नौकरियों की संख्या अधिक थी , जिन में मदिरा का पर्याप्त बांटवारा करना मुश्किल था . मदिरा के बांटवारे के तरीके पर नौकरियों में खासा बहस हुई , तब एक नौकरी ने यह सुझाव रखा , एक मग का मदिरा हमारे लिए सचमुच कम है , उसे बांट कर पीने से मजा नहीं आ सकता , शराब पीना हो तो जी भर कर पीओ , तभी मजा आएगा । सभी लोग मदिरा एक व्यक्ति को पीने देने के सुझाव पर सहमत थे , लेकिन कोई भी पीने का अधिकार छोड़ने को तैयार नहीं । तो एक दूसरे नौकरी ने सुझाव दिया , बेहतर है कि हम सांप का चित्र खींचने की प्रतियोगिता करें , जो सब से पहले सांप का चित्र बनाएगा , उसे पूरा का पूरा शराब दिया जाएगा । सभी लोग इस सुझाव पर भी राजी हो गए ।
फिर सब लोग पेड़ की एक एक पतली ताली तोड़ कर लाए और जमीर पर सांप का चित्र खींचने बैठ गए । एक नौकरी की गति बहुत तेज थी , थेड़ी देर में ही उस ने सांप का सुन्दर चित्र बनाया , उस ने मग को उठा कर दूसरों पर एक नजर डाल कर देखा , तो उसे बड़े घमंड का अनुभव हुआ कि उन की चित्र बनाने की गति मेरी से सचमुच बहुत धीमी है । सो उस ने सबों से कहा कि अब मैं सांप में कुछ पांव जोड़ दूंगा , तब भी आप लोगों से पहले चित्र पूरा कर सकूंगा ।
उस ने तुरंत सांप पर पैर का चित्र जोड़ना शुरू किया । पैर का दूसरा चित्र बनाने के बीच ही किसी दूसरे नौकरी ने भी अपना चित्र पूरा किया , उस ने झप से मदिरा का मग छीन कर कहा कि सांप में पांव नहीं होता है , आप का चित्र सांप का नहीं है .अतः मैं ने सब से पहले सांप का चित्र बनाया है , शराब मेरे हक में आ गया है । उस का तर्क सुन कर सांप में पांव जोड़ने वाला नौकरी अवाक रह गया और उसे मदिरा पीने का मौका हाथ से छूट गया ।
दोस्तो , इस नीति कथा से हमें यह हिदायत मिल सकता है कि कोई भी काम करना हो , तो उस की वास्तविकता के मुताबिक करना चाहिए , उस में बेमतलब चीज मिलाने से केवल काम को खराब कर दिया जा सकता है ।
बीमारी की चिकित्सा से परहेज का परिणाम
आज से पच्चीस सदियों पहले , प्येन छ्यु नाम का एक प्रसिद्ध चिकित्सक था । एक दिन वह छ्ये राज्य वंश के राजा ह्वान हो से मिलने गया । राजा का हाव भाव गौर से निगाहने के बाद उस ने कहा कि महा राजा , आप बीमार पड़ चुके हैं, अभी बीमारी त्वचों तक पड़ी है , तुरंत इलाज करने से आप जल्दी ही ठीक हो जाएंगे । राजा ह्वान हो इंकार करते हुए बोला , मुझे बीमारी नहीं हुई , इलाज करने की कोई आवश्यकता नहीं है । प्येन छ्यु के चले जाने के बाद राजा ह्वान हो ने अपने मंत्रियों से कहा , चिकित्सक सभी ऐसा निकले है , जो रोज लोगों को बीमारी से पीड़ित हुए समझते है और उन का इलाज करने पेश आते हैं . वे इसी तरह अपना कथित असाधारण चिकित्सा कौशल साबित करना चाहते हैं ।
दस बारह दिन गुजरने के बाद प्येन छ्यु फिर राजा ह्वान हो के पास गए , राजा का हाल चाल देखने के बाद उस ने चिंतित हो कर कहा कि महा राजा , आप की बीमारी मांस के अन्दर विकसित हो गई है , अब इस का इलाज करना अत्याधिक जरूरी है । राजा ह्वान हो ने इंकार में सिर हिलाया , मुझे कोई भी बीमारी नहीं है , तुम वापस जा सकेंगे । प्येन छ्यु के चले जाने के बाद ह्वान हो को फिर गुस्सा आया ।
और दस बारह दिन गुजरे , प्येन छ्यु फिर राजा ह्वान हो से मिलने पहुंचे । राजा के मुख का रंग ढंग देख कर उस ने बड़ी चिंता के साथ कहा , महा राजा , आप की बीमारी अब पेट के भीतर घूस पड़ी है , इलाज में विलंब नहीं होने देना चाहिए । राजा ह्वान हो ने अस्वीकृति में सिर हिलाते हुए कहा , क्या बकवास है , मुझे कहां से बीमारी हुई है । प्येन छ्यु फिर चले गए और ह्वान हो नाखुश रहे ।
तीसरे दिस दिन गुजरा था , प्येन छ्यु फिर राजा से मिलने गया । राजा ह्वान हो की ओर एक नजर डालने के बाद ही वह वापल लौट चले । इस पर ह्वान हो को बड़ा ताज्जुब हो गया और उस ने अपने आदमी को कारण पूछने प्येन छ्यु के पास भेजा । प्येन छ्यु ने जवाब में कहा कि बीमारी पड़ना कोई खतरनाक बात नहीं है , खतरनाक इस बात में है कि मरीज अपनी बीमारी से इंकार करता है और इलाज से परहेज करता है । बीमार पडने पर अगर समय रहते ही उस का इलाज कराया जाए , तो आम तौर पर वह दूर हो जाएगा और मरीज स्वस्थ होगा । जब बीमारी त्वचों के बीच हो , तो गर्म औषधि के लेप से ठीक हो जाएगी , बीमारी मांस में पड़ी हो , तो एक्युपंक्चर से ठीक की जा सकेगी , बीमारी पेट में जब घूस गई , तो दवा के सेवन से इलाज किया जा सकता है । लेकिन अब राजा ह्वान हो की बीमारी हड्डी के अन्दर गहरी बैठ चुकी है , ऐसी हालत में उन का भाग्य तो भगवान के दुआ पर ही निर्भर है .मैं उन की बीमारी का इलाज नहीं कर सकता हूँ ।
प्येन छ्यु की बात सच निकली , पांच दिन के बाद राजा ह्वान हो की बीमारी अचानक प्रकट हुई , उस ने तुरंत प्येन छ्यु को बुलाने आदमी भेजा , लेकिन प्येन छ्यु अब तक दूसरे राज्य में चले जा चुके थे . फिर कुछ दिनों के बाद राजा ह्वान हो का बीमारी के मारे देहांत हो गया ।
जैसा कि बीमार पड़ने पर इलाज से इंकार किया जाने से जान खतरे में पड़ जाती है , वैसा कि किसी गलती पड़ने पर उसे तुरुस्त करने से परहेज पर गलती और गंभीर रूप ले सकती है । बीमारी और गलती को समय रहते ही दूर करना हितकर सिद्ध होता है ।