2008-10-21 15:18:54

इज़राइली विदेश मंत्री ने मंत्रिमंडल का गठन स्थगित करने की अनुमति प्राप्त की

इज़राइली राष्ट्रपति श्री शिमोन पेरेस ने 20 तारीख को खादिमा की अध्यक्षा, विदेश मंत्री सुश्री त्ज़ीपी लिवनी को मंत्रिमंडल का गठन स्थगित करने की अनुमति दे दी। सुश्री लिवनी मंत्रीमंडल के गठन में सफलता प्राप्त करने की कोशिश करती रहेंगी।

सुश्री लिवनी ठीक उसी दिन दोपहर को यरूशलम स्थित श्री पेरेस के निवास पर गयीं। दोनों ने एक घंटे तक वार्ता की। सुश्री लिवनी ने श्री पेरेस को सरकार के गठन वार्ता की स्थिति बतायी। उन्होंने कहा कि अब खादिमा एक स्थिर सरकार का गठन करने और राजनीतिक अस्थिरता के बारे में लोगों की चिंता दूर करने की कोशिश कर रही है, ताकि इज़राइल और अच्छी तरह से वर्तमान राजनीतिक व आर्थिक चुनौतियों का सामना कर सके। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि सरकार का गठन लंबे समय तक स्थगित करना जनता के हितों के अनुकूल नहीं है। इसलिये आशा है विभिन्न पार्टियां इस के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझ सकेंगी।

श्री पेरेस ने सुश्री लिवनी का आवेदन स्वीकार कर लिया । उन्होंने कहा कि सरकार के गठन की वार्ता एक जटिल काम है। उसे विभिन्न पक्षों की पूरी कोशिश चाहिए। श्री पेरेस को आशा है कि सुश्री लिवनी इस मौके से लाभ उठाकर ठीक समय पर सभी अनिश्चित तत्त्वों को हटाकर राजनीतिक स्थिरता हासिल कर सकेंगी।

सुश्री लिवनी को सितंबर की 18 तारीख को आयोजित सत्तारूढ़ पार्टी खादिमा के अध्यक्ष चुनाव में विजय मिली। और उन्होंने सितंबर की 22 तारीख को राष्ट्रपति श्री पेरेस से अनुमति प्राप्त करके मंत्रिमंडल का गठन करना शुरू किया। 28 दिन के भीतर सरकार का गठन होना जरुरी है। इस दौरान उन्होंने इस महीने की 13 तारीख को लेबर पार्टी के साथ आरंभिक तौर पर समझौता कर लिया। क्योंकि लेबर पार्टी व खादिमा अब इज़राइली संसद में सब से बड़ी दो पार्टियां हैं, और संसद की 120 सीटों में लगभग 50 सीटें उन दोनों पार्टियों की हैं। उन दोनों पार्टियों के इस मुद्दे पर सहमत होने से सुश्री लिवनी का सरकार के गठन का काम कुछ आसान हो गया है।

लेकिन सितंबर के अंत से अक्तूबर की 20 तारीख तक इज़राइल में छुट्टियों का माहौल था,जिस का सुश्री लिवनी के द्वारा सरकार के गठन के लिए की जाने वाली वार्ता व संबंधित कार्यों पर कुछ प्रभाव पड़ा है। खास तौर पर दक्षिणपंथी शास पार्टी के साथ गठन वार्ता मुश्किल है। शास पार्टी वर्तमान के सत्तारुढ़ गठबंधन में खादिमा का दूसरा बड़ा साथी है। इस से पहले इस पार्टी के नेता, उद्योग व व्यापार मंत्री श्री एली यिशाई ने सुश्री लिवनी का साथ देने की ये शर्तें पेश कीं एक, इज़राइल का सारे यरूशलम पर नियंत्रण बरकरार रखना, और दूसरा, औपचारिक धार्मिक परिवारों के प्रजनित भत्ते को उन्नत करना। पहली शर्त गठन के बाद सुश्री लिवनी की राजनयिक नीति से जुड़ी है, खास तौर पर इज़राइल व फिलिस्तीन की शांति वार्ता। सुश्री लिवनी शांति वार्ता में इज़राइली पक्ष की जिम्मेदार है। और खादिमा के अध्यक्ष चुनाव में जीत कर राष्ट्रपति से सरकार के गठन की अनुमति प्राप्त करने के बाद सुश्री लिवनी ने मध्यपूर्व की शांति प्रक्रिया जारी रखने का वचन भी दिया है। इसलिये उन्हें सावधानी से इस मामले पर विचार-विमर्श करना पड़ेगा। दूसरी शर्त आगामी सरकार के बजट-बंटवारे से जुड़ी है। और लेबर पार्टी आदि इस का समर्थन नहीं करती है। साथ ही अमरीकी वित्तीय संकट का फैलाव तथा वर्ष 2009 में बजट निश्चित किए जाने की स्थिति में सुश्री लिवनी को राजनीतिक व आर्थिक स्थिरता से संबंधित बहुत से तत्त्वों पर बार-बार विचार-विमर्श करना पड़ेगा। उक्त कारणों से सुश्री लिवनी ने 28 दिनों में इस मांग को पूरा नहीं किया कि कानून के अनुसार गठन के लिये सत्तारुढ़ गठबंधन की सीटें संसद की आधे से ज्यादा होनी चाहिंए।

सुश्री लिवनी के सहायक के अनुसार हाल ही में सुश्री लिवनी 12 सीटों वाली शास पार्टी व अन्य कई पार्टियों के साथ मिल कर व्यापक सत्तारुढ़ गठबंधन की स्थापना करने की कोशिश कर रही हैं, ताकि उन की शासन की स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सके। लेकिन विभिन्न पार्टियों की भिन्न-भिन्न मांगे होने के कारण उन के बीच एक सत्तारुढ़ गठबंधन की स्थापना करना एक आसान काम नहीं है। यदि मंत्रिमंडल का गठन सफल होता है, तो सुश्री लिवनी को विभिन्न पक्षों के लाभ के साथ ताल-मेल करते हुए अपनी राजनीतिक नीति लागू करनी पड़ेगी।

इज़राइली कानून के अनुसार क्योंकि सुश्री लिवनी ने गठन को स्थगित करने की अनुमति प्राप्त की है, इसलिये उन्हें और 14 दिन मिलेंगे। अगर वे इस अंतिम अवधि में मंत्रिमंडल का गठन समाप्त नहीं कर सकेंगी, या उन के द्वारा पेश की गयी गठन-योजना संसद के विश्वास मतदान में पारित नहीं की जाएगी, तो श्री पेरेस को और एक सांसद को सरकार का गठन करने की अनुमति देने का अधिकार होगा। अगर इस सांसद को भी सफलता नहीं मिली तो इज़राइली संसद को भंग करने की घोषणा की जाएगी। बाद में संसद चुनाव 90 दिनों में आयोजित होगा।(चंद्रिमा)