2008-10-23 16:49:50

शराब के दिवाना वनमानुष

जंगल में वनमानुषों का एक दल रहता था । वे सब के सब शराब के दिवाना थे । वे मनुष्य की भांति फूस के जुते पहन कर चलने के भी शौकीन थे । एक दिन , शिकारी ने जंगल की एक खाली जगह पर शराब के कई ब़ड़े बड़े मग रखें और पास कुछ छोटा बड़ा प्याले भी रखें । उस ने फूस से कुछ जुते भी बुन कर बनाए और घास से बनी रस्सी से एक दूसरे को गुंथ कर दिया । वन मानुष शिकारी की यह हरकत देख कर तुरंत समझ गए कि यह उन्हें फंसाने के लिए शिकारी द्वारा रची एक चाल है । वन मानुषों ने पेड़ के ऊपर बैठे ऊंची आवाज में शिकारी को गाली देते हुए कहा , तुम बड़ा तुष्ट मानव हो , शराब और जुता दिखा कर हमें फंसाना चाहते हो , क्या समझते हो , हूं , बस शराब और फूस के जुते है , कोई खास चीजें हैं , क्या समझते हो , हमें शराबी समझते हो , हूं हूं , तुम्हारी आंखें हो या बटन । गाली देते देते वन मानुषों को लगा कि मुंह सूखा पड़ गया और बहुत प्यास आई , नाक में शराब का सुगंध रह रह कर घुस आया । एक वन मानुष सहनने से बाहर हो गया , उस ने कहा , हेलो , भाइयो , इन बेवगुफ शिकारियों ने हमारे लिए इतना ज्यादा शराब तैयार कर रखे है , हम एक प्याले का ले लें , तो क्या हरज हो सकता है । नहीं पीएंगे , वह बुद्धू हो , जो निःशुल्क शराब से कतराता है । हम थोड़ा सा ले लें , तो चूर नहीं हो सकेंगे और उन के धोखे में भी नहीं आ सकेंगे ।सभी वन मानुषों को इस वनु मानुष का सुझाव पसंद आया । वे तुरंत पेड़ से नीचे उतरे , शुरू शुरू में वे छोटे प्याले से शराब पीते थे , शराब का आनंद लेने के साथ साथ शिकारियों को लगातार गाली भी देते रहे कि खराब शिकारी हमें धोखा देते है , क्या हम तुम्हारी चाल में फंसने वाले हों । लेकिन पीते पीते उन्हें लगा कि छोटे प्याले में शराब पीने से मजा कम आता है , तो वे बड़े प्याले से पीने लगे । शराब बहुत मीठा और सुगंधित था , मुंह में महक लहर रहा था , अन्त में वे सभी बड़े बड़े मग से मुंह में शराब उडेलना मजेदार समझे । बड़ी देर भी नहीं लगी कि वे सब के सब शराब में चूर हो गए , आंखें मटकी हुई , मुख में सुर्खी आई , कदम लखलखाते रहे । सभी नियंत्रण से बाहर हो गए , वे आपस में झगड़ने खेलने लगे , मार पीट पर आ गए , उन्हों ने फूस के जुतों को अपने पांव में पहने , मानव की नकल करते हुए राह चलने लगे । तभी जंगल में घात लगे शिकारी बाहर लपट कर वन मानुषों पर टूट पड़े , भयभीत हो कर वन मानुषों को शराब के आमाद से होश आया , वे घनी जंगल में भागना चाहा , लेकिन पांव में फूस के जुते लपेट थे , उस के अड़चन के कारण वे एक के बाद एक जमीन पर गिर पड़े और शिकारियों का शिकार बन गए ।

जीवन में लाख लोभ है , लाख आकर्षण है । इन लोभ माया से दूर रहना हितकर सिद्ध होता है । वनमानुष शराब के लोभी है , तो उन का शिकारी की चाल में फंसना कोई आश्चर्य की बात नहीं है । मानुष को अपने इंद्रिक चाह पर नियंत्रण रखना चाहिए ।