वर्ष 1949 में तिब्बती कला वाचक आनी का जन्म दहगी कांउटी में हुआ । 15 वर्ष की उम्र में आनी ने खुद एक सपना देखा, जिस में सफेद कपड़े पहने हुए सफेद घोड़े पर सवार एक व्यक्ति आनी के सामने आया और उस से पूछा कि क्या वह उन की कहानियां गाना चाहता है या नहीं । इस के दूसरे दिन यह व्यक्ति एक बार फिर आनी के सपने में आया । आनी ने सपने में आने वाले व्यक्ति राजा केसर को कहा ।
महाकाव्य《राजा केसर》प्राचीन समय में तिब्बती लोक संस्कृति की सब से उच्च स्तरीय कामयाबी मानी जाती है । अब तक 150 किस्म की प्रतियां सुरक्षित रखी हुई हैं । सारे महाकाव्य में एक करोड़ पचास लाख अक्षर हैं । यह महाकाव्य प्राचीन यूनान के महाकाव्य《इलियड》और भारत के《महाभारत》से दस गुना से भी ज्यादा लम्बा है । आज"वर्तमान विश्व में एकमात्र सब से लम्बा जीवित महाकाव्य"माने जाने वाला महाकाव्य《राजा केसर》बोलने व गाने, तिब्बती ऑपेरा तथा चित्र के रूप में तिब्बती और मंगोल जाति बहुल क्षेत्रों में प्रसिद्ध है । वर्तमान में एक सौ से ज्यादा राजा केसर वाचक हैं, जिन में तिब्बती वाचकों की संख्या नब्बे से ज्यादा है, चालीस से ज्यादा मंगोल जाति के वाचक है और कुछ थू जातीय वाचक हैं ।
इधर के वर्षों में चीन ने तिब्बती लोक संस्कृति के विकास में बहुत धन राशि लगायी है। वर्तमान आधुनिक संस्कृति दिन ब दिन समृद्ध होने के साथ-साथ महाकाव्य《राजा केसर》जैसी परम्परागत लोक संस्कृति का अच्छी तरह संरक्षण किया जा रहा है और विकास किया जा रहा है। तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के सामाजिक विज्ञान अकादमी के नीति अनुसंधान केंद्र के उप निदेशक श्री त्सेरिन फिंगत्सो ने जानकारी देते हुए कहा:
"चीन तिब्बत के महाकाव्य राजा केसर के संरक्षण व बचाव कार्य को बहुत महत्व देता है । वर्ष 1979 में चीन ने इस के लिए एक विशेष संस्था की स्थापना की और क्रमशः महाकाव्य के बचाव और संग्रहण कार्य को महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अनुसंधान परियोजनाओं में शामिल किया और बड़ी तादाद में धन राशि लगायी । इस के साथ ही देश ने तिब्बत के नाछ्यू और छांगतु दो प्रिफैक्चरों में केसर से जुड़ा सर्वेक्षण कार्य किया जिस से महाकाव्य राजा केसर की 74 किस्मों की प्रतियां संग्रहित की गईं हैं ।"
वर्तमान में तिब्बती वाचक आनी की तरह के महाकाव्य राजा केसर सुनाने वाले वाचक राष्ट्र स्तरीय मूल्यवान व्यक्ति माने जाते हैं । वे राजा केसर की कहानी सुनाने के अलावा महाकाव्य के संकलन व संग्रहण कार्य में भी हिस्सा ले रहे हैं । इस की चर्चा में तिब्बती लोक वाचक आनी ने कहा:
"राजा केसर हमारी तिब्बती जाति के वीर होने के साथ ही चीनियों के वीर भी हैं, वे सारी दुनिया की जनता के वीर भी माने जाने चाहिंए । अब हमारे देश की नीति बहुत अच्छी है । मैं कई किताबों का संग्रहण कर रहा हूँ और कुछ पुस्तकें प्रकाशित करूंगा ।"
तिब्बती वाचक आनी के अनुसार एक वीर राजा केसर गाने में 200 से ज्यादा किस्मों की आवाज़ प्रयोग में लायी जाती है, हर एक किस्म की आवाज़ सुनाने में लगभग दस मिनट लगते हैं । छोटी वाली प्रति गाने में चार पांच मिनट लगते हैं और सब से बड़ी वाली प्रति गाने में 14 मिनट लगते हैं ।
वर्ष 1979 से ही स्छ्वान प्रांत के रेडियो स्टेशन के निमंत्रण पर आनी ने महाकाव्य राजा केसर के《हो लिंग लड़ाई》और《घोड़ा प्रतियोगिता से राजा बन गया》वाली प्रतियां गायीं और उन की कैसेट बनायीं । वर्ष 1984 में आनी ने तिब्बत की राजधानी ल्हासा में आयोजित राष्ट्र स्तरीय राजा केसर गायन सभा में भाग लिया और दर्शकों की वाहवाही लूटी । वर्ष 1990 में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश के छांगतु प्रिफैक्चर की मुक्ति की 40वें वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित गायन प्रतियोगिता में आनी ने अच्छी कामयाबी हासिल की । वर्ष 2000 के जुलाई माह में स्छ्वान प्रांत के कानची तिब्बती प्रिफैक्चर में आयोजित गायन प्रदर्शनी में उन्होंने श्रेष्ठ उपलब्धि प्राप्त की । वर्ष 2004 में उन्होंने छिंगहाई प्रांत में आयोजित राजा केसर की हज़ार वर्ष स्मृति सभा में भाग लिया और गायन प्रस्तुत किया ।
कुछ साल पहले तिब्बती लोक वाचक आनी ने एक अन्य सत्तर वर्षीय लोक वाचक के साथ राजा केसर की कहानी के प्रथम तीन भाग गाए और उन के कैसेट बनाए । आनी बौद्ध धर्म के सूत्र पाने के लिए भारत, नेपाल और तिब्बत स्वायत्त प्रदेस व छिंगहाई प्रांत गए । घूमने के दौरान आनी ने बहुत अनुभव प्राप्त किए और वे विस्तार से राजा केसर की कहानी का प्रसार कर रहे हैं ।
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