2008-10-15 16:44:45

हो-ई की तीरंबाजी

आज से चार हजार वर्ष पहले , हो-ई नाम का एक तीरंबाज था , तीर साधने में उस का कौशल बेजोड़ था । एक दिन , राजा शा -वांग ने उसे तीर मारने का कौशल दिखाने का हुक्म दिया । निशाना जानवर के चमड़े से काट कर बनाया गया तीन हाथ जितना बड़ा चौकोण चादर था , उस के बीचोंबीच एक इंच छोटा लाल रंग का बिन्दु अंकित था । इस निशाना को देख कर हो -ई ने बड़े राहत से मुस्कराया और सोचा कि इस निशाना पर अचूक तीर मारना उस के लिए बहुत आसान है । तीरंदाजी के आरंभ से पहले राजा शा-वांग ने अचानक यह एलान किया था कि यदि तुम्हारा निशाना अचूक हो , तो तुम्हें दस हजार ओंस का सोना इनाम के लिए प्रदान किया जाएगा , वरना तुम्हारा जागिर वापस छीना जाएगा । राजा की घोषण ने हो -ई पर बड़ा दबाव डाला , हो -ई को खासा तनाव पड़ा लगा । उस के मुक का रंग भी उड़ने लगा । सांस हांफता रहा , अपने पर लाख नियंत्रण रखने की कोशिश करने पर भी वह शांत नहीं हो सका । ऐसी मनोदशा में उस ने अपना पहला तीर निकाला और उसे निशाने पर मारा , मानसिक दबाव के कारण हो-ई का पहला तीर निशाने से चूक कर दूसरी जगह जा गिरा । हो-ई के दिमाग पर कनाव और बढ़ा , उस का हाथ भी कांपने लगा । उस ने बड़े मुश्किल से दूसरा तीर निशाने की ओर मार दिया , पर तीर निशाने तक भी नहीं जा पहुंचा , उस के आगे ही जमीर पर गिर पड़ा । इस दृश्य को देख कर दर्शकों की भीड़ में आलोचना की आवाज सुनाई पड़ी । इस नदीजे को ले कर राजा शा-वांग ने अपने एक मंत्री नि-इन से पूछा कि हो-ई का तीरंदाजी का कौशल बहुत पारंगत है , निशाना कभी नहीं चूकता है , लेकिन आज दो बार निशाना चूक गया है , आखिर इस का क्या कारण है . नि-इन ने जवाब में कहा कि हो-ई इस बार हानि-लाभ पर ज्यादाल ध्यान देने के भाव से ग्रस्त है , आप के द्वारा घोषित इनाम का शर्त उस के लिए भारी बोझ बन गया , इसलिए वह सही मनोदशा में नहीं रहा । अगर लोग अपने हित -अहित का ख्याल नहीं करते हों और इनाम व मुआवजा की सोच से बिलकुल दूर रहते हों , फिर बड़ी मेहनत से काम का अभ्यास करते हों , तो आम जन साधारण भी निपुण तीरंबाज बन सकता है , और उन का तीरंदाजी का कौशल हो-ई से बदतर नहीं हो सकता है ।

नीति कथा की शिक्षा है कि हार जीत तथा लाभ -नुकसान का ज्यादा ख्याल करना लोगों के लिए भारी बौझ बन सकता है , वह काम सफल करने में बाधा होती है । इसलिए मानसिक तनाव से दूर रहना लाभदायक होता है ।

                                                                       लोमड़ी बाघ को डराता है

जंगलों में बाघ राजा माना जाता है , वह सभी किस्मों के जानवरों को मार कर खाता है । अतः सभी जंगली जानवर उस से बेहद डरते हैं और उस से दूर दूर रहते हैं

