चीन एक बहुल जातीय देश है । 13 वीं शताब्दी के मध्य से ही तिब्बत औपचारिक तौर पर तत्कालीन य्वान राजवंश की प्रादेशिक भूमि में शामिल किया गया । तभी से तिब्बत हर पीढ़ी वाली केंद्र सरकार के काबू में है।
वास्तव में ईसा पूर्व तिब्बती क्षेत्र में रहने वाली तिब्बती जाति के पूवर्ज और भीतरी इलाके में रहने वाली हान जाति के साथ संपर्क शुरू हुआ था । सातवीं शताब्दी के शुरू में चीन के भीतरी इलाके में एकीकृत थांग राजवंश की स्थापना हुई । तिब्बती जाति के वीर सोगजान कानबू ने तिब्बत पठार को एकीकृत कर थूपो राजवंश की स्थापना की । राजा सोंगजान कानबू ने भीतरी इलाके के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध को मज़बूत करने के लिए थांग राजवंश की राजकुमारी वनछङ के साथ शादी की और थांग राजवंश से सुमुन्नत उत्पादन तकनीक और राजनीतिक व सांस्कृतिक प्रगति सीखी । इस के साथ ही राजा सोंगजान कानबू ने थांग राजवंश की राजधानी छांगआन में सीखने के लिए तिब्बतियों को भेजा । लम्बे समय तक थूपो और थांग राजवंश के बीच राजनीतिक, आर्थिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में मैत्रीपूर्ण संबंध कायम रहा ।
वर्ष 804 में थूपो राजवंश भंग हो गया और तिब्बत क्षेत्र में एक बार फिर अलगाव वाली स्थिति पैदा हुई । लगातर चार सौ वर्षों से अधिक समय तक तिब्बत में युद्ध की स्थिति रही । 13वीं शताब्दी के शुरू में मंगोल जाति के वीर जेंगिस खान ने उत्तरी चीन में मंगोल देश की स्थापना की । 13वीं शताब्दी के चालीस वाले दशक के अंत में तिब्बती बौद्ध धर्म के सागा संप्रदाय के आचार्य पांडित कुंगा ग्याल्त्सेन की सलाह से तिब्बती क्षेत्र की विभिन्न स्थानीय सरकारों ने मंगोल देश में हिस्सा लिया और तिब्बत में सागा स्थानीय सत्ता की स्थापना हुई ।
वर्ष 1271 में मंगोल देश ने देश का नाम बदल कर य्वान किया, आठ वर्ष के बाद चीन का एकीकरण किया और केंद्र शासित सरकार की स्थापना की । तभी तिब्बत चीनी य्वान राजवंश का एक प्रत्यक्ष प्रशासन वाला क्षेत्र बन गया । य्वान राजवंश ने तिब्बत मामलों के प्रबंधन वाले अधिकारियों को नियुक्त किया और तीन बार तिब्बत में जन संख्या संग्रहण के लिए अधिकारियों को भेजा । इस के साथ ही य्वान राजवंश ने तिब्बत से राजधानी तादु यानी आज के पेइचिंग तक संपर्क करने वाले अनेक केंद्रों का निर्माण किया ।
14वीं शताब्दी के अंत में चीन के भीतरी इलाके में मिंग राजवंश की स्थापना हुई । मिंग राजवंश के शाह ने य्वान राजवंश का उपाय अपनाकर तिब्बत का प्रशासन जारी रखा ।
17वीं शताब्दी के मध्य में छिंग राजवंश ने मिंग राजवंश का स्थान लेकर देश का प्रशासन किया । केंद्र सरकार ने तिब्बत की प्रभुसत्ता पर ज्यादा महत्व दिया । उसी समय तिब्बती बौद्ध धर्म के गेलुग संप्रदाय ने तिब्बत क्षेत्र का शासन किया, जिस से दलाई लामा और पंचन लामा के जीवित बुद्ध अवतार वाली व्यवस्था लागू हुई । वर्ष 1652 में पांचवें दलाई लामा ने निमंत्रण पर पेइचिंग आकर तत्कालीन छिंग राजवंश के राजा शुनची से मुलाकात की । इस के बाद वर्ष 1653 में केंद्र सरकार ने उन्हें औपचारिक तौर पर पांचवां दलाई लामा नियुक्त किया । वर्ष 1713 में छिंग राजवंश के शाह खांगशी ने पांचवें पंचन लामा को नियुक्त किया। तब से तिब्बत में गेलुग संप्रदाय की दो जीवित बुद्ध अवतार वाली व्यवस्थाओँ का प्रशासन शुरू हुआ ।
वर्ष 1727 में छिंग राजवंश ने तिब्बत स्थित मंत्री नियुक्त किया, जो केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व कर तिब्बत के स्थानीय प्रशासन की निगरानी करता थे । इस वक्त छिंग राजवंश ने औपचारिक तौर पर तिब्बत और आस पड़ोस के स्छ्वान, युन्नान और छिंगहाई आदि प्रांतों के बीच सीमा निश्चित की । वर्ष 1793 में छिंग राजवंश की सरकार ने तिब्बत स्थिति मंत्री के अधिकार, दलाई और पंचन तथा तिब्बती बौद्ध धर्म के अन्य संप्रदायों के जीवित बुद्ध के अवतार, सीमांत फौजी प्रतिरक्षा, विदेशी संपर्क, वित्तीय कर वसूली, मुद्रा तथा प्रबंधन आदि मुद्दों पर आधारित 29 सूत्रीय चार्टर बनाया । इस के बाद के एक सौ वर्षों से ज्यादा समय में यह 29 सूत्रीय चार्टर तिब्बत की स्थानीय राजनीतिक व्यवस्था व कानून का मार्गदर्शन करने वाला बुनियादी सिद्धांत बन गया ।