2008-10-24 10:55:23

ओपेक के विशेष सम्मेलन में उत्पादन घटाने के कदम पर विचार

दोस्तो , तेल निर्यातक देश संगठन यानी ओपेक ने 24 अक्तूबर को वियना में विशेष सम्मेलन बुलाने का फैसला किया है , सम्मेलन का मुख्य मुद्दा है तेल उत्पादन घटाने के लिये कदम उठाने या न उठाने पर विचार करना , ताकि इधर दिनों में अंतर्राष्ट्रीय तेल दाम में निरंतर आने वाली भारी गिरावट की रोकथाम की जा सके । विश्लेषकों का मानना है कि विभिन्न पक्षों के रूखों से देखा जाये , ओपेक सम्भवतः तेल उत्पादन को कम करने का फैसला कर लेगा , पर आखिर कितनी मात्रा में घटाया जायेगा , वह विवादास्पद केंद्र बनेगा ।

यह सम्मेलन योजनानुसार आगामी 18 नवम्बर को होगा , पर विश्व वित्तीय संकट दिन ब दिन भीषण रूप ले रहा है और अंतर्राष्ट्रीय तेल दाम में भारी गिरावट आयी है , ऐसी पृष्ठभूमि में उक्त सम्मेलन समय से पहले बुलाने का निर्णय लिया गया है । गत 11 जुलाई को तेल का प्रति पीपा दाम 140. 73 अमरीकी डालर का ऐतिहासिक रिकार्ड स्थापित होने के बाद निरंतर घटता गया , इस महीने की 22 तारीख तक प्रति पीपे का दाम घटकर 60. 82 अमरीकी डालर तक रहा । अंतर्राष्ट्रीय तेल दाम में भारी गिरावट आने का मूल कारण यह है कि भूमंडलीय आर्थिक विकास में धीमी वृद्धि से तेल की मांग ढीली होने लगी । वित्तीय संकट से प्रभावित विशाल तेल उपभोक्ता ग्राहक होने के नाते यूरोपीय व अमरीकी विकसित देशों के सामने मौजूद आर्थिक संकट से तेल की मांग बड़ी हद तक कम हो गयी है । ओपेक ने जारी अपनी न्यूनतम मासिक रिपोर्ट में चालू व अगले वर्ष में विश्व कच्चे तेल की प्रस्तावित औसत दैनिक मांग घटायी है । विश्व ऊर्जा अनुसंधान केंद्र के अनुमान के अनुसार इस वर्ष में कच्चे तेल की मांग 15 वर्षों में पहली बार कम होने की स्थिति पैदा होगी ।

ओपेक के अधिकृत आंकड़ों के अनुसार ओपेक के 13 सदस्य देश प्रतिदिन तीन करोड़ दस लाख पीपे कच्चे तेल का उत्पादन करते हैं । वर्तमान तेल दाम में आयी गिरावट के मद्देनजर उक्त देशों को हर रोज 20 करोड़ अमरीकी डालर की क्षेति पहुंचती है । ओपेक स्वभावतः अंतर्राष्ट्रीय तेल दाम में आने वाली गिरावट को नजरअंदाज नहीं कर सकते , ऐसी हालत में तेल उत्पादन को कम करना सब से सार्थक प्रत्यक्ष उपाय ही है । ओपेक के विभिन्न सदस्य देशों के रूखों से देखा जाये , तो उन्हें कम उत्पादन करने पर कोई एतराज़ नहीं है , पर आखिर कितना कम करने पर सहमति प्राप्त नहीं हो पायी है । कुछ सदस्य देशों को आशा है कि कच्चे तेल का दैनिक उत्पादन 5 लाख से 25 लाख पीपों तक कम किया जायेगा ।

विश्लेषकों का कहना है कि अपने व भूमंडलीय आर्थिक प्रभाव को ध्यान में रखकर ओपेक के लिये कितनी मात्रा में तेल कम करना कोई आसान बात नहीं है । सर्वप्रथम , उत्पादन की लागत में मौजूद अंतर होने से ओपेक के सदस्य देशों के मनचाहे अंतर्राष्ट्रीय तेल दाम भी भिन्न भिन्न हैं । ओपेक के प्रथम बडे निर्यातक देश सऊदी अरब ने कहा कि यदि प्रति पीपे का दाम तीस अमरीकी डालर के नीचे नहीं गिरेगा , तो वह यह दाम सहने पर राजी होगा , जबकि संयुक्त अरब अमीराट व क्वातर की आशा है कि प्रति पीपे का दाम 40 व 55 अमरीकी डालर बरकरार होगा और ईरान व वेनेजुएला चाहते हैं कि यह दाम करीब सौ अमरीकी डालर बनाये ऱखा जाये । ईरान के तेल मंत्री घोलाम हुस्सैन नोजारी ने 23 अक्तूबर को दैनिक उत्पादन में 20 लाख पीपे घटाने की अपील की । दूसरी तरफ तेल उत्पादन को कम मात्रा में करना तेल दाम बढाने में असमर्थ होगा , पर तेल उत्पादन में बड़ी हद तक कटौती निस्संदेह मंदी पड़े विश्व अर्थतंत्र को प्रभावित होगा , जिस से कच्चे तेल की मांग और अधिक कम होगी ।

ओपेक के मौजूदा अध्यक्ष देश अल्जीरिया के ऊर्जा व खान मंत्री चाकिब खलिल ने हाल ही में कहा कि हालांकि ओपेक के सदस्य देश तेल उत्पादन कम करने पर सहमत हैं , पर आखिरकार कितनी मात्रा में कम करने पर मतैक्य फिर भी प्राप्त नहीं हुआ है । उन के विचार में ओपेक को दैनिक कच्चे तेल उत्पादन को दस लाख पीपा कम करना चाहिये , उन का यह कहना भी है कि प्रति पीपे का दाम 60 से 90 अमरीकी डालर के बीच बनाये रखने से भूमंडलीय आर्थिक वृद्धि पर कुप्रभाव नहीं पड़ेगा ।

विश्लेषकों का अनुमान है कि ओपेक 24 अक्तूबर को आयोजित विशेष सम्मेलन में सम्भवतः दैनिक कच्चे तेल उत्पादन को दस लाख पीपा घटाने का फैसला कर लेगा , पर यह तेल दाम में आने वाली गिरावट पर रोक लगाने में असमर्थ रहेगा ।