एक दिन , एक लोमड़ी बाघ के पंजों के नीचे धर कर दबोया , बाघ ने उसे चीड़ कर खाने को मुह खोला था कि लोमड़ी के मुह से यह आवाज निकली , तुम्झे मुझे खाने कि हिम्मत कैसी आयी है , क्या तुम नहीं जानते हो कि मैं स्वर्ग लोक के सम्राट द्वारा जंगल में जानवरों पर शासन करने भेजा गया हूं । यदि तुम ने मुझे मार कर खाया , तो स्वर्गीय सम्राट तुम्हारी जान लेने आएंगे । बाघ के नाक में हुंकार निकला और मन ही मन सोचा , यह सर्वविदित है कि मैं ही जानवारों का राजा हूं , यह काही से निकला है , जो अपने को पशुपति बताने वाला । लोमड़ी बड़ा चालाक था , बाघ के भाव हाव से उस ने भांप लिया था कि बाघ को अपनी बात पर संदेह है । तो उस ने कहा , तुम्झे विश्वास नहीं हो , तो हम जायज करके परख दें । मैं आगे आगे चलूंगा , तुम मेरे पीछे हो लिए और देखने की कोशिश करो कि जंगल में रहने वाले जानवार मुझ को देख कर भयभीत होने के कारण बेहाताशा भाग जाएंगे ,अथवा नहीं । तुम गौर करो कि किस को मुझ से डरने के मारे भाग खड़ा नहीं होने का हिम्मत हो । बाघ ने सोचा , यह तो ठीक कहा है , मुह की बातों पर कैसा विश्वास हो , आंखों से जो देखा है , वही सच होता है । मैं लोमड़ी के पीछे बिलकुल पास चलूंगा , तो वह मुझे धोखा देर मेरे पंजों से भाग निकल नहीं जा सकेगा । सो लोमड़ी आगे चल निकला और बाघ उस के पीछे हो लिया .दोनों घनी जंगल के अन्दर बढ़ने लगे । लोमड़ी समझता था कि बाघ अपने पीछे चल रहा है , तो ऐसा डर नहीं है कि दूसरे जानवर उसे मार कर खाएगा , इसलिए वह बड़े घमंड का स्वांग करते हुए शान शौकत और बड़ा आराम से आगे बढ़ रहा था । बाघ को डर था कि कहीं लोमड़ी इस बहाने से भाग न जाए , तो वह लोमड़ी से बिलकुल सटे हुए जा रहा था । बहस की जरा भी गुंजाइश नहीं थी कि बाघ को देख कर खरगोश और बंदर जैसे छोटा जानवर तो पांव हाथ पर रख बेताहाश से भाग जा रहे थे , और जंगली सुअर व भेड़िया जैसा खुंख्वार जानवर भी जान बचाते हुए भाग गये , जहां तक भयानक चिता तथा शक्तिशाली गैंडा भी दुम दबा कर दूर दराज झारझुंड में जा छिपे । लोमड़ी और घमंडी हो गया , उस का सीना व पेट आगे फुल कर निकला । पास चल रहे बुद्धू बाघ बिलकुल धोखे में आया , वह समझ रहा था कि जंगली जानवार सचमुच लोमड़ी से भयभीत हो कर भाग गए है , इसलिए वह लोमड़ी को बड़े आदर की नजर में देखने लगा और उस के आगे नतनमस्त हो गया । उस ने यह सोचने की जरा भी कोशिश नहीं की थी कि जंगल के जानवर वास्तव में अपने से डरते हैं , न कि लोमड़ी से ।

यह नीति कथा बड़ा मजेदार है ना . इस नीति कथा में यह बताया गया है कि बदनीयती लोग दूसरों की शह शक्ति से बेजा लाभ उठा कर अपना ऊंल्लू बनाते है और दूसरों को डराते हैं , लेकिन इस से वह अपनी कमजोर असलियत को नहीं बदल सकते है । फिर तो कोई भी लोग दूसरे के धोखे में आसानी से नहीं आने देना चाहिए उसे अपनी असली स्थिति और दूसरों की वास्तव शक्ति साफ साफ जानना और समझना चाहिए ।