2008-10-16 15:12:04

संस्कृति की दृष्टि से चीन और भारत को देखो

चीन का मैत्रीपूर्ण पड़ोसी देश भारत पुराने समय से ही विभिन्न विचारों व दर्शनों के इकट्ठे होने का स्थान है। इसलिये वह हजारों वर्षों से लगातार विश्व की विभिन्न जगहों के विद्वानों को यहां आ कर विचार-विमर्श करने के लिए आकर्षित करता रहा है। श्वेनचांग के बाद भारत जाकर सत्य ढूंढ़ना हमेशा चीनी दर्शनकारों का लक्ष्य रहा है। आज के कार्यक्रम में आप सुनिए भारत में स्थित हमारे संवाददाता हुमन की एक रिपोर्ट, जिस का विषय है चीनी विद्वान छन कूंङ रांग ने चीन भारत दोनों सभ्यता वाले देशों के सांस्कृतिक विकास की चर्चा की।

चीन-भारत दोनों देशों 1की सरकारों के सांस्कृतिक आदान-प्रदान समझौते और फ़ोटो कोष की शाखा एशियाई विद्वान कोष के अध्ययन मुद्दे के अनुसार चीनी राजधानी नार्मल विश्वविद्यालय के धार्मिक संस्कृति अनुसंधान-शाला के प्रधान प्रोफ़ेसर छन कूंङ रांग बौद्ध धर्म व परंपरागत संस्कृति के विकास का निरीक्षण करने के लिये इस वर्ष की फ़रवरी के आरंभ में भारत गए।और छह माह तक क्रमशः दक्षिण भारत स्थित मद्रास विश्वविद्यालय के दर्शनशास्त्र विभाग और भारत की राजधानी नयी दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के संस्कृति केंद्र में भारतीय परंपरागत संस्कृति का गहरा अध्ययन किया। भारतीय संस्कृति में उन्हें क्यों इतनी दिलचस्पी है,इस के जवाब में प्रोफ़ेसर छन कूंङ रांग ने कहा, चीन व भारत दोनों देशों के बीच आश्चर्यजनक समानताएं हैं। दोनों देशों की सभ्यताएं विश्व में सब से पुरातन सभ्यताएं हैं। और दोनों सभ्यताओं ने सब से श्रेष्ठ व शानदार पुरातन संस्कृति की रचना भी की है। लेकिन 19वीं शताब्दी से दोनों सभ्यताओं को चुनौती का सामना करना पड़ा है।

प्रोफ़ेसर छन कूंङ रांग ने सब से पहले इस बात की चर्चा की कि चीन व भारत दोनों देशों की महान सभ्यताओं को समकालीन इतिहास में दुर्भाग्य का सामना करना पड़ा है। वे दोनों विश्व सभ्यता के चमकते हुए मुकुट थे। लेकिन वर्तमान युग में प्रवेश इन दोनों सभ्यताओं को एक साथ पश्चिमी उपनिवेशवादा का सामना करना पड़ा । भारत सीधे ब्रिटेन के चंगुल में फंस गया। और वर्ष 1840 के अफ़ीम युद्ध के बाद चीन भी अपने द्वार बंद नहीं रख सका। अगर पश्चिमी देशों का आक्रमण नहीं हुआ होता, तो चीन व भारत दोनों महान सभ्यताएं अपने-अपने विकास की दिशा में धीरे-धीरे अपनी सांस्कृतिक विशेषता वाले आधुनिक रास्ते पर आगे बढ़ रही होतीं। लेकिन साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद ने इस विकल्प को बर्बाद कर दिया। चीन व भारत दोनों देशों की जनता को साम्राज्यवाद व उपनिवेशवाद के खिलाफ़ दीर्घकालीन संघर्ष करके जीत प्राप्त करने के बाद अपना आधुनिक निर्माण पुनः शुरू करना पड़ा।

प्रोफ़ेसर छन कूंङ रांग ने लंबे समय से परंपरागत संस्कृति व आधुनिक निर्माण के संबंधों पर ध्यान दिया है। उन के ख्याल से एशिया व अफ़्रीका के बहुत देशों ने आधुनिक निर्माण शुरू करने के दौरान आधुनिक निर्माण के प्रति अपनी परंपरागत संस्कृति की भूमिका को उपेक्षित किया है। और यह गलत विचार भी पैदा हुआ है कि पश्चिमी देशों की उन्नति ही उन्नति है ,वही आधुनिकीकरण है यानि पश्चिमीकरण का रास्ता ही सही है। इस गलत विचार से बहुत से विकासशील देशों ने आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में अपनी परंपरागत संस्कृति को उपेक्षित किया। और जब उन देशों की जनता पश्चिमी देशों के सामने खड़ी, तो उन्हें अपनी जातीय संस्कृति हीन लगी । यह उन के सही तरीके से विश्व को समझने व अपने को समझने के लिये लाभदायक नहीं है। इस मामले पर चीन के विकास की प्रक्रिया में भी बहुत कटु अनुभव मिले हैं। उन्होंने कहा, प्रोफ़ेसर छन कूंङ रांग ने कहा कि बहुत लंबे अर्से में शायद हमारे विचार में परंपरागत संस्कृति और आधुनिक समाज व आधुनिक अर्थतंत्र के बीच टकराव होता था। हम परंपरागत संस्कृति को आधुनिक समाज में प्रवेश करने की बाधा समझते थे। लेकिन सुधार व खुलेद्वार की नीति लागू होने के दशकों में हम लगातार विश्व से सीख रहे हैं, और चीन का विचार जगत व संस्कृति जगत ने यह गलत विचार ठीक किया है। प्रोफ़ेसर छन कूंङ रांग के ख्याल से आधुनिकीकरण के निर्माण में चीन ने बहुत सी परंपरागत सांस्कृतिक विरासत, जिसे नहीं बदला जाना चाहिए था, बदल दी। लेकिन जब हमें इस गलती का एहसास हुआ , तो बहुत देर हो चुकी थी।

इस लेख का दूसरा भाग अगली बार प्रस्तुत होगा, कृप्या इसे पढ़े।(चंद्रिमा)