प्रोफ़ेसर छन कूंङ रांग ने कहा कि मानव ने बाहरी वातावरण का सामना करने के लिये संस्कृति रची है। इसलिये संस्कृति की बुनियादी विशेषता तो मानवता है। चीन व भारत दोनों देशों की परंपरागत संस्कृति इस पर जोर देती है कि मानव व प्रकृति में सामंजस्य है। मानव को वातावरण की अनुमति के दायरे में अपना विकास करना चाहिए, और वातावरण को बर्बाद करके अपना विकास नहीं करना चाहिए। ऐसी मूल्यवान विचार-धारा समाज की प्रगति में बाधा समझी गयी थी। जब मानव पश्चिमी सभ्यता के नेतृत्व में संसाधन के अभाव और पर्यावरण के बिगाड़ की बुरी हालत में फंस गये, तो उन्होंने फिर एक बार पुरातन पूर्वी सभ्यता की चमक देखी।
प्रोफ़ेसर छन कूङ रांग ने कहा कि वर्तमान में चीन व भारत दोनों देश अर्थतंत्र के तेज़ विकास के दौर में हैं ,ऐसे में समस्याएं आसानी से मौजूद होंगी। इसलिये लंबे इतिहास व परंपरागत संस्कृति वाले चीन व भारत जैसे बड़े विकासशील देशों को आर्थिक विकास व सांस्कृतिक विकास दोनों के संबंधों को अच्छी तरह से संभालना चाहिए। साथ ही दोनों देशों को एक दूसरे से सीखना चाहिए। उन्होंने कहा कि, हम दोनों बड़े देश हैं। इतनी बड़ी जनसंख्या की बुनियादी मांगों को पूरा करने में हमारे सामने संसाधन के अभाव जैसी बहुत समान समस्याएं हैं। इसलिये हम दोनों देशों को आदान-प्रदान व एक दूसरे से सीखने के तरीकों को और
मजबूत करना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा सहमतियां प्राप्त करनी चाहिंए। अगर हम दोनों देश अपने मामलों का समाधान अच्छी तरह से कर सकेंगे, तो हम समूची मानवीयता के लिये योगदान कर रहें होंगे।
प्रोफ़ेसर छन कूङ रांग ने कहा कि विकासशील देशों के लोग शायद पश्चिमी देशों की स्थिति खूब जानते हैं, लेकिन बहुत नज़दीकी पड़ोसी देशों के बारे में कम जानते हैं, यहां तक कि कुछ भी नहीं जानते। उदाहरण के लिये मैं ने भारत में बहुत मित्र बनाए। वे चीन के बारे में कम जानते हैं। और यह कम जानकारी पश्चिमी मीडिया से प्राप्त हुई है। ऐसी स्थिति चीन में भी है। चीन व भारत पड़ोसी देश हैं। अगर आपसी समझ के अभाव से सहयोग के रास्ते में बाधाएं मौजूद हैं, तो यह दोनों देशों का दुर्भाग्य है। विकासशील देशों के बीच आदान-प्रदान को मजबूत करने का मतलब पश्चिमी देश या किसी अन्य देश का अपवर्जन करना नहीं है। हमें दूरदृष्टि से विशाल दुनिया को देखना चाहिए।
इस पर प्रोफ़ेसर छन कूङ रांग ने कहा कि, हम लगातार अपनी दृष्टि को पश्चिम की ओर डालते रहेंगे, क्योंकि पश्चिम आखिरकार बहुत पक्षों में हम से ज्यादा अच्छा है। साथ ही हमें एक दूसरे को देखना चाहिए, यानि भारत को चीन देखना चाहिए, और चीन को भारत की ओर देखना चाहिए। इस के अलावा हमें पड़ोसी विकासशील देशों व विश्व के अन्य विकासशील देशों को भी देखना चाहिए। क्योंकि विकासशील देशों का भाग्य समान है। (चंद्रिमा)