इन कर्मशालाओं में काम का विभाजन बड़ी तफसील से किया गया था और उन का उत्पादन बहुत ज्यादा था। लेकिन जहां तक उन में काम करने वाले मजदूरों का सवाल था, उन के पास अपनी श्रमशक्ति और तकनीकी कौशल के अलावा अन्य कोई चीज नहीं थी, यहां तक कि एक करघा भी नहीं।
उन को जब काम मिलता तो वे अपनी जीविका चला सकते थे, लेकिन जब उन को काम न मिलता तो जीविका का कोई उपाय उन के पास न रह जाता। अपने मालिकों के साथ उन का संबंध वैसा ही था जैसा कि श्रम और पूंजी के बीच होता है, वह बहुत कुछ पूंजीवादी किस्म का संबंध था।
उस समय भी देश में कृषि और दस्तकारी उद्योग के संयोजन पर आधारित प्राकृतिक अर्थव्यवस्ता की ही प्रधानता थी।उत्पादन के पूंजीवादी संबंध अब भी अपनी प्रारम्भिक व शैशव अवस्था में ही थे और सामन्तवादी व्यवस्था द्वारा बाधित होने के कारण बहुत धीरे धीरे विकसित हो रहे थे।
मिङ राजवंशकाल में उत्तरपूर्वी चीन के हेइलुङ नदीघाटी और सुङह्वा नदीघाटी के ज्यादातर निवासी न्वीचन जाति के थे, लेकिन हान जाति , मंगोल जाति, कोरियाई जाति और अन्य अल्पसंख्यक जातियों के कुछ लोग भी वहां वसते थे।
1409 में अओदी नदी व बाह्य हिङकान पर्वतशृंखला तक के इलाके का शासन इसी कमान के हाथ में था। सरकार ने इस विशाल इलाके में बहुत से सैन्यक्षेत्र कायम किए , जो सभी नुरखान गैरिजन कमान के अधीन थे।
चीन के उत्तरपश्चिम के शिनच्याङ इलाके में उइगुर जाति के लोग और कुछ अन्य जातियों के लोग, जिन में हान जाति के लोग भी शामिल थे, रहते थे।