2008-10-16 16:00:47

विश्व के सामने अनाज सुरक्षा की नई चुनौति

इस साल 16 अक्तूबर को 28 वां विश्व अनाज दिवस है। विश्व खाद्यान्न व कृषि संगठन ने इस साल के अनाज दिवस के लिए विश्व की अनाज सुरक्षा और मौसम परिवर्तन व जैविक ऊर्जा संसाधन की चुनौति का मुख्य विषय निर्धारित किया और यह आशा जतायी कि लोग मौसम परिवर्तन और जैविक ऊर्जा से विश्व अनाज सुरक्षा के प्रति उत्पन्न हुई चुनौति पर और ध्यान देंगे ।

मौसम परिवर्तन का हरेक के रहन सहन पर प्रभाव पड़ता है, खास कर इस का किसान, मछुआ और वन्य संसाधन पर आश्रित लोगों पर बड़ा असर पड़ जाता है। मौसम परिवर्तन से उत्पन्न बाढ़ व सूखा जैसे खराब मौसम से अनाज का उत्पादन प्रभावित होता है और वह विश्व अनाज सुरक्षा के लिए चुनौति बन गया है । विश्व खाद्यान्न व कृषि संगठन का मानना है कि कृषि उत्पादन मौसम परिवर्तन की प्रक्रिया में दुहरी भूमिका निभाता है, एक तरफ कृषि उत्पादन से निकलने वाली ग्रीन हाउस गैस मौसम को परिवर्तित करती है, दूसरी तरफ वह ग्रीन हाउस गैस की निकासी में कटौती करने में सहायक भी होगा । खाद्यान्न व कृषि संगठन के आंकड़ों के मुताबिक खेतीबाड़ी व वृक्षकटाई से विश्व भर में ग्रीन हाउस गैस की निकासी मात्रा 30 प्रतिशत से अधिक होती है, यदि मानव पर्यावरण संरक्षण के लिए हितकारी उत्पादन तरीके अपनाए, मसलन् पेड़ों की कटाई कम की जाए, वन संरक्षण को बढ़ाये तथा मवेशी चरने पर सीमन लगाए, तो अधिक मानवों को खिलाया जा सकता है ।

दूसरी बात है कि इधर के सालों में विश्व में जैविक ऊर्जा उद्योग का तेज विकास हो रहा है। इस से विश्व की अनाज सुरक्षा के लिए एक दूसरी चुनौति पैदा हुई है। इस साल जून माह में विश्व के 181 देशों और दसियों अन्तरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों तथा 43 राष्ट्राध्यक्षों ने विश्व अनाज सुरक्षा पर उच्च स्तरीय विशेष सम्मेलन बुलाया, जिस का मुख्य विषय मौजूदा विश्व अनाज दिवस के मुख्य विषय के समान है । सम्मेलन में जैविक ऊर्जा संसाधन और अनाज सुरक्षा के संबंध का सवाल सर्वाधिक विवादास्पद मुद्दा बन गया ।

विश्व खाद्यान्न व कृषि संगठन ने हाल में 2008 की कृषि स्थिति पर रिपोर्ट जारी कर कहा कि विश्व अनाज सुरक्षा को साकार करने, गरीब किसानों की हिफाजत करने तथा ग्रामीण पूर्ण विकास बढाने तथा पर्यावरण का संरक्षण करने के लिए नए सिरे से जैविक ऊर्जा नीति पर विचार किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2000 से 2007 तक कृषि उत्पादों पर आधारित जैविक ईंधन की उत्पादन मात्रा में तीन गुनी वृद्धि हुई और वर्तमान में वह विश्व परिवहन ईंधन का 2 प्रतिशत बन गया है और इस की बढ़ोत्तरी भी हो रही है । फिर भी, विश्व ऊर्जा के लिए उस का योगदान सीमित है । और तो और आने वाले दस सालों में जैविक ऊर्जा के विकास के लिए कृषि कच्चे माल की मांग लगातार बढ़ती जाएगी , जिस से अनाज के दाम में वृद्धि होगी । रिपोर्ट में कहा गया है कि जैविक ऊर्जा की मांग बढ़ने से कृषि उत्पादों के दामों में इजाफा होगा , इस से विकासशील देशों को लाभ मिलेगा । किन्तु रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जैविक ऊर्जा के विकास से खतरा भी पैदा होगा, सर्वप्रथम अनाज सुरक्षा को चुनौति देगा। अनाज दामों में वृद्धि से अनाज निर्यात पर आश्रित विकासमान देशों को धक्का पहुंचेगा । इसलिए जैविक ऊर्जा के विकास के बारे में जो भी निर्णय लिया जाएगा, उसमें अनाज सुरक्षा, भूमि व जल संसाधन की प्रयोग दर पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

इस साल विश्व भर में वित्तीय संकट गंभीर रूप लेने जा रहा है , वित्तीय स्थिति के अस्थिर होने के कारण लोगों को आसमान छूने जा रहे अनाज व ईंधन के दामों पर चिंता पैदा हुई । कहा जा सकता है कि मौसम परिवर्तन व जैविक ऊर्जा के सवाल के अलावा विश्व वित्तीय संकट भी अनाज सुरक्षा के सामने आयी एक चुनौति है । विश्व खाद्यान्न व कृषि संगठन के महा निदेशक डिओफ ने विश्व अनाज दिवल के मौके पर कहा कि वित्तीय संकट से विकासमान देशों के सकल अर्थतंत्र को धक्का पहुंचेगा ,खास कर कृषि व अनाज सुरक्षा के लिए नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा । पहले, बैंकों द्वारा कृषि विभागों को कर्ज देने, विकासमान देशों को सरकारी सहायता देने तथा कृषि में किसानों के प्रत्यक्ष पूंजी निवेश पर वित्तीय संकट का असर पड़ेगा । इस के अलावा इस साल विश्व में अनाज उत्पादन अच्छा होने तथा विश्व आर्थिक विकास में कटौती आने से प्रभावित हो कर कृषि के प्रारंभिक स्तर के उत्पादों के दाम घट जाएंगे, किन्तु इस से विश्व के मुख्य अनाज निर्यातक देशों में अनाज की खेती कम होगी और अनाज पैदावार निची आएगी, इस तरह अगले साल अनाज के दाम फिर बढ़ जाएंगे । श्री डिओफ ने बलपूर्वक कहा कि वित्तीय संकट के समय अनाज का संकट नहीं भूला जाना चाहिए और भूख और गरीबी को अतीत की याद बनाने के लिए कृषि पर ज्यादा ध्यान देना लाजिमी है।