ कर घायल बाघ पर वार किया , उस का तेज तलवार बाघ के शरीर में घोंस किया गया , दो तीन वार में ही बाघ वहीं पर खेत हो गया । अपनी बुद्धि से ही प्यान च्वांग ची ने एक समय दो बाघों को मार कर महान विजय प्राप्त की ।
दोस्तो , यह नीति कथा हमें बताती है कि कोई भी काम करने के लिए अनुकूल मौका और अच्छा तरीका अपनाने की कोशिश करना चाहिए । कभी कभी अनुकूल मौके पर कम शक्ति से भारी सफलता पा सकती है । बुद्धि कभी कभी शारीरिक ताकत से ताकतवर सिद्ध होती है । बुद्धि के प्रयोग से कठिन काम को आसानी से पूरा किया जा सकता है ।
अवश्यक चैतावनी से बेखबर
किसी घर में एक चिमनी बनायी गई , लोकिन वह चिमनी इतनी सीधी बनायी गई थी कि जब कभी भट्टी में आग जल रहा था , तो उस की चिन्गनियां चिमनी से बाहर निकलती थी । और तो उस चिमनी के पास घास लकड़ी का एक बड़ा ढेर भी था । घर में आए एक मेहमान ने घर के मालिक को चैतावनी देते हुए कहा कि यह बहुत खतरानाक है , इस प्रकार की चिमनी से आग लग सकेगी । आप को चिमनी का रूपांतर करना चाहिए , उस में एक मोड़ बनाना चाहिए , साथ ही चिमनी के पास के घास -लकड़ी के ढेर को भी वहां से हटाया जाना चाहिए। घास लकड़ी को दूर रखे जाने पर आगजनी से बच सकेगा । लेकिन मालिक ने महज हां हुं करके बात को टाला , मेहमान का एक शब्द भी उस के कान में नहीं प्रवेश कर गया ।
कुछ दिन के बाद इस घर में आग लगी , कारण यह था कि सीधी चिमनी से आग की चिनगारी निकली और वह पास लगे घास पर गिरी और आग जल्दी ही फैल गई । राहत की बात यह थी कि उस के पड़ोसी समय पर आ पहुंचे और सभी लोगों ने मिल कर आग को बुझाने का घोर प्रयत्न किया , आग बुझ गई और घर को भी ज्यादा गंभीर नुकसान नहीं पहुंचा ।
दूसरे दिन , घर के मालिक ने आग बुझाने में मदद देने आए पड़ोसी लोगों को शुक्रिया अदा करने के लिए एक शानदार दावत दी । उस ने पड़ोसी के उन लोगों को सम्मान देने के ख्याल से उन्हें आदर्श मेहमान की सीटों पर बिठाया , जिस किसी ने आग बुझाने में ज्यादा काम किया था , उसे सब से सम्मानिक जगह पर बिठाया , अन्य लोगों को भी उन के य़ोगदान के मुताबिक क्रमशः बिठाए गए । लेकिन जिस मेहमान ने सब से पहले उसे चिमनी की समस्या की चैतावनी दी थी , घर के मालिक ने उसे दावत में आमंत्रित करने की सोच भी नहीं की ।
इस नीति कथा सुनने से आप को क्या विचार आया , हां , वह जरूर यह है कि असल में जिस मेहमान ने घर के मालिक को आग लगने से बचने की चैतावनी दी थी , उस का योगदान सब से बड़ा था , अगर घर के मालिक ने उस का सुझाव माना , तो आग लगने का सवाल ही नहीं उठता । लेकिन खेद की बात है कि घर का मालिक इस सच्चाई को नहीं समझता था । हां , जिन लोगों ने आग बुझाने में मदद दी थी , उन्हें भी धन्यावाद देने की आवश्यकता थी । सब से दुख की बात यह थी कि घर का मालिक आगजनी से पहले मेहमान की चैतावनी नहीं मानी , तो न मानी , किन्तु घटना के बाद भी उसे यह समझ नहीं आयी कि मेहमान की चैतावनी का कितना मूल्य होता है ।