2008-10-15 16:53:33

पेइचिंग अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला चीनी पुस्तक प्रकाशन उद्योग के 20 सालों के खुलेपन में आए बदलाव की झलक

1 से 4 सितम्बर तक 15वां पेइचिंग अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला चीनी समुद्रतटीय शहर थ्येनचिन में आयोजित हुआ। इस प्रकार के मेले की शुरूआत 1986 से हुई थी, अब तक वह दुनिया के चार बड़े अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेलों में से एक बन गया है। अपने 22 सालों के विकास में पेइचिंग अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला चीनी पुस्तक प्रकाशन उद्योग के 20 सालों के खुलेपन में आए भारी बदलाव का द्योतक हो गया है। दोस्तो, आज के कार्यक्रम में हम इस के बारे में कुछ बताएंगे।

क्योंकि सितम्बर के आरंभ में पेइचिंग पेइचिंग में पैरा-ऑलंपिक आयोजित हो रहा था, इसलिये 2008 का पेइचिंग अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेले का आयोजन पेइचिंग के निकटस्थ शहर थ्येनचिन में किया गया । विश्व के 51 देशों व क्षेत्रों से आए 1300 से अधिक प्रकाशन-संस्थाओं के जाने-माने व्यक्तियों व विदेशी पुस्तक विक्रेताओं ने वर्तमान मेले में भाग लिया।

चीनी प्रकाशन समूह के उपनिदेशक श्री ली फेंग यी ने भी अपने दल का नेतृत्व कर मौजूदा मेले में भाग लिया। चीनी प्रकाशन समूह चीन के सब से बड़े प्रकाशन संस्थाओं में से एक है, जिस के अधीन 29 प्रकाशन एजेंसी, 23 समुद्रपारी चैन पुस्तक दुकानें व कार्यकारी संस्थाएं हैं। हर साल उस से 10 हजार किस्मों के विभिन्न प्रकाशन सामग्रियां निकलती हैं। उस के व्यापार नेटवर्क दिनिया के 100 से अधिक देशों व क्षेत्रों में खोले गए है। उस के अधीन चीनी पुस्तक ब्यूरो ने 2006 में प्रोफेससर सुश्री युतान द्वारा लिखी गयी पुस्तक कम्फ्युशेयस के सुक्तियों के बारे में अनुभव चीन में हाथों हाथ बिक गयी , अब तक यह पुस्तक देश में 50 लाख बेची जा चुकी है । जो चीनी प्रकाशन इतिहास में एक नया रिकार्ड हो गया है। यह पुस्तक बहुत सी विदेशी भाषाओं में भी अनुवादित हो कर प्रकाशित हुई है। श्री ली फेंग यी ने इस के बारे में परिचय देते हुए कहाः

ब्रिटिश माकमिलुन प्रकाशक कंपनी ने 1 लाख पांड से इस पुस्तक के अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होने का कॉपी राइट खरीदा है। भविष्य में जर्मन, फ्रांसीसी, होलैंड, इटालियन व स्पनिश आदि 14 भाषाओं में भी यह पुस्तक प्रकाशित होगी। इस पुस्तक की लेखक सुश्री यू तान ने निमंत्रण पर चीन की परंपरागत संस्कृति के बारे में लेक्चर देने के लिये जापान, कोरिया गणराज्य व यूरोप व अमरीका आदि देशों का दौरा किया , और वहां उन का खूब स्वागत किया गया ।

ली फेंग यी के विचार में खुलेपन व सुधार के पिछले 30 सालों के भीतर चीन की प्रकाशन शक्ति निरंतर बढ़ती जा रही है। अधिक से अधिक चीनी प्रकाशन संस्थाएं विकास के लिये देश से बाहर जाना चाहतीं हैं और विदेशी प्रकाशन व्यापारी भी चीन आना चाहते हैं। पेइचिंग अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक मेला चीनी व विदेशी प्रकाशन उद्योगों के बीच आवाजाही व सहयोग के अहम मंच के रूप में अधिक से अधिक भूमिका निभा रहा है।

श्री ली फेंग यी ने इस की याद करते हुए कहा कि जब 1980 में उन्हों ने प्रकाशन उद्योग में प्रवेश कर अपना कैरियर शुरू किया ,तब चीन का कॉपी राइट के बारे में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग शुरूआत के दौर में था। 1980 के अगस्त महीने में चीन व अमरीका ने चीनी भाषा में कोन्सिस इन्साइकलोपेडिय ब्रिटिनिका के अनुवाद व प्रकाशन के बारे में सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये, जो नए चीन की स्थापना के बाद चीन का प्रथम अंतर्राष्ट्रीय कॉपी राइट सहयोग मुद्दा है। इस सहयोग के लिए चीन ने अमरीका को परामर्श फीज दिया न कि कॉपी राइट का टेक्स । इस के तीन वर्ष बाद सुश्री ली फेंग यी ने खुद चीनी प्रकाशन उद्योग व अंतर्राष्ट्रीय संस्था के बीच औपचारिक कॉपी राइट संबंधी सहयोग कार्यक्रम में भाग लिया, इस बार दोनों पक्षों ने प्रकाशन के लिए कॉपी राइट टेक्स देने का तरीका अपनाया है , जो अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्र में आम प्रचलित रहा है । सुश्री ली फेंग यी ने कहाः

1983 में हम ने ब्रिटिश ओक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की प्रकाशन एजेंसी के साथ प्राकटिकल इंगलिश युसेज के प्रकाशन अनुबंध पर हस्ताक्षर किये, जो चीन द्वारा पहली बार विदेशी प्रकाशन एजेंसी के साथ हस्ताक्षरित प्रथम अनुबंध है , जिस के अनुसार चीन ने कॉपी राइट का टेक्स दिया ।

इस के बाद के 20 सालों में चीन के अंतर्राष्ट्रीय कॉपी राइट व्यापार में बड़ा बदलाव आया। 1992 में चीन ने बेर्ने संधि व विश्व कॉपी राइट संधि में औपचारिक रूप से भाग लिया और पश्चिम के समाज व जीवन, राजनीतिक फार्मुले व आर्थिक विकास के बारे में बहुत सी पुस्तकों का आयात करना शुरू किया। पहले के पांच सालों में चीन ने 7 हजार किस्मों की कापी राइट वाली पुस्तकों का आयात किया, जब कि 2003 में चीन ने 12 हजार किस्मों की कापी राइट वाली पुस्तकों का आयात किया , जबकि उसी साल चीन द्वारा कापीराइट वाली पुस्तकों की निर्यात संख्या 9 सौ से भी कम थी, यह मात्रा चीन के बारे में विश्व की जिज्ञासा व जानकारी की अवश्यकता पूरा नहीं कर सकती थी।(रूपा